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माँ दुर्गा के साथ दिल्ली के दिल मे बसा बंगाल

by 2974shikhat September 27, 2019
by 2974shikhat September 27, 2019

Navratri

ये दिल्ली महानगर भी अपने अलग-अलग रूप दिखाता है

 यही महानगर महानगरीय संस्कृति और पाश्चात्य संस्कृति के साथ, आधुनिकता का चोला उतारकर,पूरी तरह से पारंपरिकता के साथ भक्ति भाव मे डूबा हुआ नज़र आता है I

शरद ऋतु की शुरुआत के साथ ही, माँ शक्तिस्वरूपा के पदचाप की आहट आने लगती है I देवी माँ की आराधना के समय यही दिल्ली, अपने बदले हुए अंदाज के साथ,नज़र आती हैIआधुनिक विचारधारा और पाश्चात्य संस्कृति को, दृढ़ता के साथ स्वीकारने वाला दक्षिणी दिल्ली के इलाके का बंगाली समाज हो ,या माँ दुर्गा की आराधना को स्वीकारने वाले अन्य लोग हो I

महालय से लेकर विजयादशमी तक माँ की आराधना,एक नयी शक्ति और ऊर्जा का जनमानस मे संचार करती है 

कलकत्ता भले ही दुर्गा पूजा का समारोहों के आकर्षण का केंद्र हो,लेकिन राष्ट्रीय राजधानी भी इससे कुछ कम नही I दिल्ली मे भी पूजा समारोह के लिए करीब 1000 से ज्यादा ही पंडाल सजते हैं I

बंगाल मे तो सोलहवीं शताब्दी से ही सामूहिक दुर्गा पूजा की बात,इतिहास के पन्नों के माध्यम से पता चलती है I

लेकिन दिल्ली महानगर मे सबसे पहले, पुरानी दिल्ली के इलाके मे माँ की सामूहिक पूजा की शुरुआत 1910 मे हुई I जो प्रवासी बंगालियों के द्वारा आयोजित की गयी थी Iदिल्ली मे एक बात दुर्गा पूजा के समय,हमेशा अपनी तरफ ध्यान खींचती है I

भारतीय सभ्यता और संस्कृति की उत्कृष्ट मिसाल

भारत की राजधानी के दिल मे यूँ ही नही बस गया बंगाल

इतिहास के पन्नों के अनुसार

दिल्ली दरबार लगने के बाद जब,भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली स्थानांतरित किया गया I तब सबसे ज्यादा सरकारी नौकरी मे लगे हुये बंगाली ,पुरानी दिल्ली मे आकर बस गये I भारत विभाजन के बाद, पूर्वी बंगाल पाकिस्तान मे चला गया I पूर्वी और पश्चिमी बंगाल मे,सरकारी बंगाली अधिकारी अपने आप को बँटा हुआ महसूस करने लगे I इसमे से कुछ तो पाकिस्तान चले गये,और कुछ यहीं रह गयेI

पहले पुरानी दिल्ली के इलाकों मे रहने वाले, बंगाली समुदाय के ज्यादातर लोग आबादी बढ़ने के कारण, दक्षिणी दिल्ली की तरफ स्थानान्तरित हो गयेI

यही कारण है कि, दिल्ली के दिल मे बस गया बंगाल

ऐसा नही है कि माँ शक्तिस्वरूपा, किसी एक प्रदेश या इलाके की देवी हैं I माँ की शक्ति अनंत और विशाल है,लेकिन पंडाल के माध्यम से सामूहिक पूजा से जनमानस का परिचय कराने मे, बंगाली समुदाय ने अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया I दुर्गा पूजा बंगाल मे आज भी, शक्ति पूजा के रूप मे प्रचलित है I बंगाली समुदाय कहीं तो बहुत आधुनिक नज़र आता है,लेकिन दूसरे छोर पर अपनी परंपरा और सांस्कृतिक विरासत के प्रति संकीर्ण भी है, सजग भी है I

घर के बड़े बुर्जुगों के मन मे अनजाना सा भय भी है कि, कहीं परंपरा और संस्कृति की जड़ें हिल तो नही रही हैं I चाहे खाने के स्वाद की बात हो या, भाषा और व्यहवार की बात हो I सामूहिक पूजा के प्रचलन से पूर्व, भारतीय समाज मे दुर्गा पूजा सिर्फ धनाढ्य वर्ग के घरों के भीतर ही सिमटी हुई थी I सामूहिक पूजा ने समाज मे काफी सकारात्मक बदलाव किया I

दुर्गा पूजा सिर्फ मिथ की पूजा नही,बल्कि स्त्री की ताकत,सामर्थ्य और उसके स्वाभिमान की सार्वजनिक पूजा है I दुर्गा पूजा की ख्याति ब्रिटिश राज मे और भूतपूर्व असम मे धीरे-धीरे बढ़ी I

हिंदू समाज सुधारकों ने दुर्गा को भारत मे अलग पहचान दिलाई, और इसे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का प्रतीक बनाया

दुर्गा एक कोमल और सुंदर स्त्री भी हैंI

उनकी शारीरिक संरचना, सामान्य स्त्री के समान ही हैंI

उनके पास एक जोड़ी तेजस्वी आँखें भी हैंI

उन आँखों मे सौंदर्य को बढ़ाता हुआ, काजल भी लगा हुआ हैI

उन्हीं आँखों मे, अत्याचार के खिलाफ दिखता हुआ रोष भी हैI

उनके पास असाधारण पौरूषवाले हाथ भी हैंI

इन सब के साथ, चेहरे पर ममतामयी मुस्कान भी है I

कितना भी तेजी से भागता हुआ हमारा दिल्ली शहर हो,लेकिन दुर्गा पूजा के समय पूजा पंडालों के भीतर सिमटता नज़र आता है I सुबह शाम का शंखनाद, मधुर लय के  साथ होती हुई आरती,घंटों की आवाज, तरह-तरह के भोग का स्वाद I संदेश,राजभोग और रसगुल्लों की मिठास I तांत,बालूचेरी,जामदानी,मटका सिल्क ,काँथा सिल्क के अलावा अनेक प्रकार की साड़ियों के साथ महिलाओं और लड़कियों का श्रृंगार I

कहीं निरामिष भोजन का स्वाद लेते लोंग,तो कहीं सामिष भोजन के साथ दिखते लोंग I

वहीं आमिष विचारों के साथ माँ के पंडाल मे प्रवेश करते हुये भक्तगणों को,माँ अपनी ममतामयी निगाहों से निहारती हुई नज़र आती हैं I

Navratri

Image Source : Google Free

विजयादशमी के दिन प्रचलित सिंदूर खेला के साथ ही सुख, सौभाग्य और समृद्धि का आशीर्वाद देकर शारदीय नवरात्र की माँ दुर्गा तो अपनी ममतामयी मुस्कान के साथ, विदा हो जाती हैं I चैत्र मास मे एक बार फिर से, भक्ति और आस्था के साथ सामान्य जनमानस को जोड़ने के वादे के साथ विदा होती हैं , लेकिन भक्तजनों की आँखों को आँसुओं से भर जाती हैंI

बहुत अद्भुत और अविस्मरणीय नजारा होता है दुर्गा पूजा के पंडालों मे

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Bhavna Saurabh Sharma October 15, 2018 - 7:30 am

kya baat hae… loved the post
https://alifelessordinarywithsaurabhavna.com/2018/10/13/how-to-help-when-your-partner-has-a-metoo-story/

Shikha October 15, 2018 - 9:08 am

Thanks😊

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मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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