
गर्मियों के मौसम के फल ज्यादातर ठंडी तासीर का गुण रखते हैं। तरबूज ,खरबूज ,आम ,लीची सभी औषधीय गुणों से भरपूर एवं रस से भरे होने के कारण, शरीर में पानी की कमी को पूरा करने में भी सहयोगी होते हैं। तपती हुई दुपहरी में रेफ्रिजरेटर में रखे इन रंग – बिरंगे फलों को देखकर आँखें भी तृप्त हो जाती हैं।
मीठे और रसीले फलों की श्रेणी में आनेवाले फलों के राजा आम के साथ -साथ, फलों के ठेलों पर इन दिनों लीची भी नज़र आती है। फ्रिज से निकालकर प्लेट में लिए हुए लीची के फलों को देखते ही ,मुझे अपने घर का लीची का पेड़ याद आ गया।
वास्तव में कितने साल बीत गये ,इन २०-२५ सालों में अच्छा – खासा बड़ा हो गया है लीची का पेड़। पहले उसका मुख्य तना अपनी छोटी -छोटी शाखाओं को इधर -उधर फैला कर रखता था। पेड़ की छांव और उसपर मंडराती हुई चिड़ियों और तितलियों को देखकर, हमेशा यह सवाल दिमाग में आता था , कब फल आयेंगें इस लीची के पेड़ पर ?
धीरे -धीरे छोटे शहरों से महानगरों की तरफ पलायन हो गया और लीची का पेड़ पुराने घर में छूट गया। उसकी चमकीली हरी रंग की पत्तियों के बीच में से छन छन कर आती हुई धूप सर्दी के मौसम में गुनगुना सा अहसास करा जाती थी।
घर के बड़े बुजुर्गों के लिए लीची के पेड़ से गिरी हुई पत्तियों को समेटना ,साफ़ सफाई करवाना भी रोजमर्रा के महत्वपूर्ण कार्यों में से एक होता था।
अकेले में लीची के पेड़ को देखकर मेरी बुदबुदाहट बढ़ जाती थी ,इतने सालों से देख रही हूँ एक फल तो इस पेड़ पर नज़र आते नहीं ,बस ये पेड़ भी अपनी सेवा ही करवाता रहता है। बड़े होने के साथ उस पेड़ ने अपनी शाखाओं को चारों दिशाओं में फैलाना शुरू कर दिया।
कमरे की खिड़की की जाली को छूती हुई उसकी शाखाएं ,ऐसा लगता था नटखटपन में भीतर प्रवेश करना चाह रही हों। ऐसे समय में एक बार फिर से लीची के पेड़ की छटाई हो जाया करती थी। जीवन का सत्य तो यही है कि अचल संपत्ति ,पेड़ पौधे सब अपनी जगह रह जाते हैं। घर में रहने वाले लोगों का बेहतर कि चाह में ,पलायन होता रहा है और होता रहेगा।
घर में बड़े बुजुर्ग अब नहीं रहे ,पेड़ पौधों का अस्तित्व अभी भी वैसे ही है। घर का दरवाजा खोलते ही भीतर सन्नाटा पसरा दिखता है ,पेड़ पौधों के ऊपर चहल पहल बढ़ गयी है। गिलहरियों और तरह तरह की चिड़ियों का पेड़ों के ऊपर बसेरा है। लीची का पेड़ अब हमारे घर की सीमा से निकालकर पड़ोसियों के घर तक अपनी शाखाओं को फैलाया हुआ है।
साफ़ सफाई के इरादे से पेड़ की छटाई करते समय पड़ोसियों ने विनम्र निवेदन किया कि,हमारी तरफ कि शाखाओं को मत कटवाइयेगा। आपकी लीची के पेड़ के फल बहुत स्वादिष्ट होते हैं और बहुत संख्या में आते हैं। हमे तो लीची के लिए बाजार के ऊपर निर्भर भी नहीं होना पड़ता।
यह सुनकर मै कुछ पलों के लिए शांत खड़ी रह गयी और खुद से ही सवाल पूछने लगी ,फलने लगा लीची का पेड़ ? हमे पता ही नहीं चला। माँ पिताजी इसके फलों का इंतज़ार करते हुए अपनी अंतिम यात्रा पर चले गये। कुछ बेहतर के लिए हम सभी का यहाँ से पलायन होता रहा।
ज़रा सा आगे बढ़ी तो देखा नारंगी का पेड़ अपने फलों के साथ खिलखिला रहा था ,गुड़हल के फूल इतने कि अपनी उपस्थिति से पत्तियों को भी छुपा रहे थे। आम अमरुद सब पर फल दिख रहे थे, लेकिन घर में चहल पहल का अभाव था।
अपनी जमा पूँजी खर्च करके बनाई हुई अट्टालिकायें खड़ी रह जाती हैं ,पेड़ पौधे जमीन के भीतर से जल और पोषण ले लेते हैं। ऐसा लगता है मानों कह रहे हों ,हमे तो नहीं है अब देखभाल कि जरूरत आपको पता है न प्रकृति का क्रम ! भावुक ह्रदय और शांत दिमाग से एक बार फिर से लीची के पेड़ को निहारने लगी ,जीवन का सत्य सामने था।