ये शब्दों से जुड़ाव भी अजीब सा होता है न ! लिखने के बारे मे सोचो या लिखने के लिए बैठो तो , ऐसा लगता है जाने किस विषयवस्तु की तरफ ये शब्द ले जायेंगे I आज कुछ लिखवाएंगे भी या सिर्फ बतकही छांटते हुए ही गायब हो जायेंगे I सुबह से ही शब्दों का सैलाब आ रहा था, जा रहा था I समझ में नहीं आ रहा था की कागज पर कुछ उत्कृष्ट उतरेगा या यूँ ही, सावन के मेघ समान !
लेकिन शब्दों की ढीठता और हमारे अंदर की लेखिका ! दोनों ने कुछ तो लिखेंगे वाले अंदाज से, कागज और कलम को निहारा I थोड़ी ही देर में हर्ष से भरे हुए मन और मष्तिस्क ने जीवन से जुडी हुई , हलकी फुलकी बातों को अपनी रचना में उतारा I
जब कभी भी अपने आसपास के दायरे से, मतभेद की बात समझ में आती तो, समाज में रहने वाला एक बड़ा तबका अपने आस पास सिमटा हुआ सा नज़र आता I अपने रूचि अनुसार अलग अलग कामों में जुट जाता I
ऐसे समय में घर के बड़े बुजुर्गों के द्वारा, कही हुई बातें उपयोगी समझ में आती I
सबसे अच्छा दोस्त किताबों को बना लोI अच्छा साहित्य पढ़ो, अच्छे विचारों को गुनो और बुनो I
लेकिन मानो या न मानो ! पुस्तकों को अगर तन्मयता के साथ पढ़ो तो, वो अपने अंदर डुबो सी देती हैं I कई दिन तक वही पात्र ! वही विषयवस्तु दिमाग में घूमते रहते हैं I
अगर आप ने किसी वेद, उपनिषद,महाकाव्य ,महाग्रंथ को पढ़ लिया तो , कुछ समय के लिए ऐसा महसूस होता हैI खुद के भीतर ज्ञान का अथाह सागर I थोड़ा बहुत ज्ञान, जिज्ञासु जनों के भीतर भी बाँट दो I कोई कविता या कहानी अपने अंदाज में ही बांच दो I शनैःशनैः वास्तविकता से आमना सामना I
ज्ञान का न कोई ओर न छोर, वही अनंत व्योम सा I किसी के भी भीतर सब कुछ नहीं समा सकता I कहाँ कहाँ से बटोर सकते हो बटोर लो I
मानव जीवन मानवीय भावों को तो मनुष्य, आसानी से समझ सकता हैIजीवन के अपने सफर में अपनी रूचि के अनुसार पुस्तकें पढ़कर, अपने ज्ञान को बढ़ा सकता हैI कभी निर्बाध रूप से ,कभी बाधाओं के बीच में आगे बढ़ने के हौसले को रख सकता है I
अपनी बुद्धि अपने विवेक का सदुपयोग कर सकता है I बुद्धि और विवेक के मामले में हमेशा मुझे पंक्षियों की दुनिया अपनी तरफ खींचती है I उन्हें देखकर उनकी उड़ान तो आकर्षक लगती है ,लेकिन विचारों का द्वंद ! शब्दों का उलटफेर, सब कुछ क्या मनुष्य समान या उससे इतर ?
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