लेखन के लिए सामान्य सी ही तो लगती है न यह बात !
ज़रा सी प्रेरणा ,कल्पना की हिलोरों के बीच हिलते – डुलते से शब्द ,चुटकी भर वास्तविकता ,थोड़ी सी उधेड़बुन ,कभी ज्यादा कभी कम समय में अप टू डेट सी मुस्कुराती ,खिलखिलाती , ठहाके या अट्हास करती हुई सी रचना।
हम भी सुबह सुबह कुछ लिखने की प्रेरणा की तलाश में रहते हैं। कभी तो प्रकृति को ज़रा करीब से निहार लिया ,कभी रोज के कामों को निपटाते हुए ही शब्दों को खोज लिया ,कभी घर के साजो सामान से ही बतिया लिया, अगर प्रेरणा मिली तो ठीक नहीं तो, किताबों या लेखों के साथ ही समय बिता लिया।
इसीप्रकार की गतिविधि के समय , अचानक से सामने बिस्कुट आ गया।
तरह-तरह की गोष्ठियों के हमसफर के रूप में अपनी पहचान बता गया ,खरी- खरी बात भी सुना गया। सुबह की चाय के कप के साथ तश्तरी में नजर आने के कारण , हमारी कल्पना को प्रेरित कर गया।
समाज में होने वाले छोटे- मोटे आयोजनों में ,बिस्कुट के योगदान से इंकार नहीं कर सकते। धाम धुड़ूम की आवाजें निकालती कॉफ़ी मशीन ,सामान्य से ठंडी केतली में रखी हुई चाय ,कुरकुरी सी चिप्स और बिस्कुट किसी भी सभा की शान होते हैं।