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Daily LifeShort Stories

नृत्य आनंद और उत्साह

by 2974shikhat December 3, 2018
by 2974shikhat December 3, 2018

जब मन मे हो उत्साह का संचार….

ढोलक की थाप हो या ढोल की आवाज…

या हो अन्य वाद्य यंत्रों के साथ….

लय और ताल का मिलाप….

मन की खुशी,नृत्य के रूप मे नज़र आती है….

अपने देश की करो बात,या विदेश की बात….

उत्साह और खुशी को नृत्यकला, अलग अंदाज़ में

अपनी भाव व्यक्ति के माध्यम से दिखाती है..

भारतीय समाज में,शादी ब्याह के उत्सव हों

या हो पारंपरिक, तीज त्यौहार …..

सुनायी ही पड़ जाती है,किसी न किसी कोने से

ढोल की आवाज …

यही आवाज कौतूहल जगा देती है …..

थिरकते हुये लोगों को दिखा देती है ….

ऐसा माना जाता है कि,नृत्य कला का जन्म 

मानव जीवन के साथ ही हुआ …..

नन्हे शिशु का रुन्दन …..

अपने भावों को व्यक्त करने के लिये मचलना भी ….

नृत्य कला को दिखाता सा लगता है …..

भारतीय सभ्यता और संस्कृति की तरफ देखो तो …

देवी – देवताओं, दैत्य -दानवों,पशु-पक्षियों के अलावा …..

पेड़ -पौधों पर लगी पत्तियों और फूल को भी

नृत्य भाता है …..

भारतीयों का पौराणिक काल से ही

नृत्यकला की तरफ का जुड़ाव ….

मनोरंजन के साथ-साथ

धर्म,अर्थ, काम, मोक्ष

का साधन भी बताती है …..

Expression

Image Source :Google Free

भगवान शंकर का नटराज रूप

यह बताता है कि ….

नृत्य ,सृष्टि की उत्पत्ति एवम् संहार

दोनो का ही प्रतीक है …..

भगवान विष्णु के अवतारों मे

श्री कृष्ण का नटवर रूप

मन को मोह लेता है …..

नृत्य वह कला है जो जीवन को

आनंद देती है …..

हाव भाव आदि के साथ …..

जो शारीरिक गति ,संगीत के साथ दी जाती है ….

उसे ही नृत्य कहा जाता है ….

प्राचीन काल मे,राजकुमारों के लिये भी

नृत्य सीखना जरूरी समझा जाता था …..

अर्जुन द्वारा अज्ञातवास के समय,राजा विराट की कन्या उत्तरा को

वृहन्नला रूप मे नृत्य की शिक्षा की बात

महाभारत मे प्रसिद्ध है …..

भारतीय संस्कृति और समाज मे

सिनेमा जगत के नृत्य को, अगर अलग कर दिया जाये तो ….

नृत्य दो प्रकार के होते हैं ….

शाष्त्रीय नृत्य और लोक नृत्य ….

शाष्त्रीय नृत्य के बारे मे पढ़ने पर

पता चलता है कि,नृत्य का प्राचीन ग्रंथ

भरत मुनि का नाट्यशाष्त्र है …

ऋग्वेद के अनेक श्लोकों मे, नृत्या शब्द का प्रयोग हुआ है ….

युर्जुवेद मे नृत्य को व्यायाम के रूप मे, स्वीकार किया गया …..

शरीर को स्वस्थ और रोगों से दूर रखने के लिए …..

नृत्यकला का प्रयोग किया जाता था …

Expression

Image Source : Google Free

भारत के शाष्त्रीय नृत्यकला मे

भरत नाट्यम,कुचिपुड़ी,कत्थक,ओडिसी, कत्थकली,मणिपुरी

मोहिनी अट्टम,कृष्ण अट्टम जैसे नृत्यों की सांस्कृतिक विरासत को ….

शाष्त्रीय नृत्यों की शिष्य परंपरायें

पीढ़ी दर पीढ़ी आगे ले जाती रहेंगी ….

शाष्त्रीय नृत्यों को भारतीय डाक टिकट पर भी

सम्मान जनक स्थान मिला हुआ है ….

अब अगर बात लोकनृत्यों की करें तो….

लोकनृत्यों को प्राचीन काल से ही ,ज़रा सा पिछड़े समाज के नर -नारी ….

आदिम या जंगली जातियाँ, स्वाभाविक रूप से करती रही हैं ….

Image Source : Google Free

लोकनृत्य वास्तव मे प्राकृतिक नृत्य होते हैं ….

जीवन और प्रकृति से संबंधित होते हैं ….

ध्यान से देखो और महसूस करो तो

हर जगह नृत्य है

प्रकृति मे,विकृति मे,पूजा मे आराधना मे .,…

फसल पक गयी,खुश हो गये ….

कहीं बिहू नृत्य करते हुए लोग दिखे …

कहीं ढोल की आवाज, खेत खलिहानों से बाहर भी सुनायी पड़ी ….

भाँगड़ा करता हुआ समूह दिख गया ….

माँ दुर्गा की आराधना करते समय “गरबा” दिख गया…..

कहीं राजस्थान का “घूमर”,देशी विदेशी पर्यटकों के

मन को मोह गया…..

कहीं ढोलक की थाप पर “लावणी”नृत्य दिख गया…..

Expression

Image Source : Google Free

कहीं पांडवों की कथा को,पूरे जोश और अभिनय के साथ करता हुआ कलाकार ….

पंडवानी नृत्यकला और, गायन को संभालते हुये दिख गया….

सच मानिये तो,भारतीय संस्कृति और समाज के परिपेक्ष्य मे….

अगर नृत्य के बारे मे सोचो ,या लिखने बैठे तो….

कागज रंगते जाते हैं,कलम भी अति उत्साह मे मंत्र मुग्ध हो कर

नृत्य करती जाती है….

बहुत मुश्किल से रुककर, “गागर मे सागर”भरने वाली बात

लेखक के दिमाग मे डालती है…

नृत्यकला को किसी एक रचना मे, समेटा नही जा सकता

कलम यह बात थम कर कह जाती है ….

Be HappyDanceExpressionFeeling of positivityIndian society and cultureThoughtsWriting
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2974shikhat

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Manisha Kumari December 3, 2018 - 8:28 am

ज्ञानवर्धन के लिए धन्यवाद।

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कहानी का दूसरा पहलू मेरी दुनिया में आपका स्वागत है

मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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