भारतीय सभ्यता और संस्कृति से गहराई से जुड़ी हुई कुछ वनस्पतियां ऐसी हैं, जिनको माध्यम बनाकर कविता,कहानी,शेरों शायरी और दोहा चौपाई लिखी गई है….
उन वनस्पतियों के गुणों के आधार पर, सामाजिक बुराइयों को सलीके से शब्दों के माध्यम से सामने लाया गया और समाज को दिशा देने की भी कोशिश की गई……
इन्हीं में से एक वनस्पति है ‘चंदन’…..
जिसको माध्यम बनाकर कविवर रहीम कहते हैं कि……
“जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग
चंदन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहते भुजंग”
‘चंदन’मुख्य रूप से भारत में पाया जाने वाला पौधा है…..
भारतीय चंदन का संसार में सर्वोच्च स्थान है….
मुख्यत: दक्षिण भारत के कर्नाटक, आंध्रप्रदेश और तमिलनाडु के अलावा, भारत के शुष्क क्षेत्रों विंध्य पर्वतमाला में भी पाया जाता है…..
भारत के अलावा यह इंडोनेशिया, मलेशिया के हिस्सों आष्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में भी पाया जाता है……
जैसे जैसे पेड़ की आयु बढ़ती है, उसके तनों और जड़ों की लकड़ी में भी तेल का अंश बढ़ने लगता है……
इसकी पूर्ण परिपक्वता में 8से लेकर 12साल का समय लगता है……
यह आंशिक रूप से परजीवी पौधा होता है……
इस पौधे की जड़ें हास्टोरिया के सहारे दूसरे पौधों की जड़ों में जाकर भोजन, पानी और खनिज लेती रहती है…..
भारत के अधिकांश हिस्सों में इसे चंदन के नाम से ही पहचान मिली है ……
लेकिन कन्नड़ भाषा में इसे ‘श्रीगंधा’और गुजराती में ‘सुकेत’भी कहते हैं……..
चंदन कई प्रकार के होते हैं, लेकिन ज्यादातर लाल और सफेद चंदन ही उपयोग होता है…..
लाल चंदन को रक्त चंदन भी कहते हैं…..
पीले चंदन का इस्तेमाल सामान्यतौर पर वैष्णव मत को मानने वाले करते हैं…..
जबकि रक्त चंदन का उपयोग शैव और शाक्त मत को मानने वाले करते हैं…..
रक्त चंदन का वैज्ञानिक नाम “टेरोकार्पस सैन्टनस” है, जबकि सफेद चंदन को “सैंटलम अल्बम”के नाम से जानते हैं…..
ये दोनों अलग अलग जाति के होते हैं…..
लाल चंदन से महंगे फर्नीचर और सजावट के सामान बनते हैं…..
इसका उपयोग प्राकृतिक रंग, कास्मेटिक उत्पाद और शराब बनाने में होता है…..
लाल चंदन के पेड़ मुख्यत: तमिलनाडु से लगे आंध्रप्रदेश के शेषाचलम के पहाड़ी इलाके में उगते हैं…….
बहुत धीरे धीरे बढ़ने के कारण,इसकी लकड़ी का घनत्व बहुत ज्यादा होता है……
जानकारों के अनुसार लाल चंदन की लकड़ियां,अन्य लकड़ियों के उलट पानी में डूब जाती हैं….
यही असली ‘रक्त चंदन’ की पहचान है……
लाल चंदन की लकड़ियों की मांग चीन,जापान, सिंगापुर,आष्ट्रेलिया, संयुक्त अरब अमीरात के अलावा अनेक पश्चिमी देशों में होती है……
लेकिन सबसे ज्यादा मांग चीन में है क्योंकि वहां लाल चंदन की लोकप्रियता मिग वंश के समय से बनी हुई है……
मिग वंश और उसके बाद के शासकों के बीच में, लाल चंदन की लकड़ी के प्रति दीवानगी का पता,इस बात से चलता है कि वहां “रेड सैंडल वुड म्यूजियम”नाम का एक विशेष संग्रहालय है….
जहां लाल चंदन से बने अनगिनत फर्नीचर और सजावटी सामान संजोकर रखे हुए हैं…..
दूसरी तरफ चंदन को आध्यात्मिकता के साथ भी जोड़ते हैं…..
माथे पर चंदन लगाने का काम आध्यात्मिक महत्व का है…..
प्राचीन भारतीय संस्कृति को देखें तो, वहां चंदन के तिलक लगाने का तरीका ही बता देता था कि, शिष्य साधना की किस स्थिति में है,और वह किस गुरु का शिष्य हैं…..
चंदन की तने की नरम लकड़ी तथा जड़ को बुरादा,छिलका तथा छीलन के रूप में बेचा जाता है, इसके अलावा चंदन का तेल बहुउपयोगी होता है….
आर्युवेद के अनुसार सिर और माथे पर चंदन लगाकर तनाव और अनिद्रा को दूर किया जाता है
बुखार को कम करने में सदियों से चंदन का उपयोग हो रहा है
चंदन का पेस्ट त्वचा को दाग धब्बों से बचाने के लिए काम आता है…..
अभी से नहीं प्राचीन काल से रईसों के अलावा आम नागरिकों की जीवनशैली में चंदन का महत्त्व पूर्ण स्थान रहा है…..
इसमें एंटीसेप्टिक गुण होने के कारण इसका उपयोग आमतौर पर किसी भी तरह की सूजन को कम करने के लिए करते हैं…..
एरोमा थैरेपी में चंदन के तेल का उपयोग करने से शारीरिक और मानसिक थकान और तनाव से राहत मिलती है….
चंदन के तेल के प्राकृतिक गुणों से दिमाग में सिरोटोनिन का निर्माण होता है….
जिसके कारण सकारात्मकता बढ़ती है….
एंटीसेप्टिक गुणों की मौजूदगी के कारण इसका उपयोग किसी भी तरह की सूजन को कम करने के लिए करते हैं….
वास्तव में चंदन हमारी संस्कृति का अंग रहा है…..
ऐसी मान्यता है कि पार्वती जी ने चंदन के मिश्रण से गणपति जी की उत्पत्ति की थी…..
देखा जाये तो चंदन का साथ जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कारों से जुड़ा होता है……
स्वास्थय, पोषण, आध्यात्म, ऐश्र्वर्य हर जगह चंदन गर्व से अपनी उपयोगिता दिखलाते हुए
दिख जाता है…..