“नमामि भक्तवत्सलं कृपालु शील कोमलं
भजामि ते पदांबुजं अकामिना स्वधामदं
निकाम श्याम सुंदरं भवांबुनाथ मन्दरं
प्रफुल्ल कंज लोचनं मदादि दोष मोचनं”
भक्तों के हितकारी कृपालु और अतिकोमल स्वभाव वाले!आपको मै प्रणाम करती हूं
जो निष्काम पुरूषों को अपना धाम देनेवाले हैं,आपके चरणों की मै वंदना करती हूं
चैत्र महीने की नवमी तिथि ! “माँ सिद्धिदात्री” की आराधना के साथ भगवान राम के जन्मदिवस को रामनवमी के रूप मे मनाये जाने की महत्ता भी रखती है।
दुर्गा स्तुति के साथ-साथ, रामकथा के मधुर स्वर भी, कानों को सुनाई पड़ते हैं।
“नौमी तिथि मधु मास पुनीता । सुकुल पच्छ अभिजित हरिप्रीता ।।
मध्यदिवस अति सीत न घामा । पावन काल लोक विश्रामा “।।
पवित्र चैत्र का महीना था,नवमी तिथि थी।शुक्लपक्ष और भगवान का प्रिय ‘अभिजित् मुहूर्त'(दोपहर बारह बजे के आसपास, कुछ पल के लिये आने वाला समय)था।
न बहुत सरदी थी,न धूप थी। वह पवित्र समय सब लोकों को शांति देनेवाला था।
“भए प्रकट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी
हरषित महतारी मुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी”
दीनों पर दया करनेवाले ,कौसल्या के हितकारी कृपालु प्रभु प्रकट हुए।
मुनियों के मन को हरने वाले उनके अद्भुत रूप को, विचार करके माता हर्ष से भर गयी।
अवधपुरी इस प्रकार सुशोभित हो रही है,मानो रात्रि प्रभु से मिलने आयी हो और सूर्य को देखकर मानो मन मे सकुचा गयी हो,परंतु फिर भी मन मे विचार कर मानो वह संध्या बन गयी हो।
‘रामचरितमानस’के अनुसार रावण ने पृथ्वी पर घोर अत्याचार किया।
रावण के आश्रय मे बढ़ते हुए अत्याचार के कारण, देवता मुनि और गंधर्व सुरक्षित जगह देखकर छिप गये थे ।
धरती भी रावण के अत्याचार से भयभीत हो, गौ का रूप धारण कर वहाँ गयी ,जहाँ देवता मुनि और गंधर्व छिपे हुए थे।
सब मिलकर ‘ब्रम्हा ‘जी के पास गये
ब्रम्हा जी सब के मन की बात जान गये,उन्होंने धरती से कहा
“धरनि धरहि मन धीर कह बिरंचि हरि पद सुमेरु
जानत जन की पीर प्रभु भंजिहि दारू न बिपति”
हे धरती ! मन मे धीरज धारण करके श्री हरि के चरणों का स्मरण करो ।
प्रभु अपने दासों की पीड़ा को जानते हैं । वो तुम्हारी कठिन विपत्ति का नाश करेंगे ।
सभी मिलकर कृपालु , दीनदयालु पृथ्वी के पालनकर्ता ‘सच्चिदानंद भगवान’ की आराधना करने लगे।
देवता और पृथ्वी को परेशान एवम् भयभीत जानकर , और उनके स्नेहयुक्त वचन सुनकर शोक और संदेह को हरनेवाली गंभीर आकाशवाणी हुई ।
कश्यप और अदिति ने भारी तप किया था । मै पहले ही उनको वर दे चुका हूं।
वे ही दशरथ और कौसल्या के रूप मे ,मनुष्यों के राजा होकर ,श्री अयोध्यापुरी मे प्रकट हुए हैं।
उन्हीं के घर जाकर मै रघुकुल मे श्रेष्ठ चार भाइयों के रूप मे अवतार लूंगा ।
मै पृथ्वी का सब भार हर लूंगा ।
हे देववृंद ! तुम निर्भय होकर जाओ ।
भगवान की वाणी को कान से सुनकर देवता तुरंत लौट गये।
उनका हृदय शीतल हो गया ।
एक बार भूपति मन माहीं । भै गलानि मोरें सुत नाहीं ।।
गुर गृह गयउ तुरत महिपाला । चरन लागि करि बिनय बिसाला ।।
रामचरितमानस के अनुसार एक बार राजा दशरथ के मन मे ग्लानि हुई कि मेरे पुत्र नही है।
राजा तुरंत ही गुरु वशिष्ठ जी के पास गये और चरणों मे प्रणाम कर बहुत विनय किया।
वशिष्ठ जी ने श्रृन्गी ऋषि के द्वारा पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया।
यज्ञ मे दी हुई आहुतियों के बाद,अग्निदेव हाथ मे खीर के पात्र के साथ प्रकट हुए ।
राजा दशरथ ने अपनी रानियों को खीर का प्रसाद खिलाया और सभी रानियाँ गर्भवती हुई ।
जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल ।
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल ।।
योग, लग्न,ग्रह,वार और तिथि सभी अनुकूल हो गये ।
जड़ और चेतन सब हर्ष से भर गये ।
क्योंकि श्री राम का जन्म सुख का मूल है।
मास दिवस कर दिवस भा मरम न जानइ कोइ ।
रथ समेत रबि थाकेउ निसा कवन बिधि होइ ।।
महीने भर का समय हो गया। इस रहस्य को कोई नही जानता ।सूर्य अपने रथसहित वहीं रुक गये,फिर रात किस तरह होती ।
सूर्यदेव भगवान श्री राम का गुणगान करते हुए चले। श्री राम के जन्म महोत्सव से सजी संवरी और उल्लासित अयोध्या नगरी के साथ साथ सारी प्रकृति को देखकर देवता ,मुनि और नाग अपने भाग्य की सराहना करते हुए अपने अपने घर चले ।।
(सभी चित्र internet से )
“लेख रामचरितमानस और स्तोत्ररत्नावली मे लिखे तथ्यों और श्लोक पर आधारित”
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Happy RAM Madam
Happy RAM Navami