आज सुबह सूर्योदय को देखकर सूर्य भगवान के तेज को absorb करने के बाद , नन्हे-नन्हे पौधों को देखा सभी बड़े खुश नजर आ रहे थे ….Positivity से भरे हुये सबको साज सँभाल की जरूरत होती है …ऐसा लगा बोल रहे हो .. आप अपने जरूरी काम खत्म कर लीजिये , फिर हमे पानी पिलाइयेगा …. हमारे खाने की चिंता तो आप बिल्कुल मत करिये …..हम तो शिशु अवस्था से ही अपना भोजन पका लेते हैं photosynthesis से……हमे नहीं तलब होती morning tea जैसी ,मैने भी मुस्कराते हुये उनकी बातें सुनी और अपने काम मे लग गयी …
पौधों की तरफ मजबूरी के कारण दो दिन ध्यान न दो तो मुरझाने लगते हैं…जब पौधों का ये हाल है तो बच्चे ! उनकी भी तो अपेक्षायें अपने माँ-बाप से प्यार और दुलार की होती होगी ..जितनी Positivity से भरी बच्चों की बचपन की नींव होगी उतनी ही Positivity से भरी उनकी जिंदगी की इमारत बनेगी …
मेरे विचार से अपने स्वार्थ और ज्यादा धन की चाह मे ,कभी भी अपने बच्चों को अनदेखा नहीं करना चाहिये …उनके आत्मविश्वास और बेहतर विकास के लिये उन्हें जिंदगी के तेज बहाव मे छोड़ना तो चाहिये …लेकिन अपने हाथ को हमेशा इतना पास रखना चाहिये कि ,जब उनको जरूरत पड़े तो वो आपका हाथ पकड़ कर अपना आत्मविश्वास बढ़ा सके….
मेरी ये blog post भी धुन्धली यादों की ही एक कड़ी है…भगवान का अनमोल तोहफा होता है आपके घर का बच्चा उसके साथ आप अपना बचपन जीते हो..मुझे तो आज भी याद है अपने पापा के साथ सायकिल की सवारी जिसके आगे basket लगी होती थी …उसमे से पैर बाहर निकालने की जगह बनी होती थी …
कितनी मीठी -मीठी बातें सारे रास्ते हुआ करती थी…. सायकिल से स्कूटर और स्कूटर से कार का साथ हुआ लेकिन, आज भी जब पापा के साथ होती हूँ तो ,वही मीठी -मीठी बातें याद आती हैं….बचपन में मिला माँ बाप का प्यार बच्चों को अंदर से मजबूत बनाता है …जिंदगी के तेज थपेड़ों को सहने की शक्ति प्रदान करता है …..
कल अपने घर की balcony में खड़े होने पर ,सरपट भागता हुआ एक घोड़ा देखा ….शायद दशहरे के मेले मे जा रहा था उसे देखकर मुझे इक्का याद आ गया …आप जानते हैं इक्का क्या होता है घोड़ा गाड़ी का ही एक प्रकार होता है ….लेकिन इसमे बैठने की जगह थोड़ी ऊँचाई पर होती थी …लकड़ी के बड़े -बड़े टायर होते थे… मैने की है इसकी सवारी बचपन मे…
ताँगे या बग्घी पर बैठना थोड़ा आराम दायक होता था ,लेकिन इक्के पर बैठना उतना आरामदायक नही होता था ….
आज से कई साल पहले गाँव मे इतनी सुख सुविधायें नही हुआ करती थी कि , Auto या Carकी सवारी सार्वजनिक परिवहन के लिये कर सके…तब इक्का या ताँगा ही उपयोग मे आता था ,घर से रेलवे स्टेशन जाने के लिये …
मुझे आज भी याद है जब गांव से वापस शहर आना होता था तो, एक दिन पहले इक्के वाले को बोल दिया जाता था …..कल सुबह-सुबह की गाड़ी पकड़नी है ,घोड़े को खिला पिलाकर तैयार रखना ….हमारी आँखो की चमक बढ़ जाया करती थी , इक्के पर बैठने को मिलेगा ….आखिर साल मे गिने चुने बार ही तो इक्के पर बैठने को मिलता था …
सबसे पहले सारा सामान set किया जाता था , फिर उन सामानों के बीच में बच्चे set होते थे …. घोड़ा अपनी हिनहिनाहट के साथ अपनी गति पकड़ता था …..कितना तैयार हो कर आता था घोड़ा ..गले मे उसकी मोतीयों की माला होती थी ,पाँव मे कुछ घुँघरूनुमा पहना रहता था.. चमचमाता हुआ उसका चेहरा, करीने से सँवारे हुये उसके बाल बिल्कुल alert रहता था …
थोड़ी -थोड़ी देर के बाद बच्चों को reset किया जाता था ….क्योंकि घोड़े की गति बढ़ने के साथ-साथ बच्चे थोड़ा आगे सरकते चले जाते थे …गंतव्य पर पहुँचने पर हाथ पकड़कर इक्के से उतारा जाता था …अपने हाथ से गुड़ चना खिलाकर घोड़े से विदा लेते थे …विदा होते समय वो भी उदास हो जाता था …ठीक वैसे ही जैसे हमारी दादी अपनी आँखो के कोर को साड़ी से पोछा करती थी …
आजकल तो ताँगा इक्का जैसी घोड़ा गाड़ीयों का प्रचलन लगभग-लगभग समाप्त सा ही हो गया है …हर एक चीज मशीनी हो गयी है हमारी भावनायें भी मशीनी हो गयी है …. घोड़े की दुखी आँखे और उन आँखो मे बच्चों से अलग होने का दुख काफी बड़े होने तक मैने महसूस किया ...
थोड़ा बड़े होने पर जब गाँव गयी तब मालूम पड़ा , घर मे रहने वाला नौकर Auto वाले को बोलने गया ….गाड़ी मे तेल वेल भरवा कर रखना सुबह-सुबह बच्चे लोगो को रेलवे स्टेशन छोड़ना है …तब मुझे घोड़ा बहुत याद आया ,लेकिन तब तक समय बदल चुका था ..जानवरो की परवरिश मे पैसा खर्च करना हर किसी के लिये मुश्किल हो चला था …कम लागत और अधिक फायदे पर अब सारी दुनिया दौड़ती है ….
ज्यादा तेज भागने की चाहत बहुत सारी चीजों को पीछे छोड़ जाती है चाहे वो जानवरों से लगाव हो या आपका मूलभूत स्वभाव ….
जीव जन्तुओं का साथ निश्चित तौर पर Positivity लाता है …