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जुझारूपन के साथ बेटियाँ

by 2974shikhat November 25, 2019
by 2974shikhat November 25, 2019

माँ के गर्भ मे,संतान के रूप मे पलती हुई, बेटी

मजबूत हौसले के साथ,जीवन के सफर की

शुरूआत करती है । 

समाज मे सुनी हुई है यह बात ।

बेटियाँ माँ के गर्भ से ही

जुझारूपन के साथ

पलती और बढ़ती है ।

वैज्ञानिक शोध ने भी स्वीकारी है यह बात ।

जीवन मे आने वाली परेशानियों को

तुलनात्मक रूप से

शिशु अवस्था से ही

मजबूती से पार करती है ।

अपने पांव पर चलना शुरु करते ही

नन्ही बेटी !

माँ सा, कोमल स्वभाव रखती है । 

प्यार और देखभाल को

अपने नन्हे-नन्हे हाथों और

तोतली जुबान से ही

समझाने लगती है । 

होती होगी जरूर

बेटियों की बातों ,और लाड़ प्यार मे

चमत्कारिक सी बात के साथ

देखभाल का एहसास ।

शायद इसी कारण,समाज मे

कठोर से कठोर हृदय वाले इंसानों मे भी

दिखाई पड़ जाता है

खुद की बेटियों के लिए

स्नेह और दुलार अपार ।

ईश्वर ने भी, कोमलता के साथ

बेटियों को बनाया होता है । 

अपनी सारी भावुकता को, बेटियों के भीतर

छुपाया होता है । 

फिर क्यों समाज मे बेटियाँ !

परिवार पर भार सी लगती हैं ।

‘कन्या भ्रूण हत्या’जैसी बातों से

दो चार होती हैं ।

महत्वपूर्ण लेकिन, ज़रा सा अचंभित करती है,यह बात ।

बेटियों के कंधों पर ही मानी जाती है

दो परिवारों की,सुख- शांति और बरकत की जिम्मेदारी ।

लेकिन हम इस बात से,नही कर सकते इंकार । 

बेटियों के साथ-साथ,बेटों के कंधों पर भी होता है

स्वस्थ समाज का ‘दारोमदार’ । 

बेटियों की चहचहाहट, मुस्कुराहट और खिलखिलाहट

होती है, सकारत्मकता से भरपूर । 

निश्चित रूप से बेटियों की खुशी से

अभिवावकों के हृदय को मिलता है ‘सुकून’ । 

समाज को बेटियों के प्रति समय रहते

इंसानियत को दर्शाना होगा । 

बेटियों की सुरक्षा, सम्मान और विकास से जुड़े

विषयो के प्रति, जागरूकता फैलाना होगा । 

सोये हुए अंर्तमन को, जगाना होगा । 

समाज और परिवार मे बेटियों के

आत्मविश्वास को बढ़ाना होगा । 

गर्भ मे पल रही बेटियों को

भारतीय समाज मे मिलना चाहिए

जीवन को जीने का

ससम्मान अधिकार  ।

अभिवावकों का,लाड़ प्यार और दुलार ।

दूर करना होगा बेटियों के प्रति

दोयम दर्जे का व्यहवार  । 

भारतीय सामाजिक  व्यवस्था की गाड़ी

सिर्फ एक पहिये पर, चल नही सकती

पुरुषों के साथ, स्वस्थ मानसिकता और

मजबूत इरादों के साथ बेटियाँ

आगे क्यों नही बढ़ सकती ?

सोचने पर मजबूर करती है यह बात !

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मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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