महाभारत की कथा के अनुसार
उत्तंग मुनि महर्षि गौतम के प्रिय शिष्यों में से एक थे I वे बड़े तेजस्वी और तपस्वी थे I उनकी यही विशेषता उनके तपोबल में वृद्धि करती थी I
ऋषि गौतम के पास हजारों शिष्य आये और गुरुकुल में रहने का अपना समय पूरा करके, अपने अपने घरों को वापस चले गये I
किन्तु उत्तंग पर अत्यंत प्रेम होने के कारण ,महर्षि गौतम ने उन्हें घर जाने की आज्ञा नहीं दी I
धीरे धीरे उत्तंग मुनि को बुढ़ापे ने आ घेरा I गुरुभक्ति में मग्न होने के कारण मुनि को बुढ़ापा आने का पता भी न चला I
एक दिन की बात है उत्तंग जंगल में लकड़ी लाने के लिए गये I जंगल से वापस आते समय उनके सर पर लकड़ी का एक बड़ा सा गट्ठर था जो अत्यंत भारी था I
गट्ठर को उठाने के कारण वो बहुत थक गये ,आश्रम में पहुंचकर गट्ठर को जमीन पर गिराने लगे I उसी समय लकड़ी में फंस कर चाँदी के समान एक सफ़ेद बाल लकड़ी में उलझ गया I यह बाल मुनि की जटा के बालों में से एक था I
गट्ठर की बोझ की थकान,बहुत जोर से भूख का सताना ,ठीक उसी समय सफ़ेद बाल को देखकर मुनि फूट फूट कर रोने लगे I
तब गौतम मुनि ने पास आकर पूछा पुत्र ! आज तुम्हारा मन शोक से व्याकुल क्यों हो रहा है ? मै इसका कारण जानना चाहता हूँ I
उत्तंग ने कहा,गुरुदेव आपका ही प्रिय करने की इच्छा से मै सदा, आपकी सेवा में श्रद्धा और भक्ति रखता था I
इसीकारण से मुझे पता ही नहीं चला, कब आयु हाथ से सरक गयी I मुझे यहाँ रहते हुए सौ से भी अधिक वर्ष बीत गये आपने मुझे घर लौटने की आज्ञा नहीं दी I
गौतम ऋषि ने कहा, भृगुनन्दन तुम्हारी सेवा देखकर मुझे तुमसे स्नेह हो गया था I इसीलिए इतना समय बीत गया मुझे इसका पता भी नहीं चला I
अब देर मत करो, मै तुम्हे घर जाने की आज्ञा देता हूँ I उत्तंग ने कहा ,मुनिवर मै आपको गुरुदक्षिणा में क्या दूँ ?
ऋषि ने कहा ,पुत्र मै तुम्हारी सेवा और भक्ति से प्रसन्न हूँ ,यही तुम्हारी तरफ से दे जाने वाली दक्षिणा है I
इसके बाद उत्तंग मुनि ने तपोबल से युवावस्था को प्राप्त किया I
आश्रम से जाने की आज्ञा लेने की लिए गुरुपत्नी अहल्या के पास पहुंचे I