निश्चित तौर पर हमारे समाज को संस्कृति, व्रत और त्यौहार बाँधने का काम करते हैं ।
भारतीय समाज को देखो तो, हर समय इंसान व्यस्त सा लगता है।
कार्यक्षेत्र की बात और व्यहवार को अगर एक तरफ रखिये तो ,समाज को उत्साहित और ऊर्जा से भरने के लिए, समय समय पर, व्रत और त्यौहार आते रहते हैं।
दिख रहा आकाश मे रंगबिरंगी पतंगों का जोश ।
मकर संक्रांति का त्यौहार पास आता हुआ दिखा ।
खिल गये खेतों मे बसंती फूल ।
माँ सरस्वती के चरणों मे अर्पित किये फूल ।
बहने लगी बसंती बयार ।
पास आ गया रंगपंचमी का त्यौहार ।
उड़ता हुआ दिख रहा अबीर और गुलाल ।
वो देखो आ गया होली का त्यौहार ।
घूमती दिख रही कन्याओं की टोली ।
मस्तक पर सज गई रोली ।
कलाइयों मे बंधी दिख रही मोली ।
भगवान शिव का हो गया धरती पर वास ।
श्रावण मास मे श्यामल मेघों के साथ
धरा भी धानी से रंग मे रंग गई ।
वनस्पतियाँ भी प्रफुल्लित सी लग रही ।
कहीं तीज मन रही तो कहीं
भाइयों के हाथ मे दिख गई रक्षा सूत्र की डोरी ।
युवतियाँ और महिलायें बनी ठनी सी दिखी ।
कहीं हरितालिका तीज तो कहीं, करवा चौथ मनाते हुए दिखी ।
बाजारों मे सज गई चूड़ियाँ और सेंवइय्या
पास आ गया ईद का त्यौहार ।
कहीं दशहरे का मेला दिखा ।
रामलीला के समय रेला दिखा ।
दीपावली मे दीपों की सजावट ।
सांता क्लाॅज के चुपके से आने की आहट ।
यह हमारा भारतीय समाज है
कितने सारे व्रत और त्यौहार मेरे लेखन मे छूट गये
पर ऐसा नही है कि वो हमसे रूठ गये ।
बहुत अद्भुत सी संस्कृति है हमारे समाज की
हर त्यौहार की अपनी पौराणिक और सांस्कृतिक महत्ता होती है ।
अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से देखना है तो देख लो ।
पंचांग की तरफ नज़रों को फेरना है तो फेर लो ।
नये साल की शुरुआत त्यौहार के साथ ,और विदाई भी तीज त्यौहार के साथ ।
बाजार की तरफ यदि ध्यान से देखो तो, अलग अलग विषयवस्तु के मद्देनजर, बाजार जनमानस के उत्साह को भुनाता सा लगता है ।
कभी आकर्षक तोहफों के माध्यम से, कभी भविष्य मे बेहतरीन वादों के साथ ।
भारतीय समाज में अलग अलग प्रांत के खाने का स्वाद भिन्न-भिन्न है
अगर आप महानगर के निवासी हैं तो ,रेस्टोरेंट मे हर प्रांत के खाने का स्वाद आपको आसानी से उपलब्ध होता है।
आस्था के साथ व्रत और त्यौहार को जोड़कर अगर, कुछ दशकों पहले की तरफ नज़रों को फेरते हैं ।
नानी दादी या अन्य बुजुर्गों के साथ, भारतीय समाज मे व्रत और उपवास के साथ त्यौहार कठिन समझ मे आते हैं ।
वर्तमान मे समाज का स्वरूप परिवर्तन के मुहाने पर खड़ा दिखता है ।
पाश्चात्य खान पान और संस्कृति का असर, व्रत के समय खाने पीने की चीजों पर भी दिखता है ।
घर की रसोई की शुद्धता तो मायने रखती है,लेकिन रेस्टोरेंट की रसोई की शुद्धता भी स्वीकार्य है ।
सकारात्मक तरीके से होने वाला यह परिर्वतन,अपनी सांस्कृतिक और खान पान की विरासत को सहेजने वाला वर्ग भी स्वीकार करता है ।
समाज मे कई परिवारों के युवाओं और बच्चों मे व्रत या त्यौहार के समय आस्था! स्वादिष्ट खाने के माध्यम से भी जुड़ती है ।
हमेशा मुझे यह बात आश्चर्य मे डालने के साथ आकर्षित करती है कि,व्रत और त्यौहार का मतलब खाने मे कितने तरह का स्वाद ।
इस तरह के स्वाद से परिचित कराने मे,समाचार पत्रों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है।
अखबारों मे व्रत के समय खाने पीने वाली आकर्षक तस्वीरें! बच्चों और युवाओं को आकर्षित करती हैं ।
आज व्रत के मायने महानगरीय संस्कृति मे, अपनी सुविधा और समय के मुताबिक बदले हुए से दिखते हैं ।
कहीं निराजल व्रत के रूप मे तीज और,ज्यूतिया करती हुई महिलायें दिखती हैं ।
कहीं करवा चौथ के व्रत के बाद, रेस्टोरेंट मे या सामूहिक रूप से कैटरिंग के माध्यम से आयोजन स्थल सजते हैं ।
नवरात्रों के दौरान माँ दुर्गा की कृपा हर तरफ दिखती है
पूजा पाठ, भक्ति और आस्था के साथ, रसोई घर से फलाहारी खाने की खुशबू भी उड़ती रहती है ।
आप को व्रत के दौरान क्या खाना है,फलाहारी डोसा,इडली चटनी के साथ ?
या कचौड़ी, पुलाव ,मिठाईयाँ तरह तरह के शेक,लस्सी,खीर का स्वाद ?
नवरात्रि के समय रेस्टोरेंट मे व्रत करने वालों के स्वाद की दुनिया भी सजती है ?
पिज्जा भी पीछे नही छूटा,बच्चों को आकर्षित करने के लिए ,व्रत वाला पिज्जा भी उपलब्ध है ।
इस बात को आप नजरंदाज नही कर सकते कि, आस्था और भक्ति! आप युवाओं और बच्चों के ऊपर, जर्बजस्ती थोप नही सकते ।
परिवार और समाज का वातावरण ,अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का माध्यम बन सकते हैं ।
सच्चे मन से की गई आस्था ,भक्ति, व्रत ,उपवास ऊपर वाले के द्वारा स्वीकार्य होती है ।
मेरे विचार से बुरी नही है यह बात,व्रत और त्यौहार के साथ ,फलाहारी व्यंजनों का स्वाद ।
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Thanks for such magnificent share
Thanks 😊