” Look deep into nature ,and then you will understand everything better “
प्रकृति के अद्भुत स्वरुप में नभ ,जल ,थल सब कुछ समाया है। आश्चर्य में डालती है न चल अचल प्राकृतिक सुंदरता। फुरसत के समय में प्रकृति का अवलोकन मन को खुश करता है।आकाश में उड़ते हुए पंक्षी हमेशा आश्चर्य में डालते हैं। जीवन से भरपूर उनकी उड़ान होती है। उड़ान भरते समय पंक्षियों के पंखों का सामंजस्य , भाव भंगिमा , शारीरिक भाषा अलग -अलग होती है।
इन्हीं पंक्षियों के बीच में से, मुझे मैना बहुत आकर्षक लगती है। हर समय उतावली और हद्द से ज्यादा बातूनी दिखती है।
इतनी बातूनी कि अगर उसकी भाषा समझ में आये तो लेखक को , उपन्यास और कहानियां लिखने की विषय वस्तु की खोज में भटकना न पड़े। चोंच पीली या संतरे रंग की, हर समय बातचीत में व्यस्त। निडर इतनी की आँखों देखी बात याद आती है।
नेशनल हाईवे पर जब सफर पर निकलो तो सामान्यतौर पर शहर की भीड़भाड़ से दूर हो जाते हैं। ऐसे समय में खिड़की के बाहर देखकर आप शांत दिमाग से प्रकृति का अवलोकन कर सकते हैं।
आकाश में उडाता हुआ क्रोंच पंक्षी का जोड़ा ,किसी जलस्रोत के किनारे शांत और गंभीर बैठे हुए सारस ,अपने अण्डों और घोसले को छुपाने की कोशिश में कर्कश आवाज निकाल कर लम्बी लम्बी टांगों से इधर उधर भागती हुई टिटहरी ऐसा लगता मानों बोल रही हो, मेरे घोसले से दूर ही रहना।पंक्षी जगत की सिविल इंजीनयर बया चिड़िया कुशलता से अपना घोसला बनाती हुई दिख जाती है। आकाश में बहुत दूर ऊंचाई पर बाज और चील की उड़ान भी दिखती है।
लिखने की शुरुआत मैना के निर्भीक स्वभाव से प्रेरित हो कर हुई थी।
यात्रा के दौरान टोल बैरियर के आसपास बड़े बड़े ट्रक ,ट्रैलर,बस ,कार सभी की गति काफी कम हो जाती है या पहिये थम जाते हैं। ऐसे में उन धीमी गति से घूमते हुए पहियों के ऊपर बैठ कर भी इन मैनाओं का वार्तालाप जारी था। साथ में वाहनों के पहिये में चिपके खाने लायक चीजों को उन पलों के बीच में से चुरा ले रही थीं। फुर्तीलापन इतना कि , पहियों के समतल रोड पर पहुँचने से पहले ही फुर्र की आवाज के साथ सुरक्षित जगह पर पहुंच जाती।
यात्री बसों या अन्य वाहनों से बाहर फेंके गए या जान बूझ कर बाहर डाले गए खाने के सामान भी, मैनाओं का जमघट लगने का कारण होते हैं।
यात्रा से वापस आने पर घर की बालकनी और छज्जों पर जोड़े में बैठी हुई मैना को देखकर चेहरे पर मुस्कान आ गयी।
कबूतरों की दुनिया से अलग इन मैनाओं का साम्राज्य दिखता है। सुस्त मोटे औरआलसी कबूतरों की तुलना में इन मैनाओं की ऊर्जा और इनकी वाक्पटुता सच में आकर्षक लगती है।
एकबार मन के भीतर से आवाज आती है काश ! बचपन में आसानी से और हर जगह नज़र आने वाली शर्मीली और नखरीली सी गौरैया भी इन छज्जों पर ,स्वछंदता के साथ घूमती हुई नज़र आने लगे। तब शायद पंक्षियों की दुनिया का स्वस्थ परिवेश हमारे आस पास भी नज़र आये।
यही सब सोचते सोचते बालकनी के आस पास छज्जों को निहार रही थी कि आकाश मार्ग से तोतों का समूह अपनी तीखी कर्कश आवाज निकालते हुए तीर की भांति निकल गया ,पलक झपकते ही आँखों से ओझल हो गया। मेरे विचारों का क्रम वहीं टूट गया और मै कुछ लिखने के लिए अपनी डायरी के साथ हो ली।