जीवन के सफर मे अध्ययन, लोक व्यहवार और समाज! शारीरिक और मानसिक रूप से विकसित होते हुए बच्चों की, सोच समझ का दायरा बढ़ाता जाता है।
व्यक्ति अपने आसपास के वातावरण के अनुरूप, व्यहवार करता दिखता है ।
वहीं कभी अपनी सोच समझ के दायरे को, ज़रा सा विकसित करता है।
भारतीय समाज का तानाबाना देखो तो,जिस धर्म या संप्रदाय मे ,शिशु जन्म लेता है।
उस परिवेश के अनुरूप व्यहवार करना, स्वाभाविक सा लगता है।
भारतीय समाज इस बात को, सहर्ष स्वीकार करता है।
आजकल भारत मे हिंदू समाज, चैत्र मास मे माँ दुर्गा की आराधना मे जुटा हुआ है।
साल मे दो बार ,माँ की आराधना करता हुआ हिंदू समाज! प्रकृति के साथ साथ समाज और परिवार के भीतर भी, आराधना होते हुए देखता है।
आस्था और भक्ति की बात को, वातावरण मे महसूस करता है।
सुबह और शाम को आरती की घंटियों के स्वर….
धूप और अगरबत्ती की महक….
ललाट पर रोली और चंदन का टीका….
कहीं दुर्गा स्तुति ,कहीं होते दिखते भंडारे….
घरों से बाहर निकलो तो,बाजार भी पूजा पाठ के सामान से लेकर ,व्रत मे खाने पीने की चीजों से सजे रहते हैं।
दुकानों की रौनक और खरीददारी मे जुटी हुई भीड़ , बिना बोले ही माँ की आराधना से जुड़ने की बात बोल जाती है।
रेस्टोरेंट से लेकर फुटपाथ तक, व्रत के समय खाने पीने वाली चीजों की दुकानें ,सजी दिख जाती हैं।
आस्था,भक्ति ,स्वास्थय और आध्यात्म के साथ, जनमानस जुड़ जाता है।
शीतकालीन नवरात्रि की बात अगर करें तो,रामलीला के कारण सजे हुए पंडाल मेले जैसा वातावरण बना देते हैं।
भारतीय समाज का बाल समाज, मनोरंजन से जुड़ जाता है।
चैत्र नवरात्रि की अगर बात करें तो ! भगवान राम का जन्म और, हिंदू नववर्ष का शुभारंभ दिखता है।
जैसे ही नववर्ष आया महाराष्ट्र, गुड़ी पड़वा के उल्लास के साथ दिखा।
दक्षिण भारत मे नववर्ष ,भगवान राम के द्वारा बालि के वध के, पराक्रम को दर्शाता हुआ दिखा।
किसी प्रांत मे उगादि के रूप मे, मनाता हुआ दिखा।
उधर पंजाब, बैशाखी के आने की बात पर ,ढोल की आवाज पर थिरकता हुआ दिखा।
चैत्र नवरात्र के साथ, नववर्ष का उत्साह ,भारत भूमि पर, खिलखिलाता सा नज़र आता है।
माँ दुर्गा की आराधना के साथ, हमारी भी आस्था, बचपन से ही जुड़ी हुई है।
आज भी नवरात्रों के समय, घरों से आनेवाली फलाहारी खाने की खुशबू,आकर्षित करती है।
सामान्यतौर पर उत्तर भारत,मध्य भारत ,हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड मे चैत्र नवरात्र पूरी आस्था और भक्ति के साथ मनाया जाता है ।
महानगरों मे हर प्रांत के लोगों के रहने के कारण,यहाँ के वातावरण मे नवरात्रि का उत्साह दिखता है।
बचपन मे कन्या पूजन के समय खाये जाने वाली, आलू-पूरी,चने और हलवे का प्रसाद !शायद ही कोई महिला हो जिसने न खाया हो।
जितना स्वाद हलवे चने और पूरी का रहता था, उतनी ही खुशी गुल्लक मे बढते हुए धातु के रुपये और, कागजों के रुपये से मिलती थी।
साल मे दो बार कन्या पूजन के समय मिलने वाली धनराशि! बेटियों को पहले भी अमीर होने का बोध कराती थीं ,आज भी कराती हैं।
गुल्लकें भारी होती जाती थीं,और बेटी होने पर अभिमान भी होता था।
आज कन्या पूजन के लिए घूमती हुई टोलियों को, जब उत्साह के साथ देखती हूं तो,चेहरा
खुदबखुद मुस्कान के साथ सज जाता है।
मन करता है उनके साथ, उनकी अर्जित की हुई धनराशि के, जोड़घटाने के साथ जुड़ जाऊं।
उनके उपहारों को ज़रा सा सहेज दूं।
उनको बेटी होने पर गर्व का अहसास करा दूं।
बरबस ही माँ दुर्गा की तरफ नज़रें उठ जाती हैं।
मन से यह प्रार्थना निकलती है।
सहेज कर रखना माँ अम्बे!अपनी आस्था और ,कन्या पूजन जैसी भारतीय परंपराओं को।
एक अलग ही शक्ति होती है,माँ जगदम्बे की आराधना मे।
ऐसा लगता है मानो, ऊर्जा का अविरल प्रवाह हो रहा हो सारे वातावरण मे।
सकारत्मकता का संचार हो रहा हो।
भक्ति और आस्था, अपने ही शब्दों मे बोल पड़ती है।
सामाजिक कल्याण की बात…..
कन्याओं के अधिकार और सम्मान की बात ….
“बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियान की बात…..
“बेटियों की सुरक्षा की बात”, एकबार फिर से “चैत्र नवरात्रि” के साथ…
(सभी चित्र internet से )