मनुष्य जन्म के साथ ही अपने जीवन में
परिवार धर्म और समाज से जुड़ा होता है । हर इंसान अपने धर्म और अपने विचारों से ,गहराई से जुड़ा होता है ।
यह बात बिल्कुल गलत नही कि किसी भी धर्म
जाति और संप्रदाय से ऊपर इंसानियत और मानवता
का धर्म होता है ।
हिन्दू नववर्ष की शुरुआत ने एक बार फिर से
मन को आस्था और विश्वास के साथ जोड़ दिया ।
नववर्ष के साथ जुड़े नवरात्र के दिनों ने ,देवी की आराधना को कभी मंत्रों या शब्दों के जरिए ,तो कभी मौन प्रार्थना के जरिए ही उपासना की तरफ मोड़ दिया ।
दिव्य अस्तित्व का सम्मान करना ही पूजा कहलाता है
व्यक्ति अपने भावों के द्वारा इसे भक्ति ,आराधना, सेवा,सत्कार
या स्तुति कहता जाता है ।
हिंदू घरों में कलश स्थापना के साथ मां की आराधना के साथ शुरू हुए हों नवरात्र या जम्मू-कश्मीर में हो नवरेह ,महाराष्ट्र का गुड़ी पड़वा हो ,या आंध्र प्रदेश का उगादी ,नाम भले अलग अलग हों ,सभी नववर्ष के उत्साह को दिखाते हैं ।
जाती हुई शीत ऋतु और आती हुई ग्रीष्म ऋतु के कारण होने वाले तमाम तरह के प्रभावों को ,आराधना और उत्साह के रंगों से रंगते जाते हैं ।
नवरात्र का पर्व कन्या पूजन की बात को दृढ़ता से कहता जाता है ,स्त्री रूप में देवी मां के अलग-अलग रूपों को दिखाकर महिलाओं के सम्मान की बात कहता जाता है ।
गुडी पड़वा वनस्पतियों के औषधीय उपयोग को
बताता जाता है ।
आम, नीम,बांस और नारियल के माध्यम से
आरोग्य और सुख समृद्धि को जोड़ता जाता है ।
जम्मू-कश्मीर का नवरेह पर्व भी प्रकृति के साथ
परिवार की सुख समृद्धि को जोड़ता है ।
मौसमी फल हों या फसलें, कलम दावात के साथ
विद्या और ज्ञान की वृद्धि की बात को भी बोलता है ।
मंत्रोच्चार के साथ, आंध्र प्रदेश का हर घर का आंगन गूंज जाता है ।
क्योंकि नये साल का त्योहार यहां पर
उगादी के नाम से मनाया जाता है।
घरों के दरवाजे तोरण, रंगोली और आम के पत्तों के साथ
सज जाते हैं ।
सहभोज के आयोजनों के समय अमीर गरीब
और जाति के भेद वाली सामाजिक बुराई नहीं दिखती ।
स्पष्ट रूप से त्यौहारों के साथ साथ प्रकृति भी
सकारात्मक विचारों के जरिए उमंग और उत्साह को लाती है ।
इन दिनों में शुभ कार्यो के आयोजन संपन्न होते हैं ।
प्रकृति के साथ साथ इंसान भी मन और विचारों से
निर्मल होते हैं ।