April10, 2017
ए “श्री”! तू फिर से चिपक कर बैठ गयी ट्रेन की खिड़की से,तेरे से ज्यादा बोर लड़की तो हमने आज तक नही देखी,सहेलियों ने बड़े जोर से अपना गुस्सा निकाला था “श्री” के ऊपर।
“श्री”के ऊपर अपनी सहेलियों के गुस्से का कोई असर नही दिख रहा था, सच मानो तो “कान पर जूँ तक न रेंगना” वाला मुहावरा अपने को सिद्ध कर रहा था।
बड़े आराम से उसने जवाब दिया,तुमलोगों को पूरी ट्रेन मे तफरीह करनी है तो कर लो,लेकिन मुझे छोड़ दो,मै नही आने वाली तुम्हारे साथ।जब तक सारे एक साथ किसी बोगी मे इकट्ठे होने की जगह खोजो,तब तक मै दिन के उजाले मे बाहर के नजारे देखती हूं।ऐसा बोल कर वह एक बार फिर से, खिड़की की तरफ अपनी गर्दन को फेर कर बाहर की तरफ देखने लगी।
इन लड़कियों के चक्कर मे कितने सारे पहाड़ी नदी नाले निकल गये,गिन भी न पायी “श्री”! कई पेड़ तो ऐसे लग रहे थे कि, अपनी शाखाओं को नदियों के पानी मे नहला रहे हों। तेज हवा के झोंकों के साथ झुकी हुयी शाखायें, पानी मे डुबकी मार रहीं थी और बाहर निकल रहीं थी।
उन भीगी हुई शाखाओं पर लगी हुई पत्तियों से ,पानी की बूँदें बड़ी तेजी से अलग होकर हवा मे बिखरती जा रही थी।उनकी शीतलता को दूर से ट्रेन की खिड़की से भी महसूस कर पा रही थी “श्री”! सारी सहेलियाँ अपना पाँव पटकते हुए दूसरी बोगी मे चली गयी ।
युवा महोत्सव से युनिवर्सिटी का ग्रुप वापस आ रहा था। इस बार का युवा महोत्सव का ज़ोनल भी नार्थ ईस्ट मे था।प्राकृतिक सुंदरता से भरे इन शहरों को जोड़ने वाले रेल मार्ग भी, प्रकृति की सुन्दरता को खिड़की के माध्यम से ही दिखा देते हैं।
“श्री”उसी दृश्य को देखने मे तल्लीन थी।पूरी ट्रेन मे अलग-अलग युनिवर्सिटी के लड़के और लड़कियाँ भरे हुये थे।युवा महोत्सव मे जाते समय वाला उत्साह, अब लौटते समय किसी मे भी नही दिखाई दे रहा था।साथ मे आयी हुई टीचर्स भी किसी कोने मे बैठकर, अपनी शापिंग या अपने परिवार की बातें करने मे व्यस्त थीं।
हर कोई अलग-अलग काम मे व्यस्त था । कोई अपनी बर्थ पर अधलेटा होकर,प्लेटफार्म पर मिलने वाला कोई साहित्य पढ़ रहा था Iकोई चने वाले से चने खरीद कर उसमें नीबू,प्याज और नमक की मात्रा जाँच रहा था।
प्लेटफार्म पर मिलने वाली पूरी सब्जी देखने मे कितनी स्वादिष्ट दिखती है न! पता नही खरीदूं कि न खरीदूं ,असमंजस मे पड़ गयी “श्री” पेट मे चूहे बड़ी जोर से कूद रहे थे,लेकिन पिछली साल प्लेटफार्म पर खरीद कर खाये हुए समोसे के, दुष्परिणाम याद आ गये उसे।
वैसे भी ये पूरी सब्जी वाला भी कितनी मरी मरी पूरियाँ बना रहा है,और कितनी छोटी लोई काट रहा है। इस आदमी को तो कभी जोर से भूख लगे,और इसकी बीबी इसे इतनी छोटी छोटी ही चार पूरियाँ खाने को दे,तब इसे समझ आयेगा कि, जोर से भूख लगने पर रोटी और पूरी का आकार कितना महत्वपूर्ण होता है।
मेरी बनायी हुयी पूरी तो कढ़ाई मे पड़ते ही,अपने गालों को फुलाकर नाचने लगती है।माँ ने कितनी सारी खाने की चीजें जाते समय रास्ते के लिए दी थीं,और बड़े प्यार से समझाया भी था,सबकुछ सहेलियों के बीच मे बाँट मत देना।मै तुम्हारी इस आदत से बहुत परेशान हूं,खुद का पेट भरे या न भरे। तुम्हारा बहुत सारा समय और खाना , दोस्ती निभाने मे ही चला जाता है।
कभी-कभी खुद के लिए भी स्वार्थी होना सीख लो।अगर स्वार्थी नही हो सकती तो,अपनी माँ की मेहनत की कद्र कर लो,तुम्हारे लिए मेरी ममता ही है, जो मुझे रसोईघर मे खड़ा रखती है।
माँ की समझायी हुयी सारी बातों के साथ-साथ,उनके बनाये हुये लड्डू और नमक पारे का स्वाद भी जीभ पर आ रहा था। “श्री” के चेहरे पर आते जाते हुये भावों को , शायद सामने बैठे हुये लोग पढ़ने की कोशिश कर रहे थे ।
सामने बैठे हुये एक बुजुर्ग व्यक्ति ने ,उसके दिमाग की उथल पुथल को पढ़ लिया और बड़े प्यार से पूछा, बेटा भूख लगी है शायद तुम्हें !आओ यहाँ आकर हमारे साथ खाना खा लो । ये ट्रेन भी बड़ी अजीब सी जगह होती है ,किसी का भी खाने का डिब्बा खुलते ही अगल बगल बैठे लोगों की नजर एक बार तो जरूर उधर जाती है ।
अगर साथ मे छोटे बच्चों वाला परिवार होता है, तब तो बड़ी मुश्किल होती है बच्चों को सँभालने मे , वो तो दूसरों के खाने को बार बार घूरते हैं I भले उनका पेट भरा हो और खाने की ढेर सारी चीजें उनके पास हो I माँ के लिये थोड़ी शर्मनाक स्थिति होती है । बड़ों को भी अपने आप को दूसरी तरफ व्यस्त करना पड़ता है ,मन ही मन मे वो सोच रही थी ।
अरे नहीं अंकल ! पेट तो हमारा भरा हुआ है, लेकिन प्लेटफार्म पर मिलने वाली पूरी सब्जी लालच दिला रही है, और कोई बात नही है । चलो कोई बात नही , अच्छा आओ कम से कम हमारे साथ यहाँ आ कर बैठ तो जाओ , अकेले बैठे बैठे बड़ी देर से कुछ सोच रही हो I उन अंकल ने अपनत्व दिखाते हुये “श्री “के साथ बातों का सिलसिला आगे बढ़ाने की कोशिश किया ।
नहीं अंकल आप गलत सोच रहे हैं , मेरी तो बचपन से आदत है । ट्रेन या बस की खिड़की मिल जाये तो मै 5या6 घंटे भी बाहर देखते हुये निकाल सकती हूँ , और खुश रहती हूँ, ऐसा लगता है कि रास्ते मे मिलने वाले पेड़, नदी,तालाब सब अपनी अपनी गर्दन हिला-हिलाकर मुझसे बातें कर रहे हों,अच्छा लगता है मुझे,ऐसे शांत होकर बैठना।
बड़ी मुश्किल से उन बुजुर्ग अंकल को टाल पायी थी ” श्री “। उन अंकल के बगल मे बैठा लड़का शायद उनका पोता रहा होगा, उसके चेहरे की सारी चमक अचानक से गायब हो गयी कितने चक्कर काट चुका था वो पूरी ट्रेन के ।लगता है गर्लस कालेज के चक्कर काटने की आदत पड़ी हुयी थी बेचारे को ।
बीच-बीच मे ट्रेन के गेट पर खड़ा होकर , अपने मुँह मे लगी हुयी सिगरेट वाली भट्टी भी लाइटर से सुलगा रहा था I वापस आते समय कपड़ों पर डिओ छिड़क कर और च्विन्गम चबाते हुये, बनावटी मुस्कान चिपका कर वापस बैठ जा रहा था ।शायद उसकी बहन थी वो जो उसके बगल मे बैठते ही रहस्यमयी हँसी हँसकर, लम्बी लम्बी साँसे चुगली वाले अंदाज मे खींच रही थी ।
लेकिन कितना ‘बत्तमीज’ लड़का था वो, बार बार ‘कनखियों ‘से घूरे पड़ा था । हॉस्टल मे रहने के कारण और अकेले सफर करते-करते ऐसे लोगों की नजरों को, पहचानने की आदत पड़ गयी थी उसको ।
सारी सहेलियाँ जुगत लगाने मे जुटी हुयी थी कि, सब एक साथ इकट्ठे कैसे हो ? कोई एक बोगी मे था तो कोई दूसरी बोगी मे।सारा काम बड़ी तल्लीनता के साथ हो रहा था I सबने अपने सामान को चेन से बाँधकर रखा हुआ था ।
तभी बड़ी जोर से आवाज आयी “श्री” यार आ चल ,बगल वाली बोगी मे हम सभी को बर्थ मिल गयी I बड़ी मुश्किल से मनाया यार उन लड़कों को, एक दो घंटे की बातचीत मे ही मान गये ।चल न ,अब देर मत कर ,ला तेरा सामान हम सब मिलकर ले चलते हैं, वैसे भी तेरा काम बिना कुली के तो चलता नही।
पागल लड़की 3-4 घंटे से बैठी हुयी है अकेले ,ये नहीं कि थोड़ा सा ट्रेन मे तफरीह ही कर लेती ,तेरे जैसे लोगों का तो भगवान ही मालिक है ।अपनी सहेलियों की प्यार भरी डांट सुनकर, हँसते हुये बर्थ छोड़ कर खड़ी हो गयी “श्री”। तभी अचानक से नमिता चिल्लायी यार आँटी के कारण ही तेरा इतना सामान बढ़ता है।
कितनी सारी खाने पीने की चीजें बना कर देती हैं हम सब के लिये ,लेकिन “श्री” इस बार तो हॉस्टल पहुँचने के पहले ही सब कुछ खत्म हो गया । सारी की सारी भुक्खड़ सहेलियाँ दुखी हो गयी।अंकल का पोता बेचारा दुखी और बेचैन हो गया ,तभी अचानक से “श्री” को बड़ी जोर का धक्का लगा, पीछे मुड़कर देखा तो हमउम्र एक लड़की थी ।
आप यहाँ से जा रही हैं क्या? मेरा सफर सिर्फ 4 घंटे का है I सोने के समय के पहले मै उतर जाऊँगीI मै बैठ जाऊँ क्या यहाँ ? उस लड़की ने पूछा ,”श्री” के कुछ बोलने से पहले अंकल का पोता “दाल भात मे मूसर चंद “(दो लोगों की बातों मे जबरजस्ती घुसना) जैसे कूद पड़ा और फोन को चार्जिंग प्वाइंट पर लगाने के बहाने, पास मे आ कर खड़ा हो गया।
आप बैठिये आराम से अगर कोई आयेगा भी तो , आप हमारी बर्थ पर आ जाइयेगा I मै तो इधर उधर टहल कर टाइम पास कर लूँगा I उसके चेहरे की चमक वापस आ गयी थी ,बड़ा खुश दिख रहा था ।
धीमी सी आवाज मे “श्री” के पास आकर उसने बोला बाय ! सारी सहेलियों ने एक साथ बोला बाय ! सभी मुस्कुराते हुये पड़ोस वाली बोगी मे चली गयीं , और एक बोगी मे समा गयी ।
सारी रात अन्ताक्षरी का धमाल होने वाला था । तीन दिन के युवा महोत्सव मे किसके पास क्या मसाला था , उसका पोस्टमार्टम होना बहुत जरूरी था। खिड़की के बाहर अँधेरा छाने लगा था, लेकिन ट्रेन के अंदर की रौनक बढ़ गयी थी । थोड़ी देर पहले तक दिखाई देने वाली खुराफाती लड़कियाँ कहीं गायब हो गयी थी। ट्रेन खड़ी थी कोई स्टेशन था शायद!
अचानक से जोर जोर से आवाज आने लगी ,’एक्सक्यूस मी प्लीज’ रास्ता दीजिये नही तो ये सारा खाना आपके ऊपर ही गिर जायेगा I
देखा तो खुराफाती टीम हाथ मे खाना लेकर आ गयी थी।उनके हाथों मे प्लेटफार्म पर मिलने वाले, समोसे ,पूरी-सब्जी और दो या तीन थर्मस मे काॅफी थी ।
सभी की आँखों की चमक बढ़ गयीI किसी को भी हाइजीन का कोई ख्याल नही था I सब टूट पड़े भुक्खड़ों जैसे खाने पर क्योंकी “सफर अभी लंबा था और ,सभी के पेट मे भूख ने मचाया हल्ला था Iट्रेन ने बड़ी जोर से सीटी मारी और चल पड़ी अपने गंतव्य पर।
बोगी मे होने वाला शोर , मधुमक्खियों की भनभनाहट से शुरू होकर, मैनाओं के शोर मे बदल गया ……
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Bahut badiya Safar raha. My brother was just like Sri as a kid. He would sit by the window and look out through the entire journey.😀
Haha ..achha ….intresting lga aapka comment😊waise shayad train ki journey mai milne wale kai character hai meri is story mai ..Thanx Radhika😊
Ha bilkul. Isi liye there was an instant connect 👍