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पारंपरिक मिठाइयों का संघर्ष! विकास, विचार और स्वास्थ के साथ

by 2974shikhat October 29, 2019
by 2974shikhat October 29, 2019

आज कल की भागादौड़ी वाला जीवन ,तमाम तरह की शारीरिक बीमारियों को सामने लाकर खड़ा कर देता है…. 

आज के समय मे डायबिटीज और मोटापे की समस्या से, हर दूसरे परिवार का सदस्य प्रभावित दिख जाता है…….

शायद !इसी कारण से घरों की रसोई मे, चीनी अपनी उपयोगिता पर सवाल करती नज़र आती है…..

कई दशक पहले की बात अगर , ग्रामीण परिवेश को सामने रख कर सोची जाये तो…..

शुगर मिलों का वर्चस्व,सरकार की नीतियाँ,कैश पैसा हाथ मे आने की चाह ने,गन्ने की फसल का उत्पादन बढ़ा दिया था…..

ध्यान देने वाली बात यह थी कि,गुड़ जैसी चीज की जगह,झिलमिलाते हुए चमकीले सफेद दाने चीनी के रूप मे रसोई मे दिखने लगे…..

ऐसा नही था कि, गुड़ का उपयोग पूरी तरह से बंद हो गया था……

लेकिन चमकीली और साफ सुथरी सी चीनी का आधिपत्य रसोई मे दिखने लगा….

आजकल अपनी रसोई मे भी, चीनी के डिब्बे को देख कर, सोचने पर मजबूर हो जाती हूं….

क्या डायबिटीज और मोटापे जैसी चीजों को, घरों मे प्रवेश कराने के लिए केवल चीनी ही

जिम्मेदार है ,या अन्य भी कारण है…..

काफी हद तक, चीनी बेकसूर समझ मे आती है…..

भारतीय सभ्यता और संस्कृति की पहचान पारंपरिक मिठाईयाँ उपेक्षित सी लगती हैं….

चीनी के पक्ष मे कुछ लिखवा देती हैं ……

पारिवारिक आयोजन हों, या हो सामाजिक समारोह…..

टाइप टू डायबिटीज और, मोटापे से ग्रस्त लोग

तमाम दिखते हैं…..

आश्चर्य मे डालती है यह बात…..

दुबले पतले लोगों का भी होता है,डायबिटीज का साथ…..

समारोह मे स्वाद के साथ लोग,चीनी के उपयोग से

परहेज करते दिखते हैं…..

आस्था के साथ चीनी को अगर जोड़ो तो….

“बजरंगबली” की पसंदीदा बूंदी दिखती है……

गणपति को “मोदक” के रूप मे मिठास

हर्षित कर जाती है…..

धार्मिक आयोजनों मे प्रसाद का, चीनी अभिन्न अंग है…..

अलग अलग तरह के प्रसाद के साथ

जन जन के संग है……

कोई शुभ अवसर हो, या हो तीज त्यौहार…..

करना हो अतिथियों का, स्वागत और सत्कार……

सबसे आगे मीठे के साथ ही इंसान

नज़र आता है……

सौहार्दपूर्ण वातावरण मे मीठे के साथ ही

बातों को सुलझाता है…..

लेकिन! वर्तमान मे पारंपरिक मिठाइयों को देखकर…..

या तो हिचकिचाता है,या नाक भौं चढ़ाता है….

एक सवाल पूछिए अंर्तमन से !

क्या केवल मीठा खाना ही बीमारियों का कारण है….

“अति सर्वत्र वर्जयेत”वाली बात

हर आदत के साथ सही लगती है ….

भारतीय सभ्यता और संस्कृति की अगर बात करें तो

अलग-अलग तरह के खाने का, अपना अलग ही स्वाद है….

विदेशों से आने वाले,पर्यटकों का भारत भ्रमण

केवल ऐतिहासिक इमारतों और, दर्शनीय स्थलों को देखना ही नही रहता…..

भारतीय खाने का जायका लेने के लिए भी

पर्यटक भारत भ्रमण करते हैं….

हमारी सभ्यता और संस्कृति का अंग मिठाईयाँ भी हैं….

जो अपने अस्तित्व को बचाने के लिए

संघर्ष करती दिखती हैं …..

राजस्थानी “घेवर” हो, या हो,”अलवर का मावा”...

महाराष्ट्र का “श्रीखंड” हो…

या उत्तर भारत का “लौंगलता” और “इमरती“…

मध्यप्रदेश का “खुरचन“हो,या हो “खोये की जलेबी”…

बिहार का “खाजा” हो, या “अनरसा“….

बंगाल का “रसगुल्ला” या “संदेश“….

“मोती पाक” की बात करें तो, सामने आता है गुजरात….

पंजाब की “पिन्नी“और ,महाराष्ट्र की “करंजी” सामने दिखी…

तमिलनाडु के मुरुंद का, स्वाद लाजवाब ….

उत्तराखंड की “सिंगोरी“…

ओडिशा का “आरिशा पीठा”…

आँध्रप्रदेश का गव्वालू….

केरल के पायसम का,अपना अलग सा स्वाद और अंदाज…

इनके अलावा भी अनेक, पारंपरिक मिठाईयाँ हैं जो, अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करती दिखती हैं……

अगली पीढ़ी को अपनी पहचान, विरासत मे सौंपे जाने की बात भी कहती हैं…..

आज की व्यस्तता वाली जीवनशैली मे, घरों की रसोई मे बनने के लिए ज़रा सा श्रम और समय की मांग करती दिखती हैं…..

Be HappyDutyExpressionFestivalsFood and happinessHuman behaviorIndian society and cultureThoughtsTraditional sweetsWriting
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