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NatureShort Stories

ऋतुओं का बड़बोलापन-श्रेष्ठ कौन?

by 2974shikhat July 26, 2020
by 2974shikhat July 26, 2020

सामान्यतौर पर जनमानस ऋतुओं को

पसंद नापसंद के तराजू पर तोलता है

किसी को शीत ऋतु पसंद, तो किसी को ग्रीष्म ऋतु ।

किसी को वर्षा ऋतु और मेघों का साथ पसंद ।

तो किसी को बसंती बयार पसंद ।

सच मानिये तो ! श्रेष्ठ और निम्न वाली बात

ऋतुओं के संबंध मे नही जॅचती ।

लेकिन,गूढ़ चिंता का विषय हमारी कल्पना में यह था कि

मानवीय गुणों का प्रभाव 

आती जाती ऋतुओं पर भी पड़ गया

ऋतुओं पर पड़ने वाला यह असर ही

हमारी रचना का विषय बन गया

            और

काल्पनिक दुनिया की सैर में

छोटी सी कहानी रच गया

युद्ध का  माहौल बना हुआ था।
वार्तालाप अपनी चरम सीमा पर था।

वाक् युद्ध अपने भावों को व्यक्त करने वाली
तरह तरह की विधाओं से सजा था।

कभी लग रहा था बाद विवाद ,कभी परिचर्चा तो कभी
भाषण देता हुआ सा माहौल लग रहा था।

इतनी ज्यादा लड़ाई झगड़े के बीच मे भी
पेड़ पौधे शांति के साथ खड़े थे।
हर कोई श्रोता की भूमिका निभा रहा था।

सहमत होने पर

अपनी पत्तियों को
धीरे-धीरे हिला रहे थे।

असहमत होने पर तीव्र हवा का झोंका
माहौल की गर्माहट को दर्शा रहा था।

सारी ऋतुएँ उस जगह पर खड़ी थीं।
अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध कर रही थीं।

Season

Image Source : Google Free

मौसम शीत ऋतु का चल रहा था।
इसीलिये वो प्रमुखता से दिखायी दे रही थी।
अपने पीछे बसंत ऋतु को छुपायी हुई थी।

मोटे मोटे लबादे ओढ़े हुये खड़ी थी।
अपने ऊपर सफेद रुई के फाहे जैसी बर्फ को
लपेटे हुयी थी।

आवाज उसकी गहराई लिये हुयी थी।
ऐसा लग रहा था, सर्दी जुकाम की सतायी हुयी थी।
बार बार सर्द हवा के झोंकों मे, लपेट रही थी।

बोली हमारी महत्ता सबसे अधिक होती है
हमारे समय मे सूर्य की चमक भी, ज़रा सा कम दिखती है
हर किसी को गर्म कपड़ों मे लपेटती हूँ
आध्यात्म के साथ साथ, सकारत्मकता से जोड़ती हूँ

Season

Image Source : Google Free

अचानक से कूद कर बसंत ऋतु सामने आ गयी।
अपने को बसंती रंग से रंगा देख, ज़रा सा इतरा गयी।

बोली हमारे समय मे चारो तरफ प्रफुल्लता दिखती है ।
पौधों की क्यारियाँ रंग बिरंगे फूलों से सजती हैं ।

जाते जाते रंगों के त्योहार को भी, पास मे बुलाती हूँ ।
ज्ञान की देवी सरस्वती जी को भी, अपने साथ ही लाती हूँ ।

Season

Image Source : Google Free

ग्रीष्म ऋतु बड़ी तेजी से सामने आयी
गर्म हवा के झोंकों के साथ बोली, हमे लोग
सबसे बेकार समझते है ।
हमारे महत्व को पता नही क्यों,नही समझते हैं ।
सूर्य की तपन हमारे समय मे सबसे ज़्यादा दिखती है ।
लंबे दिनों को लेकर आती हूँ ।
पसीने का महत्व समझाती हूँ
विषम परिस्थितियों मे भी लड़ने की बात बताती हूँ

Season

Image Source : Google Free

तब तक तड़कती भड़कती, वर्षा ऋतु आयी । 
दो चार पानी की बूँदें, मेरी आँखों के सामने ही गिरायी । 
बोली मानो या न मानो ,सबसे उपयोगी ऋतु तो हम ही हैं ।

बंजर जमीन को भी उपयोगी कर देते हैं ।
सारे जलस्रोतों को लबालब भर देते हैं ।

सृष्टि मे हमारा, सबसे बड़ा योगदान है । 
चाहे काले बादल हों या, कड़कड़ाती हुयी बिजली । 
ये सब नव सृजन का ही तो आधार है । 

Season

Image Source : Google Free

तभी देखा ढेर सारी पत्तियों को लपेटे हुए, पतझड़ ऋतु खड़ी थी । 
बोलने लगी, अब हम अपनी उपयोगिता अपने मुँह से क्या बताये । 

जीवन की सच्चाई को हम, सबसे अच्छी तरह से समझाते हैं ।
अब अपना अपना बड़बोलापन बंद करो । 
फालतू मे जीव जन्तुओं को मत तंग करो । 

बाकी की ऋतुएँ शांत होकर खड़ी हो गयीं ।

सभी एक-दूसरे को निहार रही थी

अपने अपने चेहरे से दर्प को उतार रही थी

सभी ने अपने अपने कदमों को आगे बढ़ाया ।
एक दूसरे को भरोसे के साथ गले लगाया ।
बोली हम सब मिलकर ही प्रकृति को सँवारते हैं ।
हमारे कारण ही मौसम बदलते रहते हैं ।
हर ऋतु अपने स्वभाव के मुताबिक काम करती है ।
तभी तो निर्बाध रूप से सृष्टि चलती रहती है ।
Peace and TranquilitySeasonsSelflessnessSpreadPositivitySpritualityThoughts
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2974shikhat

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myexpressionofthoughtsblog January 23, 2018 - 10:51 am

Beautiful poem and magnificently penned down

Mrs. Vachaal March 11, 2018 - 8:42 am

Thanks😊

Bhavana July 26, 2020 - 7:56 am

Such a lovely post

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कहानी का दूसरा पहलू मेरी दुनिया में आपका स्वागत है

मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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