आस्था और प्रार्थना के साथ !
मन का विश्वास और ,सावन मास जुड़ा होता है…..
धर्म कोई भी हो, देश कोई भी हो,आस्था और प्रार्थना जीवन को सार्थक रूप मे सफल बनाने के लिए आवश्यक समझ मे आती है..
प्रार्थना के बिना इंसान, जीवन की राह मे
डगमगाता है…..
आस्था और प्रार्थना के इसी क्रम के साथ सावन मास भी खड़ा नज़र आता है..चारों दिशाओं मे बिखरी हुई सकारात्मक ऊर्जा को यदि महसूस करो तो !
कहीं बमबम भोले,कहीं हरहर महादेव…तो कहीं “ओम् नम: शिवाय”के साथ सकारात्मक ऊर्जा जुड़ी हुई सी महसूस होती है….
विदेशी पर्यटकों को भगवान शिव का रूपआश्चर्य मे डालता है……भगवान शिव सौम्य और रौद्र, दोनो रूपों के लिए
विख्यात है……
तमाम नामों के बीच “आदिनाथ” भी है…..शिव का अर्थ “कल्याणकारी” है….भगवान शिव “लय एवम् प्रलय” दोनो को
अपने अधीन किये हुए हैं……इसीलिये “महादेव” के नाम से भी जाने जाते हैं……
सभी देवी देवताओं से अलग ही भगवान“भोलेनाथ” नज़र आते हैं…...
मृगछाला के साथ काया…..
सबसे अलग है शिव भगवान की माया…….
हाथ मे त्रिशूल,मस्तक पर चंद्रमा……
उलझी हुई जटाओं से, प्रवाहित होती गंगधारा……
गले मे कंठमाला की जगह नाग…..
श्रृंगार का साधन बन जाते हैं…….
त्रिशूल,नाग,डमरू और चंद्रमा से
भगवान शिव का मोह……
कौतूहल जगा देता है……
इनके बारे मे जानने के लिये,तत्पर बता देता है…..
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार…..
शिव भगवान की उत्पत्ति “ब्रम्हनाद” से हुई…..
तभी रज,तम,सत तीन गुण उत्पन्न हुए……इन्हीं तीनों गुणों को सृष्टि संचालन के लिए…..त्रिशूल रूप मे भगवान शिव ने धारण किया……कंठ से लिपटे हुए नाग, शिव के परमभक्त “वासुकी” हैं….
सागर मंथन के समय ,वासुकी नाग ने रस्सी का काम किया था…
इनकी भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव नेअपने कंठ पर लिपटे रहने का,आर्शिवाद दिया था…..शिव जी ने चंद्रमा का भी किया था उद्धार…..दक्ष के शाप से मुक्त करने के लिएअपने शीश पर दिया था स्थान……
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार…..देवी सरस्वती की वीणा से उत्पन्न ध्वनिसुर और संगीत विहीन थी…..
उस समय भगवान शिव के, डमरू से निकली ध्वनि से व्याकरण,संगीत के छंद, और ताल का जन्म हुआ…….शिव जी के डमरू को,ब्रम्ह का स्वरूप माना जाता है…..
शिवालयों और देवालयों मे, सावन मास मे लगी भीड़…..भगवान शिव के प्रति ,आस्था और विश्वास दिखाती है…..
लोक कल्याण की भावना और सकारात्मक विचारों से ओतप्रोत संपूर्ण सृष्टि
सावन मास मे नज़र आती है……