अपने स्वभाव के अनुसार पुस्तकें पढ़ना हमे भी पसंद है। सोचा इसी बहाने एक पुस्तकालय की तलाश करते हैं। तलाश समाप्त होने के बाद पुस्तकालय आने जाने का क्रम हमारा भी लगा रहता है।
करीने से रखी हुई पुस्तकें ,जाने किस दौर से किस दौर तक की पुस्तकें। कितने शब्दों ,कितने वाक्यों का समंदर लेकिन एक अलग ही ख़ामोशी।
पुस्तकों की शेल्वस के पास जाकर खड़े हो तो ऐसा लगता है मानो ,हाथ से छूते ही पुस्तक बोलने लगेगी। खामोश से पुस्तकालय में शब्दों के तरकश खोलने लगेगी।
गंभीरता और ख़ामोशी से पुस्तकालय उम्रदराज़ सा लगता है। जीवन के अलग अलग पहलुओं को समझ कर लिखी हुई किताबें जहाँ संग्रहित हो वहाँ ,ऐसी शांति होना वाज़िब सा लगता है। बीच बीच में कुर्सियों के सरकने की आवाज़ ,मध्यम स्वर में किया गया आवश्यक वार्तालाप समझ में आता है।
तपती हुई गर्मी के मौसम में पंखे और एयर कंडीशनर की आवाज़ के बीच में , पानी पीने का हर प्रयास कानों को सुनाई पड़ जाये।
इतने ख़ामोशी कि पानी कि घूँट ,गटक के साथ शोर मचा जाये।
अनुशासन यह कहता है कि पुस्तकालय में ख़ामोशी एक नियम है। जहाँ हर व्यक्ति चेहरे पर गंभीर मुद्रा को ओढ़े अध्ययन करता हुआ नजर आता है।किताबों को पढ़ने के क्रम में भावों का उतार चढ़ाव ,सिर्फ चेहरे को देखकर ही समझ में आता है ,
ऐसे माहौल में इतनी सारी किताबों के बीच में जाकर ,हमारा खुद से खुद का वार्तालाप इतना प्रबल हो जाता है कि ,पुस्तकालय की ख़ामोशी नगण्य हो जाती है।
लेखक ह्रदय मस्तिष्क से वार्तालाप करता हुआ समझ में आता है। पुस्तकालय खुले रहने की समय सीमा जब समाप्त होने वाली होती है तब अपनी रूचि के अनुसार किताबें लेकर बाहर निकलना होता है।
हाथ में कुछ पुस्तकें लेकर बाहर निकलते ही , पुस्तकालय की ख़ामोशी और पुस्तकों का शोर थम जाता है। अपने जरूरी सामान को सँभालते हुए घर वापस आने का सफर, एक बार फिर से शुरू होता है।