तस्वीर ताज महोत्सव की खूबसूरत
नज़र आ रही थी……
तराशा हुआ संगमरमर हो या
ढलती हुई गीली मिट्टी….
दोनों ही कारीगर की कारीगरी
दिखा रही थी…..
ताजमहल अपनी भव्यता को दिखा रहा था….
शांत खड़ा था लेकिन चारों तरफ
निहार रहा था…..
घूमते हुए चाक पर मिट्टी घूमती जा रही थी…..
कुम्हार के कुशल हाथों से आकार लेती जा रही थी….
घूमता हुआ चाक मिट्टी को घड़े में
ढाल रहा था….
सधे हुए हाथों से चाक से घड़ों को
उतार रहा था….
कुछ घड़े ढलने के बाद तपने के इंतजार
में खड़े थे……
लेकिन कुछ तो सजने संवरने के बाद
मगरूर दिख रहे थे…..
अपनी तुलना ताज से कर रहे थे…..
इस निर्माण की प्रक्रिया का ताजमहल
साक्षी बन रहा था…..
दूर खड़ा अपनी धवलता से दमक रहा था…..
सूर्य की किरणें सरल और सहज नज़र
आ रहीं थीं…..
ताज की मीनारों के साथ घड़ों पर भी
पड़ती जा रही थी…..
ताजमहल विचारमग्न दिख रहा था…..
चाक पर घूमती हुई मिट्टी को
ध्यान से देख रहा था…..
ताज के विचारों का क्रम टूटा…..
मुख से शब्दों का बोल फूटा…..
बोला,मेरी कारीगरी और कलात्मकता का
सारा विश्व दीवाना है……
मेरी धवलता और सुंदरता तो नायाब
मानी जाती है…..
लेकिन यह चाक बिना छेनी हथौड़े के
आकार में कैसे ढालती है…..
मै तो धवल संगमरमर से बना हूं…..
कितने सारे छेनी हथौड़ों की चोट
सहने के बाद आकार में ढला हूं…..
चाक और मिट्टी का खेल मुझे लुभाता है……
बस इसीलिए दूर से खड़ा होकर निहारता हूं….
सूर्य की किरणों के साथ नीला आकाश भी
ताज की बातों को सुन रहा था…..
ऐसा लगा मानो कलात्मकता को निहारते हुए…..
मंद और शीतल पवन के माध्यम से अपनी खुशियों
को प्रकट कर रहा था…...