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Daily LifeShort Stories

होली का त्यौहार और उड़ता गुलाल

by 2974shikhat March 19, 2022
by 2974shikhat March 19, 2022

है न हमारा देश भी बड़ा विचित्र सा

पूछो न पूछो ,कहो न कहो ,मानो या न मानो हवा की सरसराहट बता जाती है , त्यौहार के आने की आहट।

जाती हुई सर्दियों के कपडे समेटने के बाद ,हल्की हल्की पंखों की हवा में आलस में पड़ा हुआ भारतीय समाज ,अचानक से स्फूर्ति से भर जाता है।

उमंग और उत्साह का शारीरिक भाव भंगिमा में समावेश। लोक गीत हो या फ़िल्मी संगीत , लय पर थिरकता हुआ जन समुदाय। बाल समुदाय का उत्साह ,पारम्परिक त्यौहार को सजीव कर जाता है। सुबह से शाम तक बच्चों की खिलखिलाहट , हाथ में पिचकारी और रंगों से एक दुसरे को सराबोर करने की होड़।

रंग गुलाल से ऐसे रंगे की , मुख के भीतर बैठी धवल दन्त पंक्तियाँ भी रंगों से सराबोर।

त्यौहारों के समय मिठाई की दुकानों की , छवि भी बदलती रहती है। रंगों के त्यौहार के समय मिठाइयों में ,गुझिया की प्रधानता। बिना गुझिया के त्यौहार में फीकापन।

आज तेल से भरी हुई कढ़ाई में तैरती हुई गुझिया के समूह को देखकर , स्मृतियों में खो गयी।महीनों पहले से होली की तैयारी , -आँगन और छतों पर सूखते आलू के पापड़ और चिप्स ! बच्चे खेल – खेल में ही चिप्स और पापड़ को उलटने – पलटने का काम निपटा देते थे। परिवार के हर उम्र के सदस्य का सहयोग , त्यौहार का उत्साह बढ़ा देता था।

जीवन के सफर में समय-समय पर आने वाले त्यौहार, ऐसा लगता है मानो कहते जा रहे हो, अपनी पारम्परिक विरासतों को संरक्षित करना ,अपने बच्चों को सौंपना ,एक अनकही सी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है।
एक बार फिर से कड़ाही में तैरती हुई, हल्की बादामी रंग की गुझिया की तरफ नज़र गयी।

छोटी-छोटी मैदे की पूरी ,उसके अंदर खोये के मसाले का समावेश। इलायची की महक न आये तो स्वाद में बहुत बड़ी कमी। मुख के भीतर चिरोंजी दाने और किशमिश का स्वाद। अगर गुथे हुए मैदे में मोयन की कमी तो स्वाद ज़रा सा जुदा।

बाजार से मावा मोल लेना , त्यौहार के समय सेहत के प्रति ज़रा सा आगाह करता है। घर में खोया बनाना एक लम्बी प्रक्रिया। गुझिया बनाते समय , धैर्य और अभ्यास की कमी तो गुझिया फ़टी। सारा तेल खराब और मेहनत चौपट।

भद्र समाज में हाथ झाड़ते हुए सुनाई पड़ जाती है ,ऐसी भी आवाज ! क्यों खटना रसोई में जब वही सामान बाजार में बिना मेहनत के मोल लेने से आराम से मिलता। तब महसूस होता है पारम्परिक त्यौहारों का, ज़रा सा आहत सा स्वरुप।

रंग – गुलाल पानी वाली होली से दूरी धीरे- धीरे बढ़ती जा रही है। फाग के गाने सिर्फ गांव ,कस्बों और छोटे शहरों तक सिमट गए हैं।

तेज ध्वनि में सुनाई पड़ता हुआ होली का संगीत ,लोगों के अंदर जोश भर रहा था। एक बार फिर से हर उम्र के रंगे- पुते चेहरे , ताल के बेहतर मिलाप के साथ थिरक रहे थे।
छोटे -छोटे बच्चों की हथेलियों से उड़कर , हवा में बिखरता हुआ रंग-गुलाल मानो, यह कहता जा रहा हो। स्वस्थ परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए , हमे इन रंगों में सराबोर होने दीजिये। पर्यावरण संतुलन की बात ,साल के कुछ विशेष दिनों के आगे पीछे करने की जगह , हर एक दिन करिये।
हमे हमारी पारम्परिक विरासतों को सहेजने दीजिये , लेकिन सौहाद्रपूर्ण वातावरण में।

childhoodGujhiyaHoliIndian society and cultureinspirationThoughtsTraditional festivals
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मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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