दिख रहा है न,हर तरफ नव वर्ष का उत्साह।
नए साल पर किये गये संकल्पों और प्रेरणादायी विचारों के साथ, हर दूसरा व्यक्ति नए साल के स्वागत में जुट जाता है।
पुराने साल के साथ झूमते, नाचते – गाते ,स्वादिष्ट खाने का स्वाद लेते हुये ही अचानक से सामने आ कर खड़ा हो जाता है ,नववर्ष।
मानव स्वभाव ,उत्साह के बीच हैरान – परेशान। किन बुरी आदतों से पीछा छुड़ाना है ,किन अच्छी आदतों को रोजमर्रा की जिंदगी में अपनाना है। इतने सारे विचारों के सैलाब के बीच ,जीवन को सहजता से जीना कितना मुश्किल – कितना आसान ,आता है न मन में जरूरी सा यह सवाल ?
शिशु अवस्था से आगे बढ़ते हुए नववर्ष का स्वागत ,हमने भी उत्साह के साथ किया।
बीते दो – ढाई साल कोविड के कारण, भय के साथ जीता हुआ समाज , भयमुक्त नजर आ रहा था। स्वस्थ और सुरक्षित रहने का विश्वास हर तरफ दिख रहा था।
नववर्ष ! विशेष तौर पर उनलोगों के लिए , जिनलोगों ने कोविड की आपदा में या अन्य किसी कारण से अपने परिवार के सदस्यों या मित्रों को खोया है ,सकारात्मक अंदाज में जीवन को जीने का मौका है।
हर साल कागज़ पर छपे हुये नये साल के पंचांग और कैलेंडर को देख कर सोच में पड़ जाती हूँ। बारह पन्ने का कैलेंडर ! कितने सारे दिन ,हर दिन के किस्से कहानी अलग – थलग।
पाँच दिन के कार्यदिवस के बाद अलग रंग का गोला ! बता देता है , या तो सुस्त दिन की बात या अतिउत्साह का साथ।
देखते ही देखते वक़्त गुजरता जाता है।
देश की राजधानी दिल्ली ! हमे बहुत प्यारी है। विगत कई वर्षों से रहते हुए अपनापन महसूस होता है। लेकिन ,देश की राजधानी होने के बावजूद कभी डराती है ,कभी रुलाती है ,कभी उत्साह भी बढ़ाती है।
सुबह – सुबह जब समाचार पत्रों में छपी हुई खबरों के साथ डूबती और उतराती हूँ।
अभी सात दिन पहले जन्मे नववर्ष में हमने भी सोचा , ज़रा घूमने – फिरने दिल्ली की सड़कों पर निकलते हैं। उत्साह के साथ घूमते हुए जनमानस के प्रफुल्लित से चेहरों को अपनी नज़रों से भी देखते हैं।
लेकिन ,उत्साह हमारा धरा का धरा रह गया। ट्रैफिक जाम से जूझती हुई भीड़ का हम भी हिस्सा बने। मैजेंटा लाइन मेट्रो ! ऊपर से, आ और जा रही थी। ऐसा लगा व्यंगात्मक मुस्कान के साथ खिलखिला रही थी।
हमने मन ही मन बोला , सार्वजनिक परिवहन की बात करती हो। रंगबिरंगी बसों को सार्वजनिक परिवहन से इतर समझती हो ?
दिमाग में बार – बार यह सवाल कौंध रहा था। चार या पाँच किलोमीटर की दूरी को ,दो से तीन घंटे में पूरा करता हुआ गाड़ियों का सैलाब। बीच बीच में एम्बुलेंस के सायरन की आवाज। गाड़ियों से अंदर और बाहर होते हुए , हवाईजहाज या ट्रैन के यात्रियों की बेचैनी।
मोटरसाइकिल पर सवाल युवा ‘मीरकैट’ जैसे उचक – उचक कर आगे पीछे वालों को जाम की दूरी को नाप तौल कर बतला रहे थे।
देश की राजधानी की सड़कों का नव वर्ष में भी यह हाल ?
सोचने लगे हम भी,राजनीतिक नेतृत्व का जनता की परेशानियों को नजरअंदाज करना। प्रशासन का लापरवाही वाला रवैय्या ,कितने नववर्षों तक यथावत रहेगा।
जनता के रोजमर्रा के जीवन से जुड़ी राजधानी की सड़कों को ,इस नये साल में तो जाम मुक्त होना चाहिए।
“नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें”