आज का समय प्लास्टिक मनी का है
सहज ढंग से कार्ड स्वाइप कर खरीददारी करते हुए, गुल्लक और बटुए का तुलनात्मक विश्लेषण करते हुए उपजी रचना …
वर्तमान में अधिकांश लोगों की राय बटुए की फिटनेस को लेकर उचित भी लगती है I लेकिन बचपन के साथ गुल्लक की दोस्ती ,जिंदगी का अहम् सबक सिखाती थी ” फिजूलखर्ची पर रोक” “सहेजने की उम्दा सोच” जीवन के सफर में, मुसीबतों के दौर में उपयोगी समझ में आती है।
बटुआ भी वर्तमान में फिटनेस का कायल हो गया…
देख कर फिटनेस पसंद लोगों को जरा सा घायल हो गया…
आधुनिक दिखने की होड़ में ,बटुए ने भी जिद्द ठानी है…
प्लास्टिक मनी को साथ रखकर ,आम जनता से करवानी, खरीददारी में मनमानी है…
प्लास्टिक मनी और कार्ड स्वाइप के दौर में…
रह रह कर बटुए का नकचढ़ापन सामने आता है…
अलग अलग खण्डों में बटा हुआ बटुआ…
धातु के सिक्कों और कागज की नोटों का बोझ उठाने से मुकरता…
स्लिम ट्रिम से क्रेडिट और डेबिट कार्ड आसानी से, बटुए के खण्डों में सरक जाते…
अपने साथ साथ बैंकों की सारी जमा पूँजी को लेकर इतराते…
ध्यान से देखो अगर बटुए को..
भाता नहीं अब बटुए को अपना बेडौल सा शरीर है…
जिसके अंदर सिक्के भी खनकते थे
कागज की नोट भी झांकती थी…
किफ़ायत से खर्च करने की बात को ,बटुए के मोटापे के साथ कह जाती थी…
जैसे ही बटुआ जरा सा पतला होता था…
आम इंसान का दिल मनों भारी होता था…
बटुए की फिटनेस की पसंदगी के कारण ही शायद, आजकल गुल्लक उदास है…
हर घर में गुल्लक को, अपने अस्तित्व की तलाश है…
दिखती थी कहीं मिट्टी की, कहीं धातु की, कहीं प्लास्टिक की…
तमाम सरकारी ,गैर सरकारी बचत योजनाओं की आज भरमार है…
लेकिन ,बचपन में बचत का महत्व सिखाने वाली गुल्लक, आज बेज़ार है…
बचत की आदत जो किफ़ायत से खर्च करने की बात कहती थी…
बचपन से ही इंसान के अंदर, घर कर लेती थी…