पांडवों के वैदिक संस्कार संपन्न हो चुके थे।बाल अवस्था मे कौरव और पांडव! सभी राजकुमार, आपस मे मिलजुल कर खेलते हुए से लगते थे।व्यास जी की सलाह मानकर ,कौरवों के अन्याय की पूर्वाभास की बात जानकर सत्यवती! जंगलों मे तपस्या के लिए चली गई ।
भीमसेन और दुर्योधन का जन्म एक ही दिन हुआ था।शिशु अवस्था से ही भीम बहुत शक्तिशाली थे।भीमसेन के जन्म के समय, यह भविष्यवाणी हुई थी कि यह पुत्र बलवानों मे शिरोमणि होगा।भीम के पैदा होने के कुछ समय बाद ही, एक अजीब घटना हुई ।
महारानी कुंती की गोद मे भीमसेन सो रहे थे,इतने मे एक बाघ वहाँ आ गया।महारानी कुंती बाघ से डरकर भागी,उन्हें गोद मे सो रहे भीमसेन का ध्यान भी न रहा।वो माता की गोद से एक चट्टान पर जा गिरे,उनके गिरते ही चट्टान चूर चूर हो गई ।
यह देखकर राजा पाण्डु चकित रह गये।भीमसेन की शक्ति और बालसुलभ चंचलता, सभी बच्चों पर भारी पड़ती।शक्तिप्रदर्शन के मामले मे वे सभी बच्चों से आगे रहते।
पांडवों के मन मे कौरवों के साथ खेलते समय, किसी भी प्रकार का बैर नही रहता था।लेकिन! दुर्योधन के मन मे, दुर्भावना घर कर गई थी।दुर्योधन को हर समय, भीमसेन के भीतर दोष ही दिखता था।मोह और लोभ के कारण, दोष के बारे मे सोचते सोचते ,वह स्वयं दोषी बन गया था।
उसने मन ही मन मे यह निश्चय कर लिया कि,भीमसेन को नगर के उद्यान मे सोते समय ही गंगा मे डाल दें।इसके बाद अर्जुन और युधिष्ठिर को कैद करके ,सारी पृथ्वी पर राज करें।अपने छल को सफल करने के लिए दुर्योधन ने ! जल विहार के लिए, गंगा के किनारे बड़े बड़े तंबू लगवाये,और अच्छे अच्छे खाने की व्यवस्था की।दुर्योधन के कहने पर युधिष्ठिर ने, वहाँ की यात्रा स्वीकार कर ली।
दुष्ट दुर्योधन ने विष मिले भोजन को,भीमसेन के सामने प्रस्तुत कराया।अनजाने मे विषयुक्त भोजन को भी ,भाई का प्यार समझकर विश्वास के साथ भीमसेन खा गये।
इसके बाद गंगा नदी मे सभी राजकुमार, जल क्रीड़ा करने लगे।जलक्रीड़ा करते समय विष का असर दिखाई देने लगा तो, भीमसेन विश्राम करने के लिए खेमे मे गये ,और गहरी निद्रा मे सो गये।दुर्योधन इसी अवसर की तलाश मे था।उसने स्वयं भीमसेन के शरीर को, लताओं की सहायता से मुर्दे की तरह बाँधकर गंगा के ऊंचे तट से गहरे जल मे ढकेल दिया ।
भीमसेन इसी अवस्था मे नागलोक जा पहुंचे ।वहाँ विषैले साँपों ने भीम को बहुत डसा।साँपों के विष के प्रभाव से भीमसेन के शरीर मे, खाने के द्वारा पहले से पहुंचे हुए विष का असर खत्म हो गया ।
भीमसेन सचेत हो गये,सचेत होते ही साँपों को पकड़कर पटकने लगे।बहुत से साँप घायल हो गये,बहुत से मर गये और, बहुत से डरकर भाग गये।भागे हुए साँपों ने नागराज वासुकी के सामने, सारा हाल कह सुनाया।वासुकी खुद भीमसेन के पास आये ।उनके साथ आर्यक नाग भी था,उसने भीमसेन को पहचान लिया।आर्यक नाग भीमसेन के नाना का नाना था।वह भीमसेन से बहुत प्यार से मिला।
नागराज वासुकी ने आर्यक नाग से सलाह लेते हुए पूछा कि, हम इसे क्या भेंट दें।आप कहें तो ढेर सारा धन रत्न देकर,इनको वापस भेज दें।
आर्यक ने कहा नागेन्द्र ! धनरत्न लेकर यह क्या करेगा।आप इससे प्रसन्न हैं तो इसे उन कुण्डों का रस पीने दीजिए, जिससे सहस्त्रों हाथियों का बल मिलता है।नागराज वासुकी ने ,सहर्ष आर्यक नाग की बात को स्वीकार कर लिया।
बलशाली भीम एक घूंट मे ,एक कुण्ड का जल पी जाते।इसप्रकार आठ कुण्डों का रस पीने के बाद, वो दिव्य शैय्या पर जाकर सो गये ।दूसरी तरफ नींद टूटने के बाद, कौरव और बाकी पांडव खेलकूद कर हस्तिनापुर के लिए रवाना हो गये।वे सभी यही सोच रहे थे कि भीमसेन आगे चले गये होंगे।दुर्योधन अपनी चाल चल जाने से, फूला न समाता था।
धर्मात्मा युधिष्ठिर के हृदय मे ,भीमसेन की स्थिति की कल्पना भी न हुई ।माता कुंती ने भीमसेन के न वापस आने पर ,अपनी चिंता से विदुर को अवगत कराया।विदुर ने कहा ! महर्षि व्यास के अनुसार, तुम्हारे पुत्र दीर्घायु हैं।भीमसेन जहाँ भी होंगे वहाँ से जरूर लौटेंगे ।उधर नागलोक मे आठ दिन के बाद, पवित्र रस के पच जाने के बाद ,भीमसेन और शक्तिशाली होकर जागे।
नागों ने उन्हें दस हजार हाथियों के समान शक्तिशाली होने की बात के साथ-साथ, उनके परिवार की चिंता से अवगत कराया।उसके बाद नगलोक से नाग! भीमसेन को लेकर नगर की सीमा से बाहर स्थित, उसी उद्यान मे छोड़कर अंर्तध्यान हो गये, जहाँ कौरव और पांडव पहले रुके हुए थे।
दुर्योधन के द्वारा छले जाने की बात से, पांडव परिचित थे।इसके बाद सभी राजकुमार महाराजा धृतराष्ट्र के आदेश के अनुसार, धर्नुविद्या सीखने के लिए गुरु कृपाचार्य के पास चले गये।
(कथा, महाभारत मे दिये हुए तथ्यों पर आधारित)