बस यही है जीवन की परिभाषा….
सरकते हुए वक्त के साथ
कभी आशा तो कभी निराशा…..
टिक टिक करती हुई घड़ी भी यही
बोल रही थी….
ज़रा सी बेपरवाह थी, लेकिन कनखियों
से ही हमे देख रही थी…..
अपने बातूनी स्वभाव के कारण
शब्दों को न रोक पायी…..
एक बार फिर से भौहों को तरेरकर
हमारे सामने खड़ी नज़र आयी…..
वक्त कभी नही थमता दिखता….
उलट कर ,पलट कर,थमकर ,ठिठक कर
कभी रुकता, कभी थकता नही दिखता…..
जीवन के सफर मे…….
बेखबर से शहर मे……
पगडंडियां हो या,चमकीली सी सड़क…..
वक्त सरकता सा नज़र आता है……
रेत की तरह फिसलता चला जाता है…..
मिल गया अनजान सी राहों पर……
बोला वक्त को यूँ ही, आरामतलबी
के अंदाज से तोल रही हैं…..
समय के बलवान होने की बात को……
कभी लिख रही हैं,तो कभी लयबद्ध तरीके से
बोल रही हैं…….
दिख रहा है हमें……
कभी थक कर, कभी थमकर…..
राह मे वक्त की बात पर डोल रही हैं……
अब ज़रा जल्दी से कुछ सकारात्मक सा
लिखकर तो दिखाइये……
वक्त की बात पर…..
कागज और कलम के सहयोग से
शब्दों के साथ मुस्कुराइये……
अब हमारी बातों को ध्यान से
सुनती जाइये…..
राह की मुसीबतों को सकारात्मक दृष्टिकोण से
हौसले के साथ सुलझाइये……
अब वक्त, बेवक्त सिर्फ वक्त को ही
मत कोसिये……
ज़रा सा कर्मठता को बढ़ाइये फिर……
वक्त की बातों को सकारात्मक अंदाज मे सोचिये…..
उतारा है परवरदिगार ने हर किसी को
निश्चित वक्त के साथ जमीं पर……
अनजान सा रहता है हर इंसान
वक्त की इस सच्चाई से…..
मन की भूलभुलैया को ही मानता है
जीवन की सौगात……
ऊपर वाले की बाजीगरी को…..
अपनी कलम के माध्यम से ही दिखाइये……
नकारात्मक विचारों मे डूबे हुए समाज को…..
लेखनी के माध्यम से ही ……
सकारात्मक राह पर वक्त के साथ
मोड़ कर तो दिखाइये……..

Image Source : Google Free
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