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Daily LifeShort Stories

बात खिचड़ी की

by 2974shikhat November 23, 2019
by 2974shikhat November 23, 2019

खिचड़ी ” शब्द कानों मे पड़ते ही, अपने बारे मे सोचने पर मजबूर कर देता है….

बहुत व्यापक सा शब्द होता है…..

हर जगह उपयोग मे आता हुआ दिखता है…

सर्द हवाओं के बीच मे “खिचड़ी ” शब्द को सुनते ही,पास आता हुआ मकर संक्रांति का त्यौहार ….दान और पुण्य की बात कह जाता है…..

सामान्यतौर पर ज़रा सा, आरामतलबी के अंदाज मे पकाया हुआ भोजन होता है….

स्वास्थ्य की दृष्टि से सबसे अच्छा होता है….

आराम से पच जाता है….

हर समय मेहनत मे जुटे हुए ,आंतरिक अंगों को,राहत पहुंचाता है….

खाने की बात से ज़रा हट कर, अगर “खिचड़ी” के बारे मे सोचिये तो….

रोज के जीवन मे “खिचड़ी” शब्द से,अलग ही अंदाज मे आमना सामना होता है…

खिचड़ी सा परिधान…..खिचड़ी सा श्रृंगार …..खिचड़ी से बाल…..खिचड़ी सी भाषा…. खिचड़ी सी जुबान…..खिचड़ी सा व्यक्तित्व…..खिचड़ी से विचार….खिचड़ी से भाव…..खिचड़ी सी धुन…..खिचड़ी सा संगीत….खिचड़ी सा नृत्य …..

देश ,समाज , प्रदेश कोई भी हो, राजनीति की खिचड़ी से सामान्य जनता हैरान और परेशान…..

आधुनिक विचारधारा और पारंपरिक विचारों के बीच मे झूलती, खिचड़ी सी संस्कृति को आगे ले जाती दिखती युवा पीढ़ी…..

रोज के जीवन मे, ज़रा ध्यान से देखिये तो,सामान्य सी लगती है यह बात!

Image Source ; Google Free

युवा पीढ़ी के नज़रिए से अगर सोचिये तो,खिचड़ी शब्द की जगह वो “फ्यूजन” शब्द या “विलय” शब्द को सही समझते हैं…..

“खिचड़ी”शब्द का प्रयोग करने पर, नाक भौहों को सिकोड़ते हुए दिखते हैं…..

मानो या न मानो “खिचड़ी”किसी न किसी रूप मे हर जगह स्वीकार्य है…..

खिचड़ी शब्द को, अपनी रचना मे शामिल करने का विचार ,सामाजिक बदलाव के इस दौर मे

हिंदी भाषा को पढ़कर और सुनकर आया…..

ज़रा सा बदला बदला सा, हिंदी भाषा का स्वरूप दिखता है….

बिगड़े हुए हिंदी के शब्द हों ,जानबूझ कर प्रवेश कराये हुए अंग्रेजी के शब्द हों….

भाषा की सुंदरता को नष्ट कर देते हैं….

किसी भी भाषा का जानकार हो, वो भाषा की आत्मा को नही मारना चाहता….

लेकिन! “खिचड़ी”की बात से इंकार भी नही कर पाता….

सामान्य सी बात सामने निकल कर आती है….

“बोलचाल की भाषा”के रूप मे खिचड़ी हिंदी भाषा, सबसे ज्यादा स्वीकारी जाती है…

हिंदी भाषा! शब्दकोष के मामले मे….

भावों को व्यक्त करने के संदर्भ मे….

सटीक बात को, मुहावरों और लोकोक्तियों के माध्यम से, समाज के सामने रखने मे….

अन्य भाषाओं की तुलना मे, अमीर सी लगती है..

तमाम तरह की लोकभाषा, बोली के शब्दों के साथ…

Image Source : Google Free

हिंदी बोलने वाले प्रदेशों के भीतर ही, नगरों और कस्बों के साथ….

हिंदी भाषा भी बदल जाती है..

इस बात को क्षेत्रीय भाषा के जानकार, लेखकों के लेखन मे आराम से पढ़ा, और उनकी बातों मे सुना जा सकता है…

हमेशा से मुहावरों और लोकोक्तियों के बारे मे पढ़ते सुनते हुए…..

हिंदी भाषा के साथ ,जीवन के सफर मे चलते हुए, भाषा का मनोहारी रूप सामने आता है…

लोकोक्ति के बारे मे अगर बात करें तो,तीर के निशाने पर लगने वाली बात सही लगती है….

“नेकी कर कुएँ मे डाल”वाली बात,आज के समय मे विरली ही नज़र आती है….

सुख सुविधाओं की होड़ मे “अपना हाथ जगन्नाथ”की बात सही लगती है…

महानगरों मे दिखावे की होड़ और, आधुनिक दिखने की चाह मे “आ बैल मुझे मार”वाली बात बुरी आदतों के  पीछे भागते हुए ,समाज के लिए सटीक बैठती है…..

हमेशा से ही भारतीय समाज “गपशप”पर बहुत भरोसा करता है…

महिलाओं के साथ-साथ पुरुष भी “तिल का ताड़ बनाना”जैसे मुहावरों को, अपने जीवन मे भरपूर उपयोग करते हैं….

महानगरों मे सफलता को पाने की होड़ मे लोग “आकाश पाताल एक करते” हुए

“हवा से बातें करते” समझ मे आते हैं…..

अपनी असीमित इच्छाओं को, “सिर आँखों पर उठाते समय”खुद से ही संघर्ष करते ,दिख जाते हैं….

भाषा के साथ उपयोग मे आने वाला मुहावरा, अपने भीतर गूढ़ अर्थ को छुपा कर रखता है….

इसी कारण से, भाषा की सुंदरता को बढ़ाता हुआ दिखता है….

धनी हिंदी भाषा!अपनी आत्मा को नष्ट किये बिना….लोकभाषा, बोली,मुहावरे ,लोकोक्ति,  के अलावा देशज़ शब्द और विदेशी भाषा के  शब्दों के साथ, खिचड़ी होकर भी मन को भाती है…..

लेखकों के लेख, कवियों की कविताओं और, उपन्यासकारों के उपन्यास मे ,खुशबू बिखेरती दिख जाती है….

एक बार फिर से “खिचड़ी” के बारे मे सोचने पर मजबूर कर जाती है…

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