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Short Stories

मुग़ल सल्तनत में कविता ,रुबाई ,दोहा और चौपाई(भाग- ८)

by 2974shikhat June 22, 2022
by 2974shikhat June 22, 2022

महामानव तुलसीदास और अब्दुल रहीम ख़ान ख़ाना

अब्दुल रहीम ख़ान ख़ाना को सामने बैठा देख ,संत कवि की आँखों में सम्मान ,स्नेह ,कुशलक्षेम जानने की जिज्ञासा ,सारे भाव एक साथ छलक
उठे।

ओह अब्दुल रहीम ! कहाँ थे आप ?
आप न केवल कवि हैं ,रसिक कवि हैं। मंत्री तो थे ही —?

हाँ कभी मंत्री भी था , आपको तो सब याद रहता है।
वाह , भूलता कैसे ? आपके पिता बैरम खां थे।
आपके पिता को मक्का शरीफ भेजने के बाद ही तो ,अकबर बादशाह ने आपको अपना मंत्री बनाया था।

अयोध्या में रहते हुए मैंने यह खबर सुनी थी।
अब्बा हुज़ूर भी कहाँ मक्का पहुँच सके ,रास्ते में किसी पठान ने बदला लेने के इरादे से उनका खून कर दिया।
इतने दिन कहाँ थे ,दिखाई नहीं दिये ?
देखते कहाँ से ,बीस साल से तो कैद में बंद था।

आप और कैद में ! लेकिन,क्यों ?
सुनकर क्या करेंगे कविवर ? था मंत्री। अकबर बादशाह के मरते ही हो गया कैदी।
कुसूर मेरा ही था कविवर –

अकबर बादशाह के आखिरी दिनों में मैंने, मानसिंहऔर कुछ अमीनों ने मिलकर बादशाह से कहा था –
शाहज़ादा सलीम बाग़ी हो गए हैं ,इसलिए उनके बड़े बेटे खुसरो को गद्दी पर बैठाया जाये।
लेकिन बादशाह ने मन ही मन शाहज़ादा सलीम को , गद्दी सौंपने की बात सोच रखी थी।

शाहज़ादा सलीम के गद्दी पर बैठते ही मै कैद में डाल दिया गया ,और आरोप लगा बेधर्मी का।
कविवर मै ‘रामचरितमानस’ गाना और उसकी कथा सुनना , पसंद करता था। जहाँ भी कथा होती थी सुनने बैठ जाया करता था। यही मेरा कुसूर था।

हिंदुस्तान का इतना बड़ा ‘महाकाव्य’ सुनना मेरे लिए बेधर्मी हो जायेगी ,यह मैंने कभी सोचा न था।
कितने दिन हुए आपको छूटे ?
अभी – अभी कुछ दिन पहले ही।
आगरा एक बार किसी को कैदखाने में दाल देता है तो ,उसकी बात भूल जाता है।
मै बीस साल बाद छूटा हूँ।

सहसा अब्दुल रहीम पूछ बैठे ” हिंदुस्तान के बारे में कुछ सोच रहे हैं कविवर “
मै क्या सोचूंगा ,कमजोर इंसान हूँ। देश का जो हाल हो रहा है ,सोचकर मन भयभीत होता है।
किसानों का हाल बुरा है ,शाही सिपाहियों का हाल बुरा है ,हिंदुस्तानी समाज में जनाना का हाल बुरा है।

तुलसीदास जी बोले ” एक दिन ‘कृष्णानंद आगमवागीश’ की ‘तंत्रसार’ पुस्तक को उलट – पुलट रहा था। उन्होंने कहा है , सभी अनुष्ठानों में स्त्रियों को पुरुष के सामान अधिकार प्राप्त है।
लेकिन पता नहीं समाज में बदलाव कब आयेगा।

संत कवि चुपचाप देख रहे थे ,उनकी आँखें भर आयीं।
उन्हें याद आया कभी रहीम खानखाना के सिर पर , घुंघराले बाल हुआ करते थे।
धीरे – धीरे बोले “रामचरितमानस का रसास्वादन करने की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ी आपको “

इस समय गंगा के किनारे के मंदिरों में आरती हो रही थी ,जिसके घंटे की आवाज संतजी की खिड़की के भीतर तक आ रही थी।
बहुत दिनों बाद दोनों मिले हैं ,एक संत और एक कवि थे। दूसरे कवि ,रसिक ,शाही दस्तूर के पक्के कभी मंत्री रह चुके थे ,फिर लम्बे अरसे तक कैदी भी।

रहीम खानखाना बोले –
कविवर ! अपने शरीर की तरफ ध्यान दीजिये। आपको और लिखना है ,और गीत गाने हैं।
आजकल जोर से हँसते नहीं हैं तुलसीदास ,हँसने से छाती में दर्द होता हैं। सीने में कफ जम गया है।

मुस्कुराकर बोले – न अब नहीं रहीम ,बहुत लिखा है।
मुझे अब कोई अफ़सोस नहीं है।
क्या दिया है हिंदुस्तान के समाज को ,ये तो मुझे पता नहीं।
लेकिन , पाया जो है वो बहुत है।

बहुत देर तक कोई कुछ न बोला।
बाहर गंगा आ -आकर किनारे से टकरा रही थी।
अब्दुल रहीम ख़ान ख़ाना देख रहे थे कि, तुलसीदास जी का स्वास्थ बहुत गिर गया है।
उम्र में बहुत बड़े होंगे उनसे।

हिंदुस्तान भर में गंगा के दोनों किनारों पर , जितने राम भक्त दिखाई पड़ते हैं ,जो भी कथाएं गाई और सुनाई जाती है – सबके जन्मदाता यही तो हैं। इन्हीं कि चौपाइयाँ ,दोहे इंसान के जीवन का अंग बन गए हैं।
जब तक इंसान का जीवन इस धरा पर रहेगा ,तब तक उसकी प्रार्थना आराधना से ये चौपाइयाँ ,दोहे जुड़े रहेंगें।

महाकाव्य के रचयिता हैं – “महामानव तुलसीदास”

Abdul Rahim khan -e- khanaGanga ghatHumanityIndian society and cultureKashiMughal EmpireRamcharitmanasSant Kavi TulsidasStory telling
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2974shikhat

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