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गिद्धा, भांगड़ा और ढोल की थाप के साथ, वैशाखी का उल्लास

by 2974shikhat April 13, 2018
by 2974shikhat April 13, 2018

परिश्रम के द्वारा किया गया सार्थक कर्म जब खेतों में लहराता हुआ दिखने के बाद ,पकी हुई फसल के साथ उमंग और उल्लास को लाता है ,तब वैशाखी का पर्व ढोल की थाप के साथ, गिद्धा और भांगड़े को लेकर आता है ।

वैशाखी नाम वैशाख से बना है । रबी की फसल के पकने की खुशी का प्रतीक है । सिक्ख इस त्योहार को सामूहिक जन्म दिवस के रूप में मनाते हैं ।

उनका मानना है कि “नानक नाम जहाज है,जो चढ़ता हो पार” यही प्रार्थना का भाव भी है,और इस उत्सव का आधार भी है । बचपन में गुनगुनायी हुई कुछ पंक्तियां गुरु गोविंद सिंह और खालसा पंथ की स्थापना के दिन हमेशा याद आती हैं ।

कहीं पर्वत झुके भी हैं, कहीं दरिया रुके भी हैं

नहीं रुकती रवानी है, नहीं थमती जवानी है

गुरु गोविंद के बच्चे,धर्म ईमान के सच्चे

उमर में थे अभी कच्चे,मगर थे सिंह के बच्चे

जोरावर जोर से बोला,फतेह सिंह शोर से बोला

नहीं हम रुक नहीं सकते, नहीं हम झुक नहीं सकते

हमें निज देश प्यारा है, पिता दशमेश प्यारा है

हमें निज पंथ प्यारा है,श्री गुरु ग्रंथ प्यारा है

हमारे देश की जय हो, पिता दशमेश की जय हो

हमारे पंथ की जय हो,श्री गुरु ग्रंथ की जय हो

ये पंक्तियां निश्चित तौर पर जोश और दिलेरी की बात याद दिलाती हैं ।

खालसा पंथ की स्थापना के आधार की बात बतलाती हैं ।

जो पांच वीर बलिदान के लिए तैयार हुए वे पंज प्यारे कहलाये ।

Baisakhi

उन्हें अमृत चखाकर यह आदर्श रखा कि जो धर्मपथ के लिए अपने प्राणों की परवाह नही करते,वही अमृत के अधिकारी होते हैं ।

खालसा पंथ का उद्देश्य हमेशा भलाई के लिए तैयार रहना था ।

वैशाखी का यह पर्व अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है ।

केरल में विशु, बंगाल में नब वर्षा,असम में इसे रोंगाली बीहू, तमिलनाडु में पुथंडु और बिहार में इसे वैसाख के नाम से जाना जाता है ।

इस पर्व के दौरान सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है । वैसाखी पर्व के दिन भारत की पवित्र नदियों में स्नान करने को महत्त्वपूर्ण माना गया है । कृषि प्रधान देश होने के कारण विकास में कृषि और किसान का महत्व हमेशा रहा है । इसीलिए किसान को “अन्नदाता” कहा जाता है । किसान का काम हमेशा सबसे ऊंचा होता है ।

क्योंकि अथक परिश्रम के जरिए वह अन्न को उपजाता है,और इसी कारण से वो अन्न जैसे अमूल्य धन का दाता होता है ,वैसाखी की रात नये अन्न को अग्नि को समर्पित किया जाता है । किसान के जीवन में वैसाखी उत्सव का आरंभ बनता है ,जगह-जगह मेले सज जाते हैं । गिद्धा,भांगड़ा और ढोल के साथ सारी सृष्टि उत्सव के रंग में डूबी नज़र आती है ।

इस दिन गुरु ग्रंथ साहिब को श्रद्धापूर्वक दूध व जल से स्नान करा कर सिंहासन पर प्रतिष्ठित किया जाता है । पंच प्यारों के सम्मान में शबद कीर्तन किये जाते हैं ।

अरदास के बाद गुरु जी को भोग लगाया जाता है ,इसके बाद सामूहिक भोज या लंगर का आयोजन होता है ,दर असल यह एक लोकत्योहार है । वैशाखी के समय अपने त्योहार और संस्कृति को भूला हुआ आधुनिक समाज भी नियम,धर्म, रिश्ते, परिवार से खुद को जुड़ा हुआ महसूस करता है । सारे विश्व में बसे हुए भारतीय समुदाय के लोगों को एकसूत्र में बांधते हुए । हमारी सभ्यता और संस्कृति को जीवित रखता है ।

गुरुद्वारों से आती हुई शबद कीर्तन की मधुर आवाज

बीच बीच में सुनाई पड़ता “श्री वाहेगुरु जी का खालसा,श्री वाहेगुरु जी की फतेह”

नगर कीर्तन के समय युद्ध कौशल दिखाने को तैयार युवा और बच्चे जोश में दिखते हैं ।

सच में वैसाखी का पर्व पसीने के सोना बन जाने का,धर्म की स्थापना का उत्सव, सभी की अखंड मंगल कामना का उत्सव है ।

BaisakhiFeeling of positivityIndian society and cultureinspiration
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2974shikhat

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