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चश्मे की व्यथा (The Anguished Spectacle)

by 2974shikhat August 17, 2020
by 2974shikhat August 17, 2020

(3rd May2017)

“Our lives are incomplete without some relatively inexpensive objects like spectacles”

हम सभी के साथ कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जो हमारी जरूरत बन जाती है… हमारे जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाती है ….

उन चीजों के बगैर हमारे जीवन की जरूरतें पूरी नही होती… वो हमारी कार ,मोबाइल , ए सी , जूता या चश्मा भी हो सकता है …कभी सोच कर देखिये, इन चीजों के समय पर सही सलामत न मिलने पर, कितनी असुविधा होती है… स्वभाव मे थोड़ी झुन्झलाहट भी आती है …..

इस पोस्ट को मैने अपने प्यारे चश्मे को समर्पित किया है ….

आजकल मेरा चश्मा !बड़ा घुमक्कड़ हो गया है…..

पूरे घर मे खोजो ! कभी कहीं ,कभी कहीं, घूमता फिरता रहता है…….

पता नही क्यों ,ऐसे काम किया करता है?

कुछ पढ़ने, लिखने या चुनने के लिये….
हमेशा करना पड़ता है ,इसका इस्तेमाल…

पास की नजर की ,धोखेबाजी ने ही
इस आरामतलब के भाव को, बढ़ावा दिया है…

नाक पर चढ़ते चढ़ते ,इसकी आदत
गयी है बिगड़…..

मुझे लगता है, आ गयी है इसके अंदर
बहुत सारी अकड़…..

समझ मे नही आती ,इसको सीधी साधी सी एक बात…..

एक ज्ञानेंद्रीय को चाहिये होता है हमेशा, दूसरी ज्ञानेंद्रीय का साथ…..

जब मै समझाती हूँ इसे ,छोटी सी यह बात….
तो जाग उठते हैं, इसके सोये हुये ज़ज्बात…..

मैने इसे समझाया, तुम्हारा स्थान हमेशा ,नाक के ऊपर होता है,

लेकिन तुम्हारे भीतर…..
यह अहं कैसा उछलता रहता है…..

तुमने आदत यह गलत पाली है…..
तुम्हारे स्वभाव मे नकचढ़ापन आना जारी है….

कल खोजते खोजते इसे मै,परेशान हो गयी…

इसके नही मिलने से मै, हैरान हो गयी…..

थोड़ी देर मे देखा,मंदिर मे ही आराम फरमा रहा था….

मुझे देखकर अपनी धार्मिकता दिखा रहा था….

मुझसे बोला आपके ऊपर नही रह गया, मुझे अब तनिक भी भरोसा…..

आपकी आदतों से मै परेशान हूं…

इसीलिये दिख रहा खस्ताहाल हूं…

आप जब सो रही थी, तब मैने सोचा, सारे घर मे लूँ मै घूम……
ज़रा सा मै भी मचा लूँ धूम…..

टहलते घूमते मंदिर के पास पहुँच गया……
अपनी सलामती की दुआ माँगने के लिये…

कान्हा जी के पास ही रुक गया…….

भगवान जी ने ही मुझे ,बचाया हुआ है……
नही तो आपके साथ हर दिन, हैरानी परेशानी की बात…

कभी सिर के ऊपर से ,कभी और ज्यादा ऊँचाई से

ऊँची कूद का अभ्यास आप कराया करती हैं…..

इतना बोल कर, मेरी तरफ से अपने मुँह को

फेर लिया…..

गुस्से से अपने कदमो को पीछे की तरफ
मोड़ लिया….

मैने शांत दिमाग से सोचा
बात तो कर रहा है ये बिल्कुल ठीक…..
अनजाने मे ही दे रहा है मुझे महत्वपूर्ण सीख…..

मैने अपने चश्मे को प्यार से समझाया….
थोड़ा सा लाड़ भी जतलाया….
चलो अब मान भी जाओ…..
अब अपना गुस्सा मत दिखाओ….

अब रखूँगी हमेशा तुम्हारा ध्यान…..
सिर के ऊपर से उतार कर खोजूँगी ,हमेशा तुम्हारे लिये सुरक्षित स्थान…..

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Image Source : Google Free

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कहानी का दूसरा पहलू मेरी दुनिया में आपका स्वागत है

मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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