भारतीय सभ्यता और संस्कृति खुद मे ही,समृद्ध मानी जाती है…..तमाम तीज त्यौहार और व्रत के साथ, भारतीय संस्कृति अपना प्रभाव, विश्व के मानस पटल पर छोड़ जाती है….
कार्तिक मास की षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ पर्व,अपनी लोककल्याणकारी भावना के कारण देश विदेश के लोगों को आकर्षित करने लगा है….
यह बात पूरे विश्व के द्वारा स्वीकारी जा चुकी है कि,सूर्य ही सारे जगत की आत्मा है….सूर्य के कारण ही इस पृथ्वी पर जीवन संभव है…..छठ पर्व सूर्य भगवान और व्रती के बीच मे, सीधे संवाद का पर्व है…..इस पर्व मे किसी मूर्ति की आराधना नही की जाती…..
आराधना करते हैं,प्रकृति के द्वारा दिये गये जीवन दाताओं की…..चाहे वो जलस्रोत हों,आकाश मे अपनी किरणों और अपनी लालिमा के साथ विराजमान दिनकर हों ,मिट्टी हो या वनस्पतियाँ हो….लोकपरंपराओं मे अपने तेज को खोते हुये सूर्य और,अपने तेज से जग को आलोकित करने वाले सूर्य, दोनो की समान भाव से आराधना की जाती है…..
लोक परंपराओं के अनुसार सूर्य भी एक व्यक्ति है,वो भी रिश्तों और नातों मे बंधे हुए हैं…..लोकगीत मधुरता से, सूर्य से वार्तालाप की बात को बताते हैं….छठ पूजा की सबसे महत्वपूर्ण बात इसकी सादगी,पवित्रता और लोकपक्ष है…..यह पर्व प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग,आस्था और सम्मान के साथ करने की बात को बतलाता है….
मुख्य रूप से चार चरणों मे यह पर्व संपन्न होता है….
(1)नहाय-खाय –जो शुद्ध शाकाहारी भोजन और, स्वच्छता की प्राथमिकता बताता है
(2)खरना – पंचमी को दिनभर के उपवास के बाद,शाम को भोजन
जिसमे गन्ने के रस मे पका चावल,घी चुपड़ी रोटी,चावल का पिट्टा खाया जाता है
(3)संध्या अर्घ्य –सूर्य भगवान को सामूहिक रूप से षष्ठी को ,जल के बीच मे खड़े होकर अर्घ्य देते हैं……
बाँस के सूप मे छठी मैया को प्रसाद चढ़ाया जाता है…..
(4)सूर्योदय अर्घ्य –सप्तमी को उगते हुए भास्कर को,अर्घ्य देने के बाद,छठ पर्व संपन्न माना जाता है….
मुख्यतौर पर जमीन से जुड़ा हुआ पर्व है….इस पर्व की महत्वपूर्ण बात यह है कि,यह सामूहिक पूजा पद्धति को अपनाता है. …समाज के हर तबके के सहयोग के बिना, यह पर्व संपन्न नही हो सकता….
यह मुख्य रूप से प्रकृति पर्व है…यह त्यौहार पर्यावरण को बचाने और संवारने के लिए समाज को प्रेरित करता है…अबला समझे जानी वाली महिलाओं की ,दृढ़ इच्छाशक्ति और सहनशीलता को कठिन व्रत करते समय,प्रत्यक्ष रूप से दिखाता है…
पाॅलीथीन युग के इस जमाने मे,बाँस की टोकरी और सूप का उपयोग दिखता है,ऐसा लगता है, जमीन मे गहराई मे समाई हुई बाँस की जड़ें,बोल रही हों….कितनी भी तेजी से देश विदेश मे विकास करते रहो ,आगे बढ़ते रहो,लेकिन छठ पर्व पर बाँस के टोकरे और सूप को जरूर याद करना , इसी बहाने क्राफ्ट उद्योग को भी आगे बढ़ाना ……
झिलमिलाती हुई बिजली की झालरों के बीच मे,कुम्हारों के चेहरे की चमक भी बढ़ जाती है,कुम्हार चाक को अपनी ऊर्जा के साथ चलाते हुये,दियों को बनाने मे जुट जाता है…..मिट्टी के चूल्हे,अपने आप मे ही स्वच्छता के प्रतीक माने जाते हैं….
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बहुत सुंदर विष्लेषण
धन्यवाद 😊