नन्हा सा अबोध, बालक हो या बालिका
ज्ञान के समंदर मे,गोते लगाने जाता है ।
शिक्षा की प्रथम सीढ़ी पर अक्षर ज्ञान मे तन्मयता के साथ जुट जाता है । बात अगर हिंदी भाषा की हो तो हिंदी वर्णमाला को सीखने के क्रम मे
‘क’ से “कमल”,’ख’ से “खरगोश” जैसे शब्द आज भी बच्चों के साथ-साथ, बड़ों को भी याद आते हैं ।जैसे जैसे हम ‘क’वर्ण से आगे, ‘च’वर्ण पर पहुंचते हैं ।’च’वर्ण को शब्दों के साथ जोड़ते हैं । ढेर सारे शब्दों के बीच मे से, ‘च’से चम्मच या ‘च’से चमचा शब्द चुपके से झाँकता दिख जाता है ।
अंग्रेजी मे अगर बात करो तो,पूरी की पूरी कटलरी के बीच मे से मुस्कुराता हुआ नज़र आता है । दैनिक जीवन की अगर बात करो तो रसोई मे उपयोगी रूप मे, बहुतायत से नज़र आता है । अपनी अलग-अलग आकृति और आकार से रसोई की शोभा बढ़ाता है । चमचे का उपयोग, रसोई मे करते करते हम भी इस शब्द से, अभ्यस्त हो गये है ।
जब भी चम्मच हाथ मे आता है । खाना बनाने या खाने के क्रम मे, तल्लीनता से जुट जाता है । आज चमचे ने हाथ मे आते ही चार बातें सुना दिया । अपनी बातों से मेरे विचारों का दायरा बढ़ा दिया । बोला,आप चम्मच शब्द को आखिर क्यों नही उपयोगी समझती हैं । एकाद कविता या शायरी चमचे के ऊपर क्यों नही लिखती हैं
पता नहीं है क्या आपको ?कार्यस्थल हो या,परिवार , या हो समाज । हर जगह दिखता, चमचों का विस्तार ।
चमचों की दुनिया बड़ी न्यारी होती है । सामान्यतौर पर स्वार्थ और, लालच के वाहन पर इनकी सवारी होती है धन,संपदा,यश,कीर्ति, ऐश्वर्य के साथ चमचों की फौज आती है भौतिक सुख सुविधाओं,एवम् यश और कीर्ति के कम होते ही पतली गली से यह फौज,खिसकती दिख जाती है ।
चमचों का है यह कहना हम है कलयुग की अनमोल खदान । पहले आप बताइये आप को क्यों नही है चमचों की पहचान ?
आप तो बस रसोई मे ही, चमचों का साथ निभाती हैं । कभी कड़ाही मे कभी कुकर मे दाल या सब्जी, चमचे की सहायता से पकाती हैं ।
अब ध्यान से सुनिये, हमारी बात । ये हैं हमारे अनमोल जज्बात । कलयुग है, सबसे बड़ी चमचों की खान । समृद्धिशाली और शक्तिशाली अपनी स्वार्थ की रोटी चमचों के बल पर ही सेंकते हैं । यूं ही आमजन के पक्ष मे,काम करने की बातों को हवा मे फेंकते हैं ।
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Fabulous post
😊