“NAUGHTINESS KNOWS NO BORDERS, LOOK AT THESE KITTENS INDULGING IN SOME PLAYFUL STUFF.”
अक्सर ऐसा होता है कि छोटे बच्चे ! चाहे वो इंसान के हो ,जानवर के या, पक्षियों के अपनी हरकतों से एक समान से दिखते हैं …..
उनके चेहरे की मासूमियत! ठहर कर ,बार बार उन्हें देखने पर मजबूर करती है ……
बीते हुये कल की ही तो बात थी…..
बाहर घूमते समय मै हवाओं के
साथ थी…
दिमाग मे उधेड़बुन चल रही थी….
कुछ अच्छा लिखने के लिये विषयवस्तु
नही मिल रही थी …
देखकर बिल्ली के बच्चों को खेलते हुये….
अपने चेहरे को मुस्कान से सजाने मे मशगूल हो गयी….
एक सामान्य मनुष्य की तरह…
सोचने पर मजबूर हो गयी…
क्या होते होंगे वही भाव !जानवरों के मन मे भी…
उठते होंगे विचार! सामान्य जनमानस की तरह ही…
थी वो रात अँधियारी, गर्म मौसम की मारामारी….
सोचा हमने रात है तो क्या हुआ?..
निकलते हैं थोड़ा बाहर ,छोड़कर घर की चारदीवारी..
अँधियारी रात मे दूर पेड़ की छाँव मे कुछ
चमक रहा था…..
ऐसा लगा टिमटिमाते हुये तारों को पकड़ने
के लिये कुछ लपक रहा था….
जाग उठी मन मे उत्सुकता….
क्या दिख रहा है वहाँ पर कुछ हिलता डुलता…..
पास मे जाकर देखा तो ,बंधु बाँधवों का एक झुण्ड था….
इंसान नही लेकिन, इंसानी बच्चों की तरह ही कर रहा उछलकूद था….
माँ अपनी गंभीरता को दिखा रही थी…
हो रही बच्चों की शैतानियों से ,अधखुली आँखों से ….
खुद को अनजान जतला रही थी…..
ऐसा लग रहा था, किसी प्रतियोगिता का आयोजन
हो रहा था….
लंबी और ऊँची कूद के प्रतियोगी के साथ-साथ….
अच्छा धावक भी तैयार हो रहा था…..
थोड़ी ही देर मे खेल का स्वरूप बदल गया…
होता हुआ प्यारा सा खेल,युद्ध भूमि मे बदल गया….
पूँछ उठा कर भागते हुये बिल्ली के बच्चे….
अपने बच्चों के समान ही दिख रहे थे…..
बात बात मे एक दूसरे पर चिल्लाते ,प्यार जतलाते….
हँसते खेलते हुये दौड़ा भागी भी कर रहे थे….
बड़े ध्यान से मै इस तरह की बालसुलभ सी
चीजों को देख रही थी……
देखते-देखते ही इंसानी बच्चों, और बिल्ली के बच्चों की. ….
आपस मे तुलना भी कर रही थी……
वही ,नये नये शोध या अनुसंधान करने के अनुभव से ….
बिल्ली के बच्चे भी गुजर रहे थे…..
कभी किसी चीज को तेजी से भाग कर पकड़ते…..
कभी छोड़ते कभी तोड़ने की कोशिश करने मे
गंभीरता के साथ लगे हुये थे…..
बडी देर से मै यह सब देख रही थी…….
और इन क्रीड़ाओं को देख देख कर अपने लिखने
की पृष्ठभूमि बनाने की सोच रही थी…….
अचानक से थोड़ी डरावनी सी आवाज सुनायी पड़ी……
शायद माँ अपने बच्चों की सुरक्षा के लिये चिंतित हो खड़ी…..
मेरी तरफ गुस्से से देख रही थी…..
कहीं मै उसके सुरक्षा घेरे को तो नही भेद रही थी…..
मैने उसकी आँखो मे देखा, माँ की व्याकुलता के साथ-साथ
बच्चों की चिंता समायी हुयी थी……
इसीलिये तो विडाल माँ घबरायी हुयी थी…..
थोड़ी ही देर मे वो आश्वस्त हो गयी……
उसकी भाव भंगिमा मे निश्चिंतता देखकर….
मै भी दूसरी तरफ व्यस्त हो गयी…..
आगे बढ़ ली मै कुछ नया रचने के लिये…..
एक नया विषय मिल गया था मुझे, कुछ बेहतर लिखने के लिये….