यात्रा खुद ही, कभी कविता तो कभी,कहानी होती है…..
कभी तो शब्दों से बंध कर,वाक्यों से सज कर….
लंबे लंबे लेख भी लिखवा देती है…
कभी तमाम तस्वीरों को कैमरे के भीतर
सहेजती सी नज़र आती है….
यात्रा जीवंतता लाती है….
व्यक्ति की सोच अपने दायरे से बाहर निकलकर….
व्यापक होती हुई नज़र आती है….
वास्तविकता के धरातल पर भी बात
सही नज़र आ रही थी…..
हमे भी रेल यात्रा सामने नज़र आ रही थी…..
यात्रा के दौरान हमारी कलम भी चल पड़ी….
बस यूं ही यात्रा पर निकल पड़ी…..
हर यात्रा कविता या कहानी बुनती है…..
कलम विचारों को कान लगाकर सुनती है….
थी ये हमारी रेल की यात्रा…..
कुछ समय के लिए ही सही…..
दैनिक जिम्मेदारियों से था न कोई वास्ता…..
यात्रा रेल की, रेलवे प्लेटफार्म से भी मिलवा देती है…..
रेलवे प्लेटफार्म कोलाहल से भरा हुआ स्थान…..
कभी दिखता यात्रा के शुरू होने का इंतजार ….
कभी दिखता,गंतव्य पर पहुंचने के बाद का,सुकून और आराम…..
जीवन से जुड़ा सा लगता है ‘रेलवे प्लेटफार्म’….
हर यात्री के जीवन की अपनी यात्रा …..
अपने अपने जीवन का संघर्ष और संग्राम ….
यात्रा मे शामिल सी लगती हैं….
ध्यानमग्न वृक्ष की शाखायें,झाड़ियाँ और, लतायें …..
ट्रेन की खिड़की! आँखों देखा हाल बयान कर रही थी ….
अचल सी धरा भी हमारे साथ ही
दौड़ती भागती दिख रही थी……
अपने स्वरूप को कभी नदी,कभी तालाब…..
तो कभी खेतों मे बदलती दिख रही थी …..
गांव, शहरों और जंगलों से गुजरती हुई रेल से …..
कभी नज़र आती, जीवन से भरपूर प्रकृति……
कभी नज़र आती, विविधता को दर्शाती हुई
हमारी सभ्यता और संस्कृति …..
आकाश मे उड़ते हुए परिंदों की छाया भी
धरा पर दिख रही थी …..
बाँस के झुरमुट बातें करते हुए से लग रहे थे….
सबसे ऊपरी फुनगों पर….
सोच विचार मे डूबे हुए परिंदे नज़र आ रहे थे…..
अचानक से विचारों की श्रृंखला को
विराम लग गया….
अगल बगल से, तीव्र गति से गुजरती हुई गाड़ियों का
शोर सुनाई पड़ गया……
जीवन की आपाधापी वहाँ पर भी नज़र आ गई …..
रास्तों और जीवन के सफर मे समानता की बात को
एक बार फिर से बतला गई …..