प्राकृतिक सुंदरता के बीच यात्रा का
अलग ही अनुभव होता है….
जलस्रोत के किनारे बसे शहरों की खूबसूरती की बात भी अलग होती है…
शहर कितना भी भीड़ भाड़ वाला हो लेकिन समुद्र,नदी या झील के कारण
हमेशा मनोहर दिखता है….
इन जगहों पर आकर व्यक्ति इनकी खूबसूरती में खो जाता है….
ऐसी ही खूबसूरत सी जगह है…..
“पूर्वोत्तर का द्वार”कहा जाने वाला शहर “गुवाहाटी”
असम का सबसे बड़ा शहर होने के कारण, यहां आधुनिकता और प्राचीनता का अद्भुत संगम
देखने को मिलता है….
“प्रागज्योतिषपुर” के नाम से भी अपनी पहचान को
बताने वाला यह शहर….
प्राचीन गौरव और पौराणिक कथाओं के बीच में
अपने अस्तित्व को समेटे हुए दिखता है….
माँ कामाख्या देवी का सिद्ध शक्तिपीठ –
नीलांचल पर्वत पर स्थित मां कामाख्या देवी का मंदिर
शक्ति और साधना का सबसे बड़ा केन्द्र होने के कारण
गुवाहाटी शहर की पहचान है….
मां कामाख्या देवी का मंदिर, स्त्री के प्रति
सम्मान की बात बोल जाता है….
स्त्रीत्व के प्राकृतिक गुणों के कारण ही
स्त्री इस ब्रम्हाण्ड की जननी है…
इस बात को दृढ़ता के साथ कहता जाता है…..
आस्था और पौराणिकता से जुड़ी इस बात की
ब्रम्हपुत्र नदी साक्षी बनती है…..
ब्रम्हपुत्र नदी के किनारे बसा यह शहर…
नदी के कोप को हमेशा ही झेलता है…..
वहीं दूसरी तरफ उसके द्वारा दी जाने वाली
सौगातों को समेटता हुआ दिखता है…..
ब्रम्हपुत्र नदी भी बड़े आश्चर्य में डालती है…
यह सिर्फ एक नदी नही है….
यह एक दर्शन है समन्वय का…..
एशिया की सबसे लंबी नदी के तमगे से
नवाजी गई है….
अपने तटों पर कई सभ्यता और संस्कृति का
मिलन कराती है….
बहाव के अपने लंबे सफर में कई नाम बदलकर
सामने दिखती है….
कितनी सारी नदियों को अपने अंदर
समाहित करती है…..
किसी नदी का रंग लाल, किसी का नीला
किसी का मटमैला तो किसी का श्वेत
ये सभी नदियों को उनके मूल रूप में
स्वीकार करती है….
ब्रम्हपुत्र नदी का किनारा लोगों को
बड़ा भाता है…..
मोटरबोट,स्टीमर या क्रूज़ के जरिए नदी
को पार करने का चाव पर्यटक नहीं छोड़ पाता ….
माजुली द्वीप –
ब्रम्हपुत्र नदी मे स्थित ‘माजुली द्वीप’
असमिया संस्कृति की विलक्षण तस्वीर
प्रस्तुत करता है……
इस द्वीप ने ब्रम्हपुत्र नदी के कोप को हमेशा
मिट्टी के कटाव के रूप में सहा है….
असमिया विरासत की पहचान
सर्दी के मौसम में होने वाला “राग महोत्सव”
कराता है….
काजीरंगा नेशनल पार्क –
विश्व धरोहर के रूप में घोषित काजीरंगा नेशनल पार्क
अपने दलदलों, गैंडों, हाथी और जंगली भैंसों की
अधिक संख्या के कारण प्रसिद्ध है…..
काजीरंगा के रोमांच ने सातवीं सदी में भारत आये
ह्वेनसांग को भी प्राकृतिक सुंदरता से भावविभोर
कर दिया था…..
मां कामाख्या के अलावा चित्रांचल पहाड़ी पर स्थित
नवग्रह मंदिर.…
पिकाक हिल पर स्थित उमानंदा मंदिर भी
दर्शनीय है…..
असम की सांस्कृतिक और पारंपरिक विरासत
लोकनृत्य–
विरासत की बात करें तो ‘लोकनृत्य’ सबसे पहले सामने आते हैं…
बिहू नृत्य तो असम की पहचान के रूप मे समझ मे आता है…
बिहू नृत्य के समय पहने जाने वाला पारंपरिक परिधान , हमेशा अपनी तरफ ध्यान खींचता है…
हलके रंगों के साथ अक्सर लालिमा लिये हुए चटकीले रंग ! ऐसा लगता है माँ कामाख्या देवी की ऊर्जा को अपने साथ ले आये हो…
बच्चा ,बूढ़ा और जवान सभी उम्र के लोग थिरकते दिखते हैं…
धीमी गति के साथ शुरू होने वाला यह नृत्य, ब्रम्हपुत्र की लहरों समान ही दर्शकों को लगता है…
बिहू के अलावा झुमर नाच और बागरुम्बा भी असमिया लोकनृत्य का एक विशेष अंग है..
पारंपरिक परिधान-
महिलाओं के लिए पारंपरिक परिधान मेखला चादर और पुरूषों के लिये धोती- कुर्ता और गमछा होता है …
पारंपरिक भोजन-
पारंपरिक खाने की बात करो तो असमिया संस्कृति भी धनवान लगती है ….
ज्यादातर मांसाहारी खाने की विविधता है…
पारंपरिक असमिया भोजन मे खार और टेंगा महत्वपूर्ण होते हैं…
असम का तिल पीठा, बिहू के दौरान खाया जाने वाला विशेष पकवान है…
तिल पीठा भी असम की पहचान है…
लोकभाषा–
ज्यादातर असमिया और बोडो भाषा बोली जाती है,इसके अलावा बंगाली भाषा भी असम मे बहुतायत से बोली जाती है…
ऐसा लगता है मानो ! प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर असम प्रदेश! देशी विदेशी पर्यटकों को बुला रहा हो …..
रहस्यमयी ब्रम्हपुत्र नदी की बात बता रहा हो….
मां कामाख्या के सिद्ध मंदिर के माध्यम से गुवाहाटी शहर, मातृशक्ति की बात कह रहा हो….
काजीरंगा नेशनल पार्क की बात निराली….
गजराज के साथ जंगली जानवरों का दीदार ,कौतूहल के साथ-साथ रोमांच पैदा करता है…