इमारत एक ऐसी! जिसके भीतर अर्श से लेकर फर्श तक, सभी दिशा में आइना ही आइना लगा हुआ I जिस तरफ देखिये उस तरफ सजीव और निर्जीव वस्तुओं का प्रतिबिम्ब नजर आता I एक ही व्यक्ति खुद को अलग अलग प्रतिबिम्बों में देखता I मनुष्यों के भाव हर प्रतिबिम्ब में बदले बदले नजर आते , मानव मन की झलक दिखला जाते I मनुष्यों के अलावा अगर किसी अन्य जीव का सामना ,आईने से होता है तो भ्रम की स्तिथि दिखती है I अपने ही प्रतिबिम्ब में उलझता हुआ जीव दिखता है I यही भ्रमजाल हमारी रचना की प्रेरणा बन जाता है I
Pratibimbon Ka Bhramjaal
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