भोर की अरुणिमा के साथ, पक्षियों की चहचहाहट के बीच में
जीवन को जीने का संघर्ष दिख गया….
नन्हा सा परिंदा अपने पंखों को फैलाकर
उड़ने की कोशिश करता हुआ दिख गया…..
अभिवावक नन्हे परिंदे के भीतर उत्साह के साथ
हौसला बढ़ा रहे थे…..
नन्हे परिंदे की उड़ान की कोशिश में…
पेड़ पौधों के साथ साथ जमीन पर वो खुद भी
फुदकते हुए नज़र आ रहे थे….
साज संभाल,अपनत्व,प्यार, ईमानदारी, दायित्व
स्वाभिमान और विश्वास, ये सभी जीवन की मूलभूत आवश्यकता होते हैं…..
सृष्टि की सजीव रचना को करीब से देखने पर
जीवन के ये सूत्र, हर जीव में दिखाई से पड़ते हैं….
नि:संदेह मनुष्य जीवन अनमोल होता है….
अन्य जीवों की तुलना में मनुष्य मानसिक रूप से विकसित होता है….
मनुष्य की जिम्मेदारी निरीह प्राणियों के प्रति भी बनती है…..
परिवार के सदस्यों के प्रति जिम्मेदारी, परिंदो की न समझ में आने वाली
भाषा में भी झलकती है……
दूसरी तरफ परिंदों की प्रफुल्लता,उनकी खुशी उनका कलरव
पक्षियों के समाज का ताना-बाना दिखा देती है…..
नन्हे परिंदे की बार बार असफल कोशिश करने की बेचैनी
उसके अभिवावकों के व्यहवार से भी झलक रही थी…..
ऐसा लग रहा था कि मां चिड़िया कभी अपने बच्चे को …..
अपने निरीक्षण में परख रही थी….
तो कभी जोर से झिड़क रही थी….
परिंदों का व्यहवार आश्चर्य में डाल रहा था…..
वो भी एक परिवार था जो अपने बच्चों को
जीवन का अध्याय पढ़ा रहा था…..
मौसम की बेरुखी और शत्रुओं से बचने के लिए परिंदों का
घोंसले को बनाने का हुनर भी आश्चर्य में डालता है…..
ये तिनकों को समेटना,रिश्तों को बांधना…..
घोंसले को बनाना, उन्हें कौन सिखाता है…..
परिंदे भी अपने गुणों और ज्ञान की विरासत को
नन्हे बच्चों को सौंप कर निश्चिंत से हो जाते हैं…..
अपने इस व्यहवार के कारण नन्हे से होने के बाद भी
मानव जीवन से समानता दिखाते हैं…..
जीवन के सूत्र को ईमानदारी के साथ निभाते हुए
नज़र आते हैं…..
देखते ही देखते जमीन पर बैठा हुआ नन्हा सा परिंदा
अपने अभिवावकों के संरक्षण में उड़ान भरता हुआ नज़र आ गया…..
उसका उड़ान भरने का अंदाज, हौसले के साथ
उसके आत्म विश्वास को झलका गया……
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I truly believe in quote you shared and beautiful inspiring poem !!
Thanks😊