“Everyday I look up at Sun , so that I can spread positivity in my life”
हम सबको यह पता है कि सूर्य की रोशनी कितनी महत्वपूर्ण होती है हमारी Biological clock भी तो इन्हीं के आसपास घूमती है । सूर्य भगवान को देखने पर हम ऊर्जा से भर जाते हैं । हमारे अंदर Positivity का प्रवेश तो होता ही है और Positive effect of nature भी आता है ।
हर प्राणी को सूर्य की ऊष्मा का एहसास होता है । मनुष्य तो घड़ी देखकर समय का पता लगाता है लेकिन ,पशु पक्षियों को सूर्योदय और सूर्यास्त का पूर्वाभास होता है।
सूर्योदय होने से पहले ही पेड़ों पर बसने वाले पक्षियों मे हलचल मच जाती है । इसी तरह की हलचल सूर्यास्त के होने से पहले भी दिखती है और इसके बाद शांति छा जाती है ।आप अगर ग्रामीण परिवेश से परिचित हैं तो, वहाँ सुबह-सुबह पक्षियों और जानवरों की आवाज से आपकी आँखें भोर मे ही खुल जायेंगी ।
वातावरण मे कोलाहल होता है ,और वो कोलाहल कान के ऊपर रखी हुयी तकिया को पार करके भी आप को जगा देगा । चिड़ियों की आवाज तो ऐसी होती है कि एक high pitch में फिर एक low pitch मे बीच-बीच में गाय , भैंस , कुत्ते या बकरी की आवाज ऐसा लगता है मानो किसी Rock band की प्रस्तुति हो रही हो।
कई सालों से मेरे दिन की शुरुआत भी सूर्य भगवान को देखकर होती है लेकिन हैं ये बड़े “जिद्दी” हर साल सर्दी के मौसम में और ,कभी-कभी बरसात के मौसम मे भी निराश होना पड़ता है । सूर्य भगवान ने आखिरकार फिर से परेशान करना शुरू ही कर दिया । मुझे पहले से ही पता था कि सर्दी बढ़ते ही मिजाज बदल जायेगा इनका , बेचारे सर्दी लगती है न इनको भी।
कितनी मोटी रजाई और कंबल ओढ़कर बादलों के बिस्तर पर ऊँघते रहते हैं । कौन समझाये इनको इतना आलस्य अच्छी बात नही होती । शायद इनको यह पता नही कि ,हर उम्र के लोग अपनी आँखें खोल कर आकाश की तरफ देखते हैं ,और उन्हें बादलों के बीच मे छिपा देख कर खुद भी रजाई कंबल ओढ़कर सो जाते हैं ।
जागते हुये ही कभी-कभी कल्पना मे घूमने चली जाती हूं ,सोचती हूं कि काश ऐसा होता कि सब cartoon serials जैसा होता ।तब ये सूर्य भगवान! जो इतनी देर से तो निकलते हैं और उसके बाद बहुमंजिली इमारतों के पीछे जाकर छिप जाते हैं । इन buildingsको हम Tom and Jerry cartoon serials जैसे झुका सकते ,या तोड़ मरोड़कर कर सूर्य भगवान को सामने ला सकते।
लेकिन सबसे ज्यादा मुश्किल इसमे ये आती कि बहुमंजिली इमारतों में बैठकर सूर्य भगवान को निहारते हुये लोग बेचारे उलट पुलट जाते । लेकिन ऐसा केवल कल्पना मे ही संभव हो सकता है ,नहीं तो मालूम पड़ता सूर्य भगवान तेजी से भाग रहे हैं और उनके पीछे पीछे इंसान उन्हें पकड़ने का प्रयास कर रहे हैं।यही सब ऊटपटांग से ख्याल दिमाग मे चल रहे थे ।
सूर्य भगवान को समझाने की कोशिश करते -करते मै एक बार फिर से कविता की तरफ मुड़ गयी …….
ऐ दिनकर !! दिवाकर ! !दिनेश !!
क्यूँ पड़े हो आलस्य मे तुम ….
बदल गयी ऋतु तो …
यूँ ही बदल गये क्यूँ तुम …
शरद ऋतु आते ही तुम्हे क्या हो जाता है ….
सबसे पहले तुम्हें कुहरे का कंबल भाता है …
दिखता कैसा है हिमालय …..
तुम्हारी किरणों के समक्ष …..
चाँदनी ही तो बिखरी होती होगी …..
सारी मेखलाओं पर ….
खोजती हैं वनस्पतियाँ भी तुम्हें …
रहती हैं तुम्हारे सहारे ही वो भी …..
क्यूँकि पकाना होता है ….
उनको भी अपना भोजन ….
प्रकृति के नियमों से बँधा होता है ….
हर किसी का जीवन …..
तुम्हारी किरणों से ही नव जीवन होता है …..
तुम्हारे जाते ही सारा विश्व सोता है …..
हो तो तुम जीवन के ही प्रतीक …
रखते हो दिन मे हर किसी को निर्भीक ……
तुम्हारी सुनहरी धूप हर किसी को भाती है …….
तुम्हारी किरणें तो हर किसी को लुभाती हैं …..
सूर्यास्त तो लाता है क्षणिक भय ……
होते ही सूर्योदय हो जाता है सबकुछ अमृतमय ……