शाही – दावत (भाग -२)
बुरहानपुर से आम आया तो , शाही – महल में आम खाने की दावत दी गयी। सिर्फ नगरवासी ही नहीं शाहजहाँ भी आम के शौक़ीन थे। बुरहानपुर के शाही बाग में लंगड़ा आम का एक पेड़ था। एक – एक साल छोड़कर उसपर खूब फल आते थे। इस बार उस पेड़ पर फल आये थे।
दक्कन के नए सूबेदार मोहम्मद औरंगजेब ने खानदेश के सूबेदार को , खासतौर पर उस पेड़ की देखभाल के लिए कहा था।
बुरहानपुर खानदेश की राजधानी थी। ज्यों ही आम पकने लगे ,औरंगजेब ने डाक चौकी के जरिये अब्बाहुजूर के लिए आम भिजवा दिए।
आम को भिजवाते समय हिदायत भी दी थी कि ,आम की टोकरियों को जमीन पर न रखा जाये। औरंगजेब जब दक्कन जाने कि तैयारी कर रहा तभी बादशाह ने उस पेड़ के बारे में बताया था। औरंगजेब ने पेड़ कि देखभाल के लिए एक हैदराबादी रिसालेदार को बैठा दिया था।
बादशाह के साथ आम खाने का आसान काम भी मुश्किल हो जाता है। जाने किस वक़्त किसको टोंक बैठे बादशाह ! आम खाने कि दावत में शामिल लोगों का हाथ काँप रहा था। उन्हें डर इस बात का सता रहा था कि कहीं आम कि गुठली , हाथ से छिटक कर कीमती फर्श पर न गिर जाये। ऐसा हुआ तो गजब हो जायेगा। बादशाह कि एक – एक बात कांटें समान चुभेगी।