दिख रहा है चारो तरफ
भक्ति के साथ-साथ उमंग और उत्साह…..
घरों से लेकर देवालयों तक दिख रहा है
जन्मोत्सव का उत्साह….
उमड़ती घुमड़ती काली घटाओं के बीच मे…..
भाद्र पक्ष मे,कान्हा जी के जन्म का उल्लास
सारे विश्व मे नज़र आता है…..
आध्यात्म और भक्ति की नज़रों से देखो तो…..
नही बंध कर रह जाते कृष्ण
ब्रज की सीमाओं, और ग्वालो और गोपियों के बीच मे…..
सारा विश्व, “हरे कृष्णा हरे कृष्णा” की धुन पर
भक्ति रस मे सराबोर दिखता है……
कान्हा ही हैं, जो अपने अलग अलग नाम और रूप से….
जन जन के भीतर समा जाते हैं….
निराकार रूप मे परमब्रम्ह…..
तो साकार रूप मे
चितचोर,माखनचोर,छलिया,रसिया
और न जाने कितने नाम से पुकारे जाते हैं……
पौराणिक कथाओं के अनुसार……
कृष्ण के बांसुरी के स्वर से
केवल जनमानस ही नही थिरकता दिखता…..
वन वनस्पतियाँ, ताल तलैया, नदी, पहाड़
सब मंत्र मुग्ध नज़र आते हैं…..
कृष्ण के साथ मनुष्य सीधे जुड़ता है……
कान्हा जैसा तो नही बन पाता……
लेकिन अपने नि:श्छल प्रेम, और भक्ति से
कृष्ण को अपना बना सकता है…..
कान्हा जी का बाल रूप हो, या युगल रूप
गोवंश के साथ हों,या राधा और गोपियों को रिझाते हो….
या हों माखनचोर के रूप मे….
हर समय उनका,दिव्य प्रेम ही नज़र आता है…..
महाभारत मे गीता का उपदेश देते समय कृष्ण!
मार्गदर्शक की भूमिका निभाते दिख जाते हैं……
बाँसुरी पर थिरकने वाली, कान्हा जी कि ऊँगलियों पर
सुर्दशन चक्र का होना भी…..
कृष्ण का ही एक रूप है….
सुर्दशन चक्रधारी,गिरधारी का रूप, मामान्यतौर पर
जनमानस की स्मृति से विस्मृत रहता है…..
वही कान्हा चितचोर है…
वही माखनचोर है…
वही मार्गदर्शक है….
वही गोवंश रक्षक है…..
वही प्रेम की गहराई बताता है…..
वही मन को मोह जाता है…..
प्यार और भक्ति से अपनाओ तो,अपना बन जाता है….
उसे ही प्यार,करुणा और भक्ति मे,डूबकर बुलाओ तो….
दौड़ा चला आता है…..
कान्हा वही है,जो कण कण मे समाता है…
भक्ति भाव से याद करने से,अंत:करण से जुड़ जाता है…..