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उत्तंग ऋषि की गुरुभक्ति (भाग ३)

by 2974shikhat November 16, 2020
by 2974shikhat November 16, 2020

रानी मदयन्ती द्वारा कुण्डल की महिमा बतलाना

राजा सौदास के द्वारा दिव्य कुण्डल दिए जाने की आज्ञा मिलते ही, उत्तंग मुनि निर्जन वन की तरफ चल पड़े I
बहुत देर तक घने वन में भटकने के बाद उन्हें, एक झरने के पास शिला पर बैठी हुई रानी मदयन्ती दिखाई पड़ी I
रानी के कानों में दिव्य मणि, अपनी झिलमिल तीव्र चमक के कारण, अनमोल समझ में आ रही थी I
तुरंत ही मुनि रानी मदयन्ती के पास गए और अपने आने का प्रयोजन उन्हें बतलाया I विनम्रतापूर्वक राजा का सन्देश रानी को सुनाया I
रानी ने मुनि से कहा महर्षि ! महाराज ने जो कुण्डल देने की बात कही है,वह ठीक है I मुझे आप तपस्वी ब्राह्मण दिख रहे हैं,आप असत्य नहीं बोल सकते I लेकिन फिर भी मेरे विश्वास के लिए आपको उनका कोई चिन्ह लेकर आना चाहिये I
मेरे ये दोनों मणिमय कुण्डल दिव्य हैं I देवता ,यक्ष और महर्षि लोग अनेक उपायों से चुरा ले जाने के प्रयासों में लगे रहते हैं I
यदि इसे पृथ्वी पर रख दिया जाये तो नाग हड़प लेंगे,अपवित्र अवस्था में धारण करने पर यक्ष उड़ा ले जायेंगे I
इन्हें पहनकर यदि कोई नींद लेने लगे तो, इसे देवता चुरा ले जायेंगे I
देवता ,राक्षस और नागों से सुरक्षित रहने वाला व्यक्ति ही इसे धारण कर सकता है I
इन कुण्डलों से रात दिन स्वर्ण टपकता रहता है I नक्षत्रों के समान इसकी चमक रहती है I इनको पहनने से विष ,अग्नि तथा अन्य भयदायक जंतुओं से कोई भय नहीं होता I इनको अगर कोई छोटे कद वाला व्यक्ति पहन ले तो यह छोटे हो जाते हैं I बड़े कद वाले व्यक्ति के पहनने से ये बड़े हो जाते हैं I
अतः मेरे ये कुण्डल प्रशंसा के पात्र हैं I अगर राजा सौदास ने इन्हें आपको देने के लिए कहा है तो, कृपया कर के उनकी कोई पहचान लेकर आइये I
रानी की बात सुनकर मुनि वापस राजा सौदास के पास गए और, रानी के द्वारा कही बात उन्हें बतायी I
तब इक्ष्वाकु वंश में श्रेष्ठ लेकिन शापित राजा ने सन्देश देते हुए कहा – प्रिये ! मै जिस दुर्गति में इस समय पड़ा हुआ हूँ वो, मेरे लिए कल्याण करने वाली नहीं है I शापित होने के कारण मेरे लिए कोई दूसरी गति नहीं है I अपने दोनों कुण्डल ब्राह्मण देवता को दे दो I

यह सुनकर मुनि रानी के पास गए और, ज्यों का त्यों सन्देश रानी को कह सुनाया I सन्देश सुनते ही रानी ने तुरंत अपने कानों से कुण्डल उतार कर मुनि को सौंप दिया I
मुनि वो कुण्डल लेकर राजा के पास सन्देश में छिपे हुए गूढ़ अर्थ को जानने के लिए गए I
सौदास ने कहा मै हमेशा से ही विप्रवरों का सम्मान किया करता था ,लेकिन अनजाने में हुई गलती के कारण शापित हुआ I रानी मदयन्ती के साथ अपनी दुर्गति के समय को इस निर्जन वन में काट रहा हूँ I रानी ने मेरे सन्देश में छिपे हुए गूढ़ अर्थ को समझ कर, आपको कुण्डल सौंप दिया है I अब आप अपनी प्रतिज्ञा को पूरी कीजिये I मुनि ने कहा राजन ! मै अपनी प्रतिज्ञा का पालन करने के बाद आपका आहार बनने के लिए आपके आधीन हो जाऊंगा I
जाने से पहले मै आपसे एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ,अगर आपकी आज्ञा हो तो I
राजा के द्वारा अनुमति मिलने पर मुनि ने कहा – राजन ! विद्वानों ने उसी को ब्राह्मण कहा है जो वाणी का संयम रखता हो ,सत्यवादी हो,जो मित्रों के साथ विषमता का व्यहवार करता है वो, चोर माना जाता है I
आज आपके साथ मेरी मित्रता हो गयी है,इसलिए आप मुझे उचित सलाह दीजिये I
आप जैसे पुरुष के पास जिसका मै आहार बनने वाला हूँ ,मुझे वापस आना चाहिए की नहीं ?
सौदास ने कहा महर्षि ! मित्रता के धर्म को सर्वोपरि मानकर यदि आप मुझसे उचित सलाह मांग रहें हैं तो, आपको किसी भी तरह मेरे पास नहीं आना चाहिए I इसी में आपका कल्याण है I
इसप्रकार बुद्धिमान राजा सौदास के मुख से, उचित और हित की बात सुनकर उत्तंग मुनि आश्रम की राह पर बढ़ चले

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2974shikhat

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मेरे विचार, और कल्पनाएं… जीवन की छोटी-छोटी बातें या चीजें, जिनमे सामान्यतौर पर कुछ तो लिखने के लिये छुपा रहता है… एक लेखक की नज़र से देखो तब नज़र आता है … उस समय हमारी कलम बोलती है… कोरे कागज पर सरपट दौड़ती है.. कभी प्रकृति, कभी सकारात्मकता, कभी प्रार्थना तो कभी यात्रा… कहीं बातें करते हुये रसोई के सामान, कहीं सुदूर स्थित दर्शनीय स्थान…

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