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 “लोकगाथा उत्सव” हमारे लोक संगीत और नृत्य की पहचान 

by 2974shikhat July 28, 2020
by 2974shikhat July 28, 2020

Indian Culture

‘यात्रा’ थोड़े समय की हो या लंबे समय की,निश्चित रूप से ऊर्जावान करती है

दिल्ली शहर मे यात्रा की बात करें तो ,सर्दी की आहट के साथ और जाती हुयी सर्दी के मध्य यहाँ अनेक उत्सव होते हैं….
इन जगहों की यात्रा से, भारतीय संस्कृति की विरासत को देखने और समझने का अच्छा अवसर मिलता है…

इसी क्रम मे ‘लोकगाथा उत्सव’ की हमारी यात्रा

दिल्ली शहर का मौसम भी बड़ा अजीब सा है ….
सुबह और शाम के समय सर्दी महसूस होती है वहीं ,दोपहर के समय यही सर्दी अपने पांव को ज़रा सा पीछे खींच लेती है …
ऐसा मौसम हर किसी को उलझन मे डाल देता है कि,गर्म कपड़े पहनकर बाहर निकलना चाहिये कि नही..
क्योकि, दोपहर मे सूर्य की किरणें और सड़क पर गाड़ियों की भीड़, वातावरण मे वैसे ही गर्मी ला देते हैं…
इसी उलझन के बीच मे मैने अपने जीवंत से शहर मे, शनिवार का दिन घर की जिम्मेदारियों से अलग “लोकगाथा उत्सव” के नाम किया…
इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कलाकेन्द्र मे भारत सरकार के, संस्कृति मंत्रालय द्वारा आयोजित इस समारोह के लिए निकल पड़ी
जनपथ तक का सफर पूरा करने के बाद IGNCA ( Indira Gandhi National Center for Art’s)परिसर की पार्किंग मे गाड़ी खड़ी करने के बाद, मुख्य द्वार की तरफ चल दिये…

आकर्षक मुख्य द्वार –

मुख्य द्वार को ‘कत्थककली नृत्य ‘ मे पहने जाने वाले मुखौटों और बाँस की बुनी हुई दीवारों से ढाँचा बनाकर सजाया हुआ था…
उसके अंदर ही मिट्टी के छोटे छोटे घड़ों को उलटा करके लटकाया हुआ था…

Indian culture

भीतर प्रवेश करते ही तमाम रंगों से सजा हूआ परिसर, रंग बिरंगे परिधान पहने हुए कलाकारों को देखकर मन खुश हो गया

दिनकर की किरणें
दिन की दुपहरी मे
आकाश मे छा रही थी…

लेकिन ये इंद्रधनुषी रंगों की छटा
धरा पर कहाँ से आ रही थी…

चारों तरफ लगा हुआ था….
अलग-अलग राज्यों की
लोक कलाओं का मेला…

नृत्य संगीत के समूह मे
हर उम्र का व्यक्ति दिख रहा था….

क्या वृद्ध, क्या बच्चा,क्या युवा…
हर किसी के अंदर लोक संगीत और नृत्य
रचा और बसा था…..

कोई हाथ मे तलवार, कोई लाठी तो कोई
अन्य प्रकार के शस्त्रों से खुद को सजा रहा था….

नृत्य – संगीत का वातावरण मन मे खुशी
के साथ-साथ उत्साह को भरता जा रहा था….

तरह-तरह के ‘वाद्ययंत्र’ हाथों मे सजे हुए थे…
शब्दों के बोल के द्वारा ‘लोक गीत’
शौर्य व जीवन की वास्तविकता से जुड़े हुए थे…

देख कर इतनी सारी विविधतायें और रंगों का समागम
मन उल्लास से भर गया….

अपने देश की संस्कृति और सभ्यता के समक्ष
नतमस्तक हो गया…

Indian culture

लोकसंस्कृति की विविधता –

हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति इतनी सारी विविधता से भरी हुई है कि, सुनने और देखने पर आश्चर्य होता है…
जन्म से लेकर मृत्यु तक के लोकगीत और संस्कार इसमे समाये हुए हैं…
बात करिये यदि ,लोक परंपराओं और कलाओं की तो हमारा मानना है …
ये कलायें सामान्यतौर पर व्यवसायिक रूप से नही सिखायी जाती …
हमेशा एक पीढ़ी दूसरी पीढ़ी को, सौंपती जाती है…
शायद इसीलिए इनकी प्रस्तुति मे, मस्त मौला अंदाज दिख रहा था…
किसी के चेहरे पर थकान या झुन्झलाहट वाले भाव नही दिख रहे थे..
Indian culture

लोक संगीत और वाद्य यंत्र –

लोक संगीत मे प्रयोग मे आने वाले अधिकांश वाद्ययंत्र, शास्त्रीय संगीत मे उपयोग मे आने वाले वाद्ययंत्रों से ज़रा सा अलग होते हैं..
एक तार,दो तार,ढोल या उन प्रदेशों मे आसानी से उपलब्ध सामान से, अपनी सुविधा अनुसार वाद्ययंत्र बना लिये जाते हैं …
इस बात को मैने सुना था लेकिन, लोक गाथा उत्सव मे सामने दिख रहा था..

प्रस्तुति लोककलाओं की –

कहीं बिहू,कहीं करमा,कहीं पहाड़ी अंचल के नृत्य हो रहे थे …

अचानक से तमिलनाडु के कलाकारों की तरफ नज़र फिर गयी…

ये शंकर पार्वती जी, देवी देवताओं के साथ जमीन पर आकर खड़े हुए मिले..

Indian culture

जगह जगह लोक परंपरा को ध्यान मे रखकर बनायी हुयी, झोपड़ियाँ दिख रही थी …
जिनके ऊपर तरह तरह की आकृतियों को उकेरा हुआ था…

हम एक जगह खड़े होकर किसी प्रदेश का नृत्य देख रहे थे कि, अचानक से कान मे जोशीला सा संगीत सुनाई पड़ा

अपने आप ही पैर उसी जोश के साथ,उस दिशा की तरफ बढ़ चले..
चौपाल जैसी बनी हुई उस जगह पर 18-19साल की लड़की, जोश के साथ ‘आल्हा’ गा रही थी…
Indian culture

कार्यक्रम के दौरान ही उस बच्ची के गुरु ने ये बताया कि ,आल्हा गायन अभी तक सिर्फ पुरूषों की विरासत ही समझी जाती थी..

लेकिन उन्होंने इस परंपरा को तोड़कर, आल्हा गायन के क्षेत्र मे लड़कियों को आगे लाने का अपना पहला प्रयास किया है…

जिसे उस बच्ची ने बखूबी निभाया …

मराठी लोक संगीत मे महाराजा शिवाजी की शौर्य गाथा सुनाने के पहले “वक्रतुण्ड महाकाय” श्लोक के माध्यम से ,गणेश भगवान की आराधना ने कानों के जरिये मन को मंत्रमुग्ध कर दिया…

Indian culture

बड़ा अद्भुत सा अनुभव हो रहा था …

ऐसा लग रहा था कि हर प्रदेश, अपने लोक संगीत और नृत्य को प्रस्तुत करते समय चीख चीख कर कह रहा हो…

देख लो ज़रा ध्यान से हमे भी, पश्चिमी बयार की आँधियाँ हमारे पांव के नीचे से जमीन खिसकाने के लिए तैयार रहती हैं…

वातावरण मे बिखरा हुआ लोकनृत्य – संगीत का उत्साह और खाने का स्वाद –

आकाश की तरफ नज़रों को फेरा तो ऐसा लगा कि,परिंदों का झुण्ड भी ज़रा नीचे आकर इस लोकनृत्य और संगीत का मजा ले रहा हो…
चारों तरफ संगीत और नृत्य को देखते और सुनते हुए, कुछ खाने के इरादे से खाने के स्टाल के पास पहुँचे…
भूख के समय खाने के लिए लिट्टी चोखा सही लगा ..
उसके साथ कश्मीर की केसर बादाम की चाय की चुस्कियाँ लेते हुए, एक जगह आराम के इरादे से बैठ गये…
सामने की तरफ देखा, राजस्थानी लोक कलाकार ‘कलबेलियाई नृत्य’ की आकर्षक प्रस्तुति कर रहे थे…

बात लोक कलाओं के संरक्षण की और उसपर गर्व की 

Indian culture

लोकनृत्य और संगीत हमारी पहचान है,सबसे बड़ी बात इनके संरक्षण की है…
वहाँ घूम रहे विदेशियों के चेहरे के आश्चर्य और प्रसन्नता वाले भाव, मुझ को भी प्रसन्न कर गये..
वापस आने के लिए पार्किंग की तरफ बढ़ चली ..
परिसर मे लगे हुए बाटल ब्रुश,पीपल ,नीम ,अशोक के घने पेड़ लोकसंगीत को बड़े ध्यान से सुनते और देखते हुए दिख रहे थे…
आकाश की ऊँचाईयों पर सैर करते हुए पंक्षियों को भी शायद , शाम होने का पता चल गया था..
पंक्षियों ने भी अपने पंखों को इन पेड़ों की तरफ मोड़ना शुरू कर दिया था ..
कुछ तो आकर धीरे-धीरे ऊँची शाखाओं पर बैठने लगे..
इसी कारण से पेड़ों पर हलचल बढ़ गयी…
Indian culture

जैसे-जैसे मै परिसर से दूर हो रही थी ,ढोल मजीरे और नगाड़े की आवाज धीमी होती जा रही थी..

लेकिन मेरी आँखों ने जो अद्भुत नजारा देखा और जो संगीत सुना, वो मेरे दिल और दिमाग मे अपना घर कर गया …

एक बार फिर से अपने देश की लोकसंस्कृति और लोकपरंपराओं पर गर्व महसूस करा गया…….

Feeling of positivityIGNCAIndian society and cultureLok gatha utsavMusic and dance
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