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A Friendly Fight With Lord Shiva

by 2974shikhat October 19, 2016
by 2974shikhat October 19, 2016


जीवन जीने की कला भगवान की आस्था ही हमे सिखाती है …परिस्थितियाँ चाहे कैसी भी हो भगवान की आस्था ही हमारे अंदर positivity लाती है …लेकिन चंचल मन को नियंत्रित करना सबसे बड़ा काम होता है …इस मन का कोई भरोसा नहीं होता, ये हमेशा आप को उस रास्ते पर चलने के लिये धक्का मारता है ….जहाँ जीवन के बहाव मे दिखते हुये सुख के पीछे… सिर्फ दुख ही दुख छुपा होता है…चाहे वो आपकी खान पान की बुरी आदतें हो या आपकी irregular life style….

ये चीजें हमे आजकल, अपने समाज मे देखने को बहुत मिलती है।

क्षणिक सुख के लिये की गयी गलतियाँ, जीवन पर्यंत दुख देती हैं ……

मेरे मन ने तो आज अति ही कर दी ,सोसायटी के छोटे -छोटे बच्चों को लड़ते भिड़ते देख, उसे भी आज जोश आ गया …

उड़ान भर कर पहुँच गया हिमालय की गुफाओं मे, फिर कैलाश मानसरोवर भी पहुँच गया ….आपने क्या सोचा प्राकृतिक सुंदरता देखने, अरे ! नहीं भगवान शिव से लड़ने भिड़ने……

मैने उसे कितना पकड़ने की कोशिश की, बहुत सारी अच्छी -अच्छी खाने वाली चीजों का लालच भी दिया …..

लेकिन छोटे बच्चे जैसा ढीठ और जिद्दी ठहरा मन! कहना नहीं माना और शिव भगवान से लड़ाई करके वापस आ गया….

ऐ जीवन के खेवइय्या मेरे भगवान ….
तुझ पर ही निर्भर,सबका आत्मसम्मान …
लेकिन फिर भी ,क्यों लूं मै तेरा नाम ?

जग भर में है तेरा नाम लेकिन!

ये तो बता करता है क्या काम….
इसीलिये क्यों लूं मै तेरा नाम ?

कभी बैठते हो फूलों मे ,कभी पत्तियों और कभी पत्थरों मे…
तेरा अपना भी है क्या कोई ठौर ठिकाना ?
अब ये तो बता फिर ,क्यों लूं मै तेरा नाम?…
.

तू ही तो लगाता है जीवन का मोल

बनाता है सब कुछ अनमोल….
लेकिन फिर भी ,क्यों लूं मै तेरा नाम ?

सुना है हमेशा तेरा ही नाम …..

बनाते हो सबके बिगड़े काम…..
लेकिन फिर भी ,क्यों लूं मै तेरा नाम ?

पूजा कराकर विसर्जन भी कराते हो, क्यों नही सिर्फ सृजन
ही सृजन कराते हो …
इसीलिये ,क्यों लूं मै तेरा नाम ?

मालूम है मुझे तुम हो भोला भंडारी, नहीं है तुम्हारा काम
सृजन त्रिपुरारी….जाने जाते हो विध्वंसकारी ….लेकिन ये भी
पता है मुझे ….कि ब्रम्हा विष्णु महेश तुम तीनो शिव के
ही हो रूप त्रिपुरारी…..
इसीलिये , क्यों करूँ मै तुम्हारा ध्यान ?

सब कुछ देखने का क्यों तुम, छलावा करते हो …
देख कर के क्यों तुम, अनदेखा करते हो…
इसीलिये क्यों लूं मै तेरा नाम ?

जटा में बाँध कर गंग धारा तुम ……..रखकर मस्तक पर
चंद्र …..

क्यों करते हो अभिमान …
इसीलिये क्यों लूं मै तेरा नाम ?

मालूम है मुझे ये जीवन, एक भँवर है…..

और रोज तेरे दर पर, शिव शंकर आना जाना है ….
लेकिन फिर भी , क्यों लूं मै तेरा नाम?

तू क्या कहता है भगवान ?

वैभव तो मिल जायेगा …
लेकिन जीवन मिलेगा कैसा…..नित गिर गिर कर
जीते जो लोग, उनका जीवन कैसा ….
इसीलिये क्यों लूं मै तेरा नाम ?

बनाकर सबको अपने हाथो का पुतला ….
रखते हो चेहरे पर मंद मंद मुस्कान ….
इसीलिये ,क्यों लूं मै तेरा नाम ?

है नहीं अच्छा इतना अभिमान!
कभी तो रख लिया करो,अपना भी मान….
इसीलिये ,क्यों लूं मै तेरा नाम ?

या तो फिर ….
कभी-कभी तो कर लिया करो ,सीधे-साधे काम….
तभी तो लूंगी तुम्हारा नाम …..नहीं तो ,क्यों लूं मै तेरा नाम ?

ऐ जीवन के खेवइय्या मेरे भगवान, तुझ पर ही निर्भर सबका आत्मसम्मान …

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2974shikhat

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कहानी का दूसरा पहलू मेरी दुनिया में आपका स्वागत है

मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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