माह सावन का ,भगवान शिव की कृपा का केंद्र
इठलाती, बलखाती ,कलकलाती साथ ही गर्जन का सा स्वर निकालती बहती हुई जीवनदायनी नदियाँ..
गीतों ,लोकगीतों और कविताओं में सावन मास प्रकृति के सौंदर्य से भरपूर दिखता है..
विषमता भी दिखती है इस माह में
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कहीं भक्ति और आस्था का संगम और भगवान शिव का जलाभिषेक...
कही भक्ति और आस्था पर ,उपद्रव का आतंक.
ध्यान से देखिये सावन मास को ,प्रकृति के सौंदर्य को….
जलस्रोतों को ,हरियाली से भरपूर धरती पर पनपे पौधों ,वृक्षों और लताओं को….
ऐसा लगता है मानो अपनी ही मौज में लयबद्ध तरीके से सरगम का प्रवाह हो…
हमारे शहर से भी यमुना नदी का प्रवाह है ,उनका अपना मार्ग है। जाने कितने सालों से अविरल बह रही हैं।अनवरत बहने के क्रम में कई बार अपने मार्ग को आंशिक रूप से परिवर्तित भी किया है।
कलयुग में प्रदूषण नामक बीमारी से ग्रस्त रहती हैं। साफ़ – सफाई , रख – रखाव में प्रशासन का काफी खर्चा होता रहा है। मनुष्य जनित समस्या है उसी स्तर पर निदान खोजा जाता रहा है। सामान्यतौर पर यमुना जी के पुल के ऊपर से गुजरते ही आस्था जहाँ “जय यमुना मैय्या” कराती है वहीँ नाक अनचाही बदबू से अपने आपको बचाती है।
आजकल यमुना जी अपने जल स्तर से काफी ऊपर बह रही हैं। प्रशासनिक और राजनीतिक हलकों में गरमा -गर्मी का माहौल है। बाढ़ग्रस्त इलाकों में सुविधायें और असुविधायें एक बहुत बड़ा मुद्दा है।
आँखों के द्वारा दिखाई देने वाला प्रदूषण ! जल के बहाव के साथ बह चुका है।
भारी बारिश के बीच यमुना जी के पुल के ऊपर से गुजरते हुये ,ऊंचाई के स्तर पर चढ़े हुए जल को देखकर एक सामान्य नागरिक की तरह मै भी विचारग्रस्त हो गयी।
नदी के बहाव के इतने पास मानव बस्तियों का बसना , क्या सामान्य बात है ?
विचारों को अमलीजामा पहनाना है या उससे लाभ लेना है ,यह परिस्थितियों और लाभ के स्तर पर निर्भर करता है।
यह सब राजनीति की बातें है ,एक सामान्य नागरिक की सोच से परे।
ऐसा लगा मानो यमुना जी कह रही हो ,मै तो यमुनोत्री से चली हूँ रास्ते में देश की राजधानी भी आ गयी।
शहरों की बसावट ! वो तो आज की बात है ,यमुना में प्रदूषण का स्तर ! वो भी आज की बात है। सोचो अगर इतना ही प्रदूषण पहले भी होता तो कान्हा जी को यमुना के तल पर कंदुक कैसे मिलती। यमुना के जल में जीव जंतुओं का अस्तित्व कब का समाप्त हो गया होता।
आजकल में ,देश की राजधानी में फिर से बरसात की सम्भावना है। वोट बैंक की राजनीति के तहत यमुना के किनारे पर बसाये हुए लोग ,अपनी गृहस्थी समेटे हुए बैठे हुए नजर आते हैं।
कमोवेश हमारे देश के अधिकांश शहरों का, सावन के महीने में यही हाल है।
हिमालय पर विराजमान भगवान शिव का विचरण इस महीने में धरती पर होता है। जब से होश संभाले हैं यही सुनते आये हैं।
धंसते हुए मार्ग ? भरभरा कर गिरते हुए पहाड़ ? नदियों का तांडव ?
सामान्य मनुष्य कि सोच से परे तो नहीं हैं ये सारे सवाल ?