भारतीय समाज मे धार्मिक मान्यतायें और, पौराणिक कथायें हमेशा से अपना महत्व रखती हैं।
हिंदू धर्म मे आस्था और भक्ति के केंद्र मे कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर , कान्हा जी को ध्यान मे रखकर अगर बात करें तो...
बाल रूप से लेकर गीता के ज्ञान तक का उनका जीवन,सामान्य जनमानस के साथ कान्हा जी को जोड़ता है।
भगवान कृष्ण शुभचिंतकों और परिवार के सदस्य की तरह ही, गीता के दूसरे अध्याय के सैतालिसवें श्लोक मे कर्म करने का ज्ञान देते हैं।
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा संङोऽस्त्वकर्मणि।।47।।
श्री कृष्ण के अनुसार, मनुष्य जीवन ही पुरुषार्थ के लिए बना है ।
अन्य जीवों जैसे पशु, पक्षी, कीट-पतंगों का कर्म पहले से ही रचा हुआ है।
मानव जन्म को पाया हुआ जीव, पुरूषार्थ करके अपना उद्धार कर सकता है।
अपने कर्म को सुधार सकता है।
वृंदावन के बांके बिहारी लाल हों , मथुरा मे विराजे हुए किशन कन्हैया हों,नाथद्वारा के श्रीनाथजी हों , खाटू श्याम जी मे बैठे श्याम रूप मे कृष्ण जी के अवतार हों , या जन जन के प्यारे लड्डू गोपाल हो ।
रूप चाहे जो भी धरा हो कान्हा जी ने ,भारतीय समाज कान्हा जी से, खुद को जुड़ा हुआ महसूस करता है ।
कान्हा जी का जन्मोत्सव धूमधाम से मनाता है।
देवालयों से निकलने वाली लयबद्ध ध्वनि “हरे रामा हरे रामा हरे रामा हरे हरे….हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे कृष्णा हरे हरे….“अंर्तमन को शुद्ध करती हुई सी लगती है।
पौराणिक कथा के अनुसार बाल रूप मे कान्हा जी, सामान्य बालकों की तरह अपना बचपन जीवन जीते हुए दिखते हैं ।
कभी साथी बाल ग्वालों के साथ माखन चुरा लिया।
कभी गोपियों की मटकियां फोड़ते दिखते हैं।
उनका यह कार्य भी किसी न किसी प्रकार से अत्याचारी कंस तक,दूध दही न पहुंचने देने की उनकी योजना ही समझ मे आती है।
कभी मिट्टी से खेल लिया..
कभी मिट्टी को स्वादिष्ट समझ कर खा लिया…
कभी यमुना किनारे कन्दुक (गेंद)के साथ खेलते हुए, उत्पाती बच्चे समान दिखे…
कहीं बाल रूप मे कान्हा जी के स्वभाव की विलक्षणता और तेज दिखा…
कभी खेल खेल मे ही माँ यशोदा को अपना मुख खोलकर, सारा ब्रम्हांड मुख के भीतर ही दिखा दिया।
माँ यशोदा सारे ब्रम्हांड को मुख के भीतर समाया देखकर, आश्चर्यचकित और भयभीत दिखीं।
हे पार्थ ! का संबोधन गीता के ज्ञान की तरफ ले गया ।
श्रीमद् भगवत् गीता के ग्यारहवें अध्याय के चौदहवें श्लोक के अनुसार –
तत: स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनन्जय:।
प्रणम्य शिरसा देवं कृतान्जलिरभाषत ।।14।।
भगवान् के विश्वरूप को देखकर अर्जुन बहुत चकित हुए, और आश्चर्य के कारण उनका शरीर रोमांचित हो गया ।
हाथ जोड़कर विश्वरूप देव को मस्तक से प्रणाम करते हुए भगवान की स्तुति करने लगे।
कभी और कहीं यही कान्हा जी हट करते हुए दिखते हैं ।
माखन के लिए मचलते हुए पौराणिक कथाओं मे नज़र आते हैं ।
विश्व के कल्याण के लिए छल करते हुए दिखते हैं ।
कभी चल पड़ते हैं,गौ सेवक बनकर ब्रज की गलियों मे ,यमुना के किनारों पर, कदंब की डाल पर सामान्य मनुष्य की तरह…
कभी अपार स्नेह दिखा दिया…..
आर्थिक भेदभाव को अपने जीवनकाल मे, द्वारकाधीश होकर भी परे बिठा दिया ।
दौड़पड़े मित्रभाव को सर्वोपरि मानकर, सम्मानपूर्वक और आत्मीयता के साथ बालसखा को गले लगा लिया ।
योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण का जीवन दर्शन एक आर्दश जीवनशैली है।
गीता के दसवें अध्याय के उन्तालिसवें श्लोक मे श्रीकृष्ण कहते हैं कि –
यच्चापि सर्वभूतानां बीजं तदहमर्जुन ।
न तदास्ति विना यत्स्यान्मया भूतं चराचरम् ।।39।।
समस्त विभूतियों का सार बताते हुए कहते हैं कि, सबका बीज अर्थात कारण मै ही हूं।
अर्थात संसार को बनाने वाला भी मै ही हूं , और संसार रूप से बनने वाला भी मै हूं।
संपूर्णता का संदेश देते हुए श्री कृष्ण ! जीवन को सार्थक तरीके से जीने की प्रेरणा देते हैं।
चाहे वो गीता का उपदेश देते हुए मार्गदर्शक कृष्ण हों,या बाल और किशोर कृष्ण !
नि:संदेह योगेश्वर श्री कृष्ण का जीवनदर्शन, एक आदर्श जीवनशैली है ,जिसे अपनाकर जीवन की पूर्णता को पाया जा सकता है।
2 comments
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