तेज हवा के झोंकों के साथ लहराती हुई लंबी-लंबी घाँस
केशों के समान ही दिख रही थी…..
केशों के बारे मे ज़रा ध्यान से सोचने पर बार बार
मजबूर कर रही थी….
आजकल चारो तरफ भाँति भाँति के रंगों के केश दिखाई देते हैं….
निश्चित तौर पर रंग बिरंगे केश मन को भा जाते हैं….
चटकीले से रंग आँखों मे छा जाते हैं…
रंगे हुए केश, बढ़ती हुई उमर के असर को, ज़रा सा छुपा जाते हैं…
चेहरा शोर मचा देता है ,वास्तविकता को दिखा देता है…
कम्बख्त बालों को ,ये गुस्ताखी कत्तई मांफ नही
हमेशा उन्हें झूठ बोलने पर ,मजबूर किया जाता है…
रंगो के नकाब के पीछे छिपे रहने को मजबूर किया जाता है…
आँखों के रंगो के साथ-साथ केशों के रंग भी आनुवांशिक गुणों की
पहचान हुआ करते थे…
हेयर कलर के जमाने मे आनुवांशिकता के साथ-साथ केशों को
जोड़ नही सकते…
क्योंकि आज कल तरह तरह के रंगों से बालों को रंगने के
आकर्षण को छोड़ नही सकते…
केशविन्यास आज के जमाने मे एकअच्छा व्यवसाय बन गया है….
बालों को सजाना और सँवारना आधुनिक जीवनशैली का
अंग बन चुका है …
सुना है हमेशा से लोगों के मुंह से यही विचार…
खुले बालों के साथ घूमती हुई नारी है कलयुग की
सबसे बड़ी पहचान…
दिमाग उलझन मे पड़ गया विद्वान जनो की बातों को
सोचने और समझने मे तनिक सा उलझ गया….
आज तक देखा नही देवी देवताओं को तस्वीरों या मूर्तियों मे
बंधे हुए बालों के साथ….
मुकुट के पीछे छिपे हुए लंबे खुले हुए काले केश माँ दुर्गा से
लेकर सारी देवियों की तस्वीरों मे दिखते हैं….
फिर क्यूं कलयुग को स्त्रियों के खुले हुए केश से जोड़ते हैं ?
मानव शरीर मे समायी , मृत चीज भी सुन्दरता बढ़ा सकती है…
केशों के बारे मे यह बात बिल्कुल सही लगती है…
नव शिशु भी खुले हुए बालों के साथ ही माँ की
गोद मे आता है…
मृत शरीर भी खुले हुए केशों के साथ धरा मे समा
कर मिट्टी बन जाता है….
केश का खुला या बंधा होना बाहरी सुन्दरता का
आधार होता है….
मेरे ख्याल से केशों का अच्छी संख्या मे सिर पर लंबे
समय तक बने रहना ही सबसे बड़ा सवाल होता है..
( समस्त चित्र internet के द्वारा )