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उत्तंग ऋषि की गुरुभक्ति (भाग २)

by 2974shikhat November 13, 2020
by 2974shikhat November 13, 2020

राजा सौदास और उत्तंग मुनि का वन में वार्तालाप

  • अपने गुरु गौतम ऋषि से घर जाने की अनुमति मिलने के बाद, गुरुपत्नी अहल्या के सामने उत्तंग मुनि हाथ जोड़कर खड़े हो गए I गुरुपत्नी से कहने लगे गुरु दक्षिणा में आपको क्या दूँ माँ ? मै धन और प्राण देकर भी हमेशा आपका हित करना चाहता हूँ I
    इस लोक में जो भी दुर्लभ,अद्भुत और बहुमूल्य रत्न होगा वह मै, अपनी तपस्या से आपके लिए ला सकता हूँ I
    यह सुनकर अहल्या ने कहा, मै तुम्हारी गुरुभक्ति से बहुत प्रसन्न हूँ I यही मेरी पर्याप्त दक्षिणा है I तुम्हारा कल्याण हो पुत्र,अब तुम यहाँ से जा सकते हो I
    उत्तंग मुनि अभी भी हाथ जोड़कर, गुरुपत्नी के सामने खड़े थे I बाल सुलभ हट करने लगे माँ ! मुझे आपका कोई न कोई काम तो, यहाँ से जाने से पूर्व करना है,इसलिए आज्ञा दीजिये मै क्या करूँ I
    अहल्या ने कहा बेटा राजा सौदास की पत्नी ने, अपने कानों में मणियों के बने हुए दिव्य कुण्डल पहन रखे हैं,उन्हें
    मेरे लिए ला दो ,तुम्हारी गुरु दक्षिणा पूरी हो जायेगी I
    इसके बाद मुनि ने गुरुपत्नी से आज्ञा ली और, दिव्य कुण्डल को प्राप्त करने के लिए राजा सौदास के पास जा पहुँचे I
    दूसरी तरफ उत्तंग मुनि को आश्रम में न देखकर गौतम ऋषि ने, अहल्या से मुनि के बारे में प्रश्न पूछा I
    अहल्या ने मुनि के द्वारा कुण्डल की खोज में जाने के बात गौतम ऋषि को बतायी I
    गौतम ऋषि चिंताग्रस्त हो गये I अहल्या के द्वारा चिंता का कारण पूछने पर ऋषि कहने लगे, राजा सौदास शापित होने के कारण नर भक्षी हो गया है I यह मेरे लिए घोर चिंता का कारण है I
    अहल्या बोली , मै राजा सौदास के शापित होने की बात से अनजान थी I इसीलिए अनजाने मै मैंने मुनि को दिव्य कुण्डल लाने का कार्य सौंप दिया I
    अहल्या ने कहा मुझे विश्वास है की मुनि के ऊपर, कोई विपदा नही आयेगी I
    उधर वन में जाकर मुनि ने सौदास को देखा,बहुत भयानक आकृति थी I मुनि को देखते ही यमराज के समान भयंकर राजा सौदास खड़ा हो गया I
  • मुनि के पास आकर बोला ब्राह्मण ! अहो भाग्य मेरे जो दिन के छठें भाग में आप खुद ही मेरे आहार के रूप में सामने आ गये I इस समय मै भोजन की खोज में था I
    उत्तंग मुनि ने कहा राजन ! मै गुरु दक्षिणा की खोज मे घूमता फिरता यहाँ आया हूँ I जो गुरु दक्षिणा के कार्य में लगा हो, उसकी हत्या नहीं करनी चाहिये ऐसा विद्वानों ने कहा है I
    सौदास ने कहा, मैंने दिन के छठें पहर में भोजन का नियम बना रखा है,मै नियम को नहीं तोड़ सकता I
    मुनि ने कहा राजन मेरे द्वारा दी जाने वाली गुरु दक्षिणा आपके ही अधीन है I अतः पहले मुझे मेरा कार्य कर लेने दीजिये फिर मै स्वतः ही आपके पास आ जाऊंगा I
    राजा सौदास ने कहा, अगर वह वस्तु मेरे अधीन है तो मांगिये विप्रवर, मै आपको क्या दूँ ?
    मुनि ने रानी के कुण्डल को गुरु दक्षिणा के लिए मांगा I
    सौदास ने कहा महर्षि ! वे कुण्डल मणिमय हैं और वो मेरी रानी के योग्य हैं, आप कुछ और मांग लीजिये I
    मुनि ने कहा राजन ! यदि आपका मुझ पर विश्वास है तो बहाना मत करिये I वे दोनों कुण्डल मुझे देकर धर्म का पालन करिये I
    मुनि के ऐसा कहने पर राजा ने कहा ,आप रानी के पास जाइये और मेरी आज्ञा की बात कहकर, वे कुण्डल ले लीजिये I
    मुनि ने कहा राजन ! मै कैसे आपकी पत्नी को पहचानुंगा,आप मेरे साथ चलिये I
    राजा सौदास ने कहा ,मेरे शापित होने के कारण मै दिन के इस समय, रानी से भी नहीं मिलूंगा I
    महर्षि ! वे आपको जंगल में किसी झरने के किनारे आसानी से मिल जाएँगी I दिव्य कुण्डल के तेज से आप उन्हें आसानी से पहचान लेंगे I
    राजा की बात सुनकर मुनि जंगल में रानी की खोज में चल पड़े I
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2974shikhat

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मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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