अधजगी हुई आँखों मे नये साल का
जोश और उत्साह भरा था…..
सारा शहर बाज़ार और माल सजा था…..
धीरे धीरे नया साल आता हुआ दिख रहा था…..
हर कोई नये साल के आगमन की तैयारी मे
दिलोजान से जुटा था…..
दिन था पहली जनवरी दो हजार अट्ठारह
पीछे छूट गया था साल पुराना…..
आदत के मुताबिक सुबह सुबह ही
अखबार की तरफ नज़र फिर गयी…..
अधजगी आँखों से ही खबर को पढ़कर
आँखें खुली की खुली रह गयी….
तस्वीरों मे बहुत सारे लोगों के चेहरे पर खुशी तो
बहुत सारे लोगों के चेहरे पर उदासी दिख रही थी….
गाड़ियों से निकलने वाले धुएँ के साथ-साथ
धुएँ के छल्लों ने भी शहर के प्रदूषण के स्तर को बढ़ाया था….
यह एक बहुत बड़ी समस्या का विषय था…..
हमारी सरकार ने सख्त कदम उठाया था…..
नशीले पदार्थों के ऊपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया था….
इतना ही नही सभी प्रकार के नशीले पदार्थों को
बाहर का रास्ता दिखाया था…..
अब जो हमारे देश मे नही मिलने वाला था……
वो तो सिर्फ मोह माया और छल था……
सरकार का कहना स्पष्ट था…..
नशा बंदी को हम केवल एक प्रदेश की
सीमा मे नही बाँध सकते….
ऐसा करके हम जनमानस के साथ
विश्वासघात नही कर सकते……
लोग रोते,बिलखते हुए नज़र आ रहे थे…..
कुछ तड़प रहे थे तो कुछ चिल्ला रहे थे
वहीं कुछ लोग बीती रात से ही अपने घरों मे
सिगरेट और शराब छुपा रहे थे…..
कुछ लोग तो सामाजिक लोकाचार की बात कहकर
सिगरेट और शराब को उपयोगी बतला रहे थे…..
नशा बंदी के लिये धरने पर बैठी हुयी महिलाओं
के चेहरे खिले हुये दिख रहे थे……
कई बंधु बाँधव एक दूसरे से गले मिल रहे थे……
नशा बंदी के आंदोलन ने एक बड़ा स्वरूप ले लिया था…..
घरों परिवारों और प्रदेशों से बाहर निकलकर
इस अभियान ने खुद को मजबूत किया था…..
दूसरी तरफ पर्यटन उद्योग फूला नही समा रहा था……
धूम्रपान और शराब के उपयोग के लिये
अलग-अलग देशों की सैर के रास्ते सुझा रहा था……
दिल को थोड़ी सांत्वना मिली…..
कम से कम इसतरह की पहल से
गरीबों के घर तो सँभल जायेंगे…..
हो सकता है इसके बाद नशा बंदी को प्राथमिकता
देने के कारण इनके परिवार भूखे तो न सो पायेंगे…..
अमीर जिसे जरूरत और सामाजिक लोकाचार का नाम
देकर उपयोग मे लाता है…..
देखादेखी करने के चक्कर मे गरीबों का घर
उन्हीं शराब की बोतलों और नशे के भीतर ढह जाता है…..
कथित सभ्य समाज बस खड़ा खड़ा मुस्कुराता है….
(समस्त चित्र internet के द्वारा )