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महानगरों का संसार, बेसब्री से सप्ताहांत का इंतजार

by 2974shikhat April 24, 2018
by 2974shikhat April 24, 2018

Life in metro's

जीवन दिन,सप्ताह, महीने और साल के बीच में

अपनी रफ़्तार से चलता रहता है……

कस्बे, छोटे शहरों या महानगरों का हो इंसान…..

हर कोई सप्ताह के अंत का इंतजार बेसब्री से

करता हुआ दिख जाता है…..

कार्य करते हुए बीतते हुए सप्ताह के दिन…..

सामान्य तौर पर इंसान को शारीरिक और

मानसिक रूप से थका देते हैं…..

सप्ताह के अंत के पूर्व का दिन

उमंग और उत्साह को लाता है…..

शाम ढलते ही कार्यस्थलों से जनसैलाब सा

निकलता है…..

Life in metro's

सार्वजनिक स्थल के साथ साथ सार्वजनिक परिवहन भी

सप्ताहांत में गुलजार हो जाते हैं…..

व्यक्ति का दिमाग सशरीर अपने स्वभाव के अनुसार मनोरंजन

व सुकून की तलाश में घरों से बाहर निकलता है…..

Life in metro's

किसी को घूमना होता है, किसी को थिरकना होता है…..

किसी को दुकान या माल में जाकर सिर्फ सामान को

देखना होता है….

महानगरों में सार्वजनिक परिवहन के रूप में

मेट्रो सबसे सुगम साधन मानी जाती है…..

मेट्रो के साथ इंसान की गंतव्य की दूरियां

कम होती जाती है….

Life in metro's

मेट्रो की चहल-पहल के बीच में भी व्यक्ति खुद में

सिमटा हुआ सा दिखता है……

गंतव्य के पास पहुंचते ही व्यक्ति की भाव-भंगिमा

बदल जाती है…..

अचानक से चाल में उत्साह के साथ साथ

चैतन्यता नज़र आती है……

Life in metro's

खुद में सिमटा और फोन के दायरे से कुछ समय

के लिए ही सही ..बाहर निकला इंसान सामाजिक प्राणी

नज़र आता है……

छोटे-छोटे बच्चे भी फोन की दुनिया में

चहलकदमी करते हुए नज़र आते हैं…….

खिड़कियों से बाहर भागते हुए रास्ते

पेड़ पौधे और जीव-जंतु अब उन्हें नही भाते हैं…..

Life in metro's

बचपन के कौतूहल और मासूमियत को इन

मोबाइल फोन की दुनिया ने बड़े इत्मीनान के

साथ चुरा लिया…..

सार्वजनिक स्थलों पर भी मोबाइल फोन की दुनिया में

सिमटा बचपन चिंता में डाल गया……

शायद यही कारण है कि बच्चों का बचपना खो सा गया…..

बदलते हुए समाज को आधुनिक तकनीकी का साथ मिल गया…..

मानवीय संवेदनाएं और सामाजिकता का ह्रास हो गया…..

तकनीकी के साथ आगे बढ़ता हुआ समाज

नि:संदेह विकास को तो दिखाता है……

Life in metro's

लेकिन बचपन की मासूमियत और कोमलता

को कहीं न कहीं खोता हुआ…….

अवश्य नज़र आता है…..

(सभी चित्र इन्टरनेट से)

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2974shikhat

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मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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