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                गंगा का वेग

by 2974shikhat June 23, 2017
by 2974shikhat June 23, 2017

हे ! पवित्र गंगा आज आज तुम्हारे “उद्वेग” मे कमी क्यों  दिखती

लगती हो वैसे तुम शांत सी भली

 करती हो पूरा सफर  लंबा
 रास्ते मे “हिमालय” भी खड़ा

“गंगोत्री” से “गंगा सागर” तक लगता है
 तुम्हारा सफर भला
 मानव जीवन की तरह ही तुम्हारा
 सफर दिखता

 सफर मे चलते चलते कहीं न कहीं
 तुम्हारा “उद्वेग” थमता

 दिखती हो कहीं “कलकलाती” कहीं “इठलाती”
 अपने प्रवाह मे तरह तरह की आवाजें निकालती

 कहीं महसूस होता बहाव इतना “तीव्र”
 लगता है कि तुम पूरा करना चाहती हो
 अपना सफर “अतिशीघ्र”

 कहीं बहाव मे” क्षणिक” ही सही तुम्हारा
  तीव्र क्रोध दिखता
बहा ले जाती हो किनारों को भी अपने
 क्रोध के प्रभाव से

कहीं इतनी भली बन जाती हो कि
 किनारों को “उपजाऊ” करके
 शांत भाव से आगे बढ़ जाती हो

 कुछ भी हो तुम्हारी “शीतलता” , तुम्हारी “निर्मलता” 
  मन को बड़ा भाती है
  इसीलिये तो तुम “अमृतमयी” कहलाती हो

जनमानस के शीश को अपने किनारों पर

श्रद्धा और विश्वास के साथ झुकवाती हो

इसीलिये तो तुम “जीवन तारिणी” और “जीवन दायनी” भी कहलाती हो

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2974shikhat

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Vaibhaw verma June 25, 2017 - 6:51 pm

बेहद उम्दा वर्णन माँ गंगा का

Mrs. Vachaal June 26, 2017 - 5:24 am

धन्यवाद … गंगा माँ का शब्दों मे बाँधना कठिन है ,लेकिन फिर भी मैने छोटा सा प्रयास किया 😊

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कहानी का दूसरा पहलू मेरी दुनिया में आपका स्वागत है

मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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