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गैर इरादतन लिखने के लिए बैठे तो
दिमाग सो सा गया
ऐसा लगा विचारों के समंदर में खो सा गया
विचारों की उठा-पटक के साथ शब्द भी
उल्टे पुल्टे जा रहे थे….
दिमाग में से निकलकर हाथ की पकड़ में
नहीं आ रहे थे….
कागज़ कलम को थामते ही कुछ ही पलों में
शब्दों ने अपना रास्ता ही बदल लिया…..
जीभ शांत होकर ये सब देख रही थी…..
जल्दी ही उसने अपनी वाकपटुता दिखाया…..
मुख के भीतर बैठे बैठे ही शब्दों को चार बातें सुनाया…..
अब कैसे सैलाब जैसे कागज पर उतरे जा रहे हो…..
अभी तक तो विचारों के समंदर में कभी डूब तो कभी
उतरा रहे थे…..
शब्दों ने अपने सिर को ऊपर नहीं उठाया…..
कलम की सहायता से गद्य पद्य या किसी अन्य
विधा की रुपरेखा संग बंध रहे थे…..
बोले अभी हमें हमारे काम से मत भटकाना……
विचारों के समंदर से बस अभी अभी तो निकले हैं….
इरादा विचारों को नये नये रंगों से रंगने का है…..
कविता कहानी या कुछ भी उपयोगी लिखने का है…..
तहेदिल से शुक्रिया ऊपरवाले का करना है…..
विचारों को कागज पर उतरने के लिए सकारात्मक शब्द देते जाना…
गिरते पड़ते,आगे बढ़ते,संभलते समाज के लिए
कुछ हौसले की बात करते जाना……
शब्दों को उतारना जब भी कलम के माध्यम से कागज पर
अहम् के भरम को ज़रा सा परे करते जाना…..
जीभ दांतों के तले बैठकर ही दांतों तले
उंगली दबा रही थी……
शब्दों की बातों को सुनकर खुद भी
विचारमग्न हुई जा रही थी……
ज़रा सा रुंधे हुए गले से शब्दों से बोली…..
हमारा इरादा तो बस ज़रा सा मसखरी का था……
अब तुम अपना काम करो……
कागजों को तरह-तरह की रचना से भरो…..
हम भी काम कुछ उपयोगी करते हैं…..

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0 comment
khubsurat kavita.
पढ़ कर सराहने के लिए शुक्रिया 😊
दिमाग और जीभ का अच्छा सामंजस्य हो तो, लेखक के साथ साथ कुशल वक्ता भी बन सकते हैं।